“भगवान नहीं,अद्भुत इंसान थें बुद्ध!”
BY_आकाश सिंह
गौतम बुद्ध कहा करते थें कि ‘अच्छे बनो और अच्छे कर्म करो,अगर कोई ईश्वर है तो तुम अच्छा बन उसे प्राप्त करो अगर नहीं है तो अच्छा बनना ही स्वयं में उत्तम है’।लेकिन यह है कि बिडम्बना किसी भी पराक्रमी को बिना हर्रे-फिटकरी अवतार के रूप में प्रस्तुत करना संसार की सबसे सुप्रसिद्ध व प्रिय पद्धति रही है।तो भला गौतम बुद्ध भी इस जाल से कैसे निजात पाने वाले?
विभिन्न अलंकारों से गौतम बुद्ध को अलंकृत कर उन्हें ठीक वैसे ही लोगों की आम पहुंच से दूर किया गया जैसे मूर्ति पूजा,पाखण्ड-कर्मकांड के धुर विरोधी डॉ.अंबेडकर को हवन कुंड,रुद्राभिषेक कर उनकी मूल संदेशों को आम जनमानस से दूर रखा जा रहा है।बेशक ये सिला किसी साजिश व षड्यंत्र का भी हिस्सा हो सकता है।
एक बार बुद्ध के ब्राम्हण शिष्यों ने उनके उपदेशों को संस्कृत भाषा में अनुवादित करना चाहा तो बुद्ध ने कहा कि “मैं दरिद्र और साधारण जनों के लिए आया हूँ ,अतःमुझे जनभाषा में ही बोलने दो।
बुद्धिज्म में महायान व थेरवाद मुख्यतः दो मुख्य शाखाएं है।दोनों एक दूसरे से विपरीत विचारधारा,मानक व व्यवहारिकता रखते हैं।महायान शाखा के अंतर्गत गौतम बुद्ध को एक अवतारित भगवान के रूप में पूजा जाता है।इस शाखा में मंत्र-तंत्र,जादू टोना,अंधविश्वास और चमत्कार पर ख़ास विश्वास है।
महायान बुद्ध व बोधिसत्व पर विशेष रूप से केंद्रित है।वार्डर और कर्न के अनुसार महायान की उत्पत्ति महासंघिका निकाय के उदय के साथ हुआ था।वहीं सेषी करशिमा के अनुसार इसकी उत्तपत्ति गन्धर्व क्षेत्र में पाई जाती है।
सन 2010 की एक रिपोर्ट के अनुसार बौद्ध धर्म के कुल अनुयायियों में से 53 फीसदी महायानी अनुयायी हैं।
थेरवाद का अर्थ है ‘बड़े बुज़ुर्गों का कहना’ है।थेरवाद गौतम बुद्ध को किसी भी अवतार पुरुष या भगवान मानने से स्पष्ट इंकार करता है।थेरवाद मुख्यतःत्रिपिटक सिद्धांतों पर केंद्रित है। त्रिपिटक के अंतर्गत तीन खण्डों के भीतर कुल 16 निकाय विभाजित हैं जिसमे बुद्ध चारिका,वर्ण व्यवस्था विरोध,मांस भक्षण पर विचार,आत्मा की उपस्थिति व अनुपस्थिति पर वाद-विवाद,जात-पात खंडन आदि मौजूद हैं। इसके अनुसार गौतम बुद्ध महापुरुष अवश्य हैं अपितु ईश्वर और चमत्कारी पुरुष कत्तई नहीं। थेरवाद पूजा पाठ,धार्मिक अयोजनों में बुद्ध की पूजा में विश्वास नहीं रखते है। कंबोडिया,श्रीलंका,म्यांमार और थाईलैंड में थेरवाद का प्रभावी प्रचलन है। लगभग 40 फीसद बौद्ध धर्म के अनुयायी थेरवादी शाखा से ताल्लुक रखते हैं।
बुद्ध के अनुसार ईश्वर पुरोहितों द्वारा आविष्कृत एक विशाल अंधविश्वास है।उन्होंने आत्मा को अंधविश्वास करार किया था।वे ईश्वर की तुष्टि हेतु पशुबलि के प्रबल विरोधी भी थें।उन्होंने कहा कि अगर पशु की बलि देना अच्छा है तो नरबलि उससे भी श्रेष्ठतर है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि बुद्ध के उपदेश में न ही आत्मा है और न ही परमात्मा,केवल कर्म है और कर्म ही दुनिया की एकमात्र सच्चाई है।
भारत के शूद्रों हेतु बुद्ध एक महान उद्धारक के रूप में आएं थें जिन्होंने शूद्रों के भीतर चेतना भरने का सर्वप्रथम एवं सर्वश्रेष्ठ बीड़ा उठाया था।
