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Uncategorized - January 26, 2022

सवर्णों का मीडिया और न्यायपालिका पर प्रभुत्व बन गया है राष्ट्र निर्माण में सबसे बड़ी बाधा

आज शाम में राष्ट्रपति देश को संबोधित करेंगे. उनकी स्क्रिप्टेड स्पीच में क्या बोला जाएगा इसका अनुमान बहुतांश लोगो को है.

मगर शायद राष्ट्रपति वह नहीं बोलेंगे, या देश के लिए वो दिशा नहीं दिखाएंगे जिसकी आज देश को जरूरत है यह बात भी सुनिश्चित है.

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का राष्ट्रिकरण , जाति जनगणना , बहूजनो का बैकलॉग भरना, प्राइवेट सेक्टर में बहुजन का प्रतिनिधित्व, भूमि वितरण, कृषि उद्योग का राष्ट्रीकरण ये तमाम समाधानों की देश को सख्त जरूरत है. देश की उन्नति इन सवालों के समाधान से होकर ही आगे बढ़ सकती है.

ब्राम्हणोने ओबिसी का आरक्षण खाया है

केन्द्रीय मंत्रालय में उच्च पदों पर सिर्फ 13 फीसदी SC , OBC पिछड़े आरटीआई कार्यकर्ता महेन्द्र प्रताप सिंह ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) में सामान्य, पिछड़ा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति वर्ग के ग्रुप ए अफसरों की संख्या की जानकारी मांगी थी।

अवर सचिव से लेकर सचिव स्तर तक सिर्फ 5.40 फीसदी पिछड़ा और 8.63 फीसदी अनुसूचित जाति वर्ग के लोग ही पहुंच पाए हैं। जबकि सामान्य वर्ग से करीब 82 फीसदी अफसर इन पदों पर कार्यरत हैं।


सितंबर 2016 में डीओपीटी ने केन्द्रीय मंत्रालय के अवर सचिव (अंडर सेक्रेटरी), उप निदेशक (डिप्टी सेक्रेटरी), निदेशक (डायरेक्टर), संयुक्त सचिव (ज्वाइंट सेक्रेटरी), अतिरिक्त सचिव (एडिशनल सेक्रेटरी) और सचिव (सेक्रेटरी) या इसके समकक्ष पदों की सूची आरटीआई के जवाब में दी। आरटीआई दस्तावेजों के मुताबिक ओबीसी वर्ग का एक भी अफसर केन्द्रीय मंत्रालयों के सबसे बड़े पद सचिव व अतिरिक्ट सचिव नहीं है। जबकि सचिव पद पर सामान्य वर्ग के 110 , और एससी वर्ग के सिर्फ दो अफसर ही कार्यरत हैं। वहीं अतिरिक्त सचिव पद पर106 अफसर सामान्य, पांच-पांच अफसर एससी और एसटी वर्ग के अफसर हैं।

आंकड़ों से पता चलता है कि इन छह पदों पर इन सभी वर्गों के 1795 अफसर कार्यरत हैं। 1465 अफसर सामान्य वर्ग से, 97 अफसर ओबीसी वर्ग के, 155 अफसर एससी वर्ग और 78 अफसर एसटी वर्ग के अफसर इन छह पदों पर हैं।

मगर वीभत्स मीडिया प्रोपगंडा और न्यायालय के वीभत्स रवैय्ये इस कोशिश में बहुत बड़ा रोड़ा बने बैठे है.

वे गणतंत्र को सही मायने मै हयात में अवतरित होने नहीं दे रहे .

वो इसलिए क्योंकि ये दोनों संस्थाएं एक ही विशिष्ट जाति और वर्ण – अर्थात ब्राह्मण बनिया वर्ण के नियंत्रण में है. जब परंपरागत रूप से दमनकारी वर्ग ही लोकतांत्रिक संथाओं में जा कर बैठेगा तो वह उन संस्थाओं के जरिए लोकतंत्र मजबूत करने के बजाए अपने वर्ग का वर्चस्व कायम रखने का काम करेगा. आज वही हो रहा है .

