दोनदा जन्माला ब्राम्हण पुरोगामी म्हणा आधी तो स्वत:
BY_डॉ. मनीषा बांगर
ब्राह्मण सवर्ण पुरुषों ने आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर फेमिनिस्ट का चोला पहनकर ज्ञान बाटने और खुद महिलाओं से भी दो कदम ज्यादा क्रांतिकारी बताने के बजाय ‘ ब्राह्मण ‘ होना ही कितना क्रूर है ये बताना ज्यादा ठीक होगा.
ब्राह्मण शब्द ही असमानता , वर्चस्व, दमन का सूचक आहे इस बात को गांव गांव, शहर शहर, गली गली, हर मुलाकात, हर वार्तालाप, हर भाषण, हर मजलिस में बताना शुरू करे. ये शब्द और इससे जुड़ा दमनकारी वर्चस्व एक कबिलाई आक्रमणकारी अमानवीय असभ्य गुट की खुराफात है जो आज भी बरकरार है ये बताना होगा. राष्ट्र और सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में इस सोच ( ब्राह्मणी वर्चस्व) को खारिज करना होगा .
यूंही शब्दो की जलेबी बनाकर जेंडर पर गोल गोल विमर्श और भ्रम पैदा करने वाली खोखली बाते सोशल मीडिया पर लिखने के बजाय सत्ता के केंद्र में ( सांस्कृतिक सामाजिक और राष्ट्रीय स्तंभों में) जहां ब्राह्मण पुरुष बैठ कर स्त्री के व्यक्तिगत और पब्लिक लाइफ पर निर्णय लेकर उसे नियंत्रित करते है वहां से ब्राह्मण पुरुषों को कैसे हटाया जाए या उन्हें अपने एकाधिकार त्यागने के लिए कैसे प्रेरित किया जाए इसपर विचार विमर्श शुरू करें .
साथ ही में विनाशकारी ब्राह्मणी धर्म ग्रंथो कि समीक्षा करने के लिए संघठन और आंदोलन निर्माण कर खुद के दुष्कृत्य को पलटना होगा .बहुत काम है . बहुत महत्वपूर्ण काम है . पहले ये करें. ये किए बिना ‘ फेमिनिस्ट ‘ बन कर फर्जी फोकट ज्ञान बांटने से क्या फायदा?
ब्राह्मण द्विज पुरुष महिला सशक्तिकरण पर भाषण और लेख लिखने के बजाय ब्राह्मण की अवधारणा और व्यवस्था को ध्वस्त करने में लग जाए तो ‘ फेमिनिज्म ‘ अपने आप में हयात में आ जाएगा.
~ डॉ. मनीषा बांगर
~ सामाजिक राजकीय विचारवंत, ~ सामाजिक राजकीय विचारवंत.
~ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पीपल्स पार्टी ऑफ इंडिया-डी ,
~ गॅस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट आणि यकृत प्रत्यारोपण विशेषज्ञ
~ गॅस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट आणि यकृत प्रत्यारोपण विशेषज्ञ
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