भारतीय मीडिया की जाति संरचना पर एक अध्ययन में सर्वेक्षण किए गए न्यूज़ रूम में 121 मैनेजेरियल पदों में से 106 उच्च जातियों के सदस्यों द्वारा कब्जा है और कोई भी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य इन पदों पर नही हैं|

ऑक्सफैम इंडिया और मीडिया-वॉच वेबसाइट न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा किए गए अध्ययन में यह भी कहा गया है कि “हर चार एंकरों में से तीन (हिंदी चैनलों में कुल 40 एंकर और अंग्रेजी चैनलों में 47) उच्च जाति के हैं” . इसके अलावा, “उनके प्राइमटाइम डिबेट शो के 70% से अधिक के लिए, समाचार चैनल उच्च जातियों के अधिकांश पैनलिस्टों को आकर्षित करते हैं”।

सभी संस्थानों मे और उच्च हौदों को काबिज करके बैठे ब्राह्मण सवर्ण लोग है. खुद को अपने ही जाति के लोगो से संरक्षण मिलने का कॉन्फिडेंस इस वर्ग के लोगो मे होता है तभी अर्णब , शर्मा, माल्या जैसे लोग निर्माण होते है जो कोई भी गैरकानूनी काम करने से नहीं झिजकते. ये लोग देश की सुरक्षा और हित को भी दाव पर लगा देते है और फिर भी अपराधी / आतंकी करार नहीं दिए जाते.

बार एंड बेंच के आंकड़े अनुसार सुप्रीम कोर्ट में आज तक अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय से कोई जज नहीं हुआ है।

परंपरागत और पारंपरिक रूप से, ब्राह्मणों का न्यायपालिका के सर्वोच्च स्तर पर प्रभुत्व रहा है।

भारत के अब तक के 47 मुख्य न्यायाधीशों में से कम से कम 14 ब्राह्मण रहे हैं

1988 में, सुप्रीम कोर्ट में 17 न्यायाधीश थे और उनमें से 9 ब्राह्मण थे (जस्टिस आरएस पाठक, ईएस वेंकटरमैया, एस मुखर्जी, आरएन मिश्रा, जीएल ओझा, एलएम शर्मा, एमएनआर वेंकटचलैया, एस रंगनाथन और डीएन ओझा)। उस समय सुप्रीम कोर्ट में 50% से अधिक ब्राह्मण प्रतिनिधित्व रहा है| ध्यान दें ठीक उसी समय 1980 तक, ओबीसी या एससी समुदाय से कोई न्यायाधीश नहीं था।

यही वजह है कि जज पुष्पा गनेदीवाल रेप / सेक्सुअल असॉल्ट की परिभाषा को ही बदल देती है .

पाकिस्तान और चीन से भी ज्यादा भारत गणतंत्र को , भारत की सुरक्षा को और भारत के लोगो को इन जैसे लोगो से सबसे ज्यादा खतरा है !

इन क्रूर विकृत जातिवादी, सांप्रदायिक, महिला विरोधी लोगो को बल इन दोनों संस्थाओं मे मौजूद कॉलेजियम सिस्टम ( अयोग्य मगर अपने जाति और परिवार के लोगो की भर्ती) की वजह से मिलता है. इनकी पैदाइश वहीं से होती है.

इसीलिए देश को अगर सही मायने में एक गणतंत्र बनाना है तो मीडिया और ज्यूडिशियरी दोनों में यूपीएससी कि तर्ज पर ऑल इंडिया मीडिया सर्विस और ऑल इंडिया जुडिशल सर्विसेस होना जरूरी है.

तभी वहां बहुजन अपनी संख्या के अनुपात में वहां पहुंच पाएंगे और इन संस्थानों के जरिए जो उच्चवर्णीय लोग अपनी तानाशाही लागू करते है उसपर रोक लगेगी.

ये दोनों संस्थाएं देश और राष्ट्र निर्माण के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गए है.

हमे इस चुनौती का सामना करते हुए, इन गंभीर समस्या का समाधान निकालते हुए अन्य कई गंभीर समस्याओं के हल ढूढना होगा !

ये हम सब की जिम्मेदारी है .

जय संविधान जय भारत !

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