बुद्धिज्म,हिन्दू धर्म की अद्वितीय विकल्प है।ऐसी अवधारणाएं सामने आयी हैं जिसमे बुद्ध द्वारा हिन्दू धर्म के तमाम रूढ़ियों,पाखण्ड व अंधविश्वास का विकल्प बुद्ध द्वारा तैयार करने की बात कही गयी है।बौद्ध धर्म की मौजूदा परम्पराएं,मान्यताएं जो आज परिचालित हैं उसे बुद्ध अपने जीवनकाल में कभी आजकल की भांति धर्म का नाम नही दिया था।बुद्ध ने बल्कि इसे बिना किसी आडंबर जोड़े एक जीवनशैली व फ़र्ज़ के रूप में अदा करने का आग्रह किया था।
हालांकि उनके जीवनकाल में आश्रमों में ब्राम्हण भिक्षुओं द्वारा तमाम नबाबशाही,भेदभाव का मामला सामने आया करता था।एक बार बुद्ध राजगीर के आश्रम पहुंचे और कुछ ब्राम्हण भिक्षुओं ने बुद्ध की खैरख्वाही करते हुए उनको आश्रम के उस छप्पर वाले कोठी में सोने का आमंत्रण दिया जिसमे सिर्फ गिने चुने ब्राम्हण भिक्षु सोते थें,और बाकी भिक्षु खुले में सोते थे।बुद्ध आश्रम में भेदभाव व मठाधीशी का खेल समझ गए,उसके बाद सभी भिक्षुओं को तलब कर उन ब्राम्हण भिक्षुओं की बहुत कड़ी फटकार लगाई थी।बुद्ध के शिष्यों ने पूछा कि हम अच्छे क्यों बने?
बुद्ध ने जवाब में कहा कि तुम्हे अच्छाई उत्तराधिकार के रूप में मिली है।अब तुम्हारी बारी है कि अब तुम अपने उत्तराधिकारियों के लिए अच्छाई की कुछ बपौती उनके लिए भी छोड़ जाओ।
आज 520 मिलियन से अधिक अनुयायीयों का वृतशील बौद्ध धर्म विश्व का चौथा सबसे विशाल धर्म है।दुनिया की 7 प्रतिशत आबादी बौद्ध धर्म का अनुसरण करती है।पूर्वी और दक्षिणपूर्वी एशिया में बौद्ध धर्म का प्रभावी पकड़ है।
बुद्ध एक प्रमुख जातिविध्वंसक,विशेषाधिकार विध्वंसक महापुरष,समाज सुधारक,सन्त और अभूतपूर्व अगुआ थें,जिन्होंने भारत की भावी क्रांति को उर्जासिंचित किया।बुद्ध वर्तमान के सुविधाभोगी,ज़रायमी व चरित्रभ्रष्ट महात्माओं,सन्तों हेतु जितना निडर आईना हैं उतना ही अंधभक्तों हेतु तीखे मार्गदर्शक भी हैं।
उन्होंने जन्म से ही बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय की मौलिकी आत्मसात किया था।
बुद्ध एक साधारण पुरुष थें जिन्होंने अपनी ज्ञानशीलता,त्याग व नियंत्रण से अब तक के मानवीय इतिहास में संसार को खूबसूरती से समझने का प्रयास किया और स्वयं को एक मनुष्य से एक अद्भुत इंसान में तब्दील किया।वे अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण के साथ इंद्रियों में प्रवाहित रक्त संचार पर भी काबू रखते थें जिसके चलते वह एक महापुरुष के रूप में उभरे।इन्ही ख़ूबियों के वास्ते इनको ईश्वर कहने की असफल कोशिश की गई है किंतु उन्हें ईश्वर,चमत्कारी कहना बुद्ध की कौशलता व बौद्धिक प्रज्जवलना को भभकाने के प्रयास के सिवाय और क्या कह सकते हैं!
जिस दिन भी इस विश्व की 20 फीसदी आबादी बुद्धत्व हासिल कर लेती है निश्चित रूप से उस दिन के पश्चात कोर्ट,कचहरी,संविधान,पुलिस और परमाणु की आवश्यकता शून्य हो जाएगी।बुद्ध ने साफ शब्दों में अप्प दीपो भव की अवधारणा दी थी,जिसका अर्थ है ‘अपना प्रकाश स्वयं बनो’।
उनका यह मानना था कि अंधभक्ति समाज को अंधकार के सिवाय कुछ भी नही दे सकती है। उन्होंने अंधभक्ति की समाप्ति कर आत्मनिर्भर होने पर विशेष जोर दिया था।बुद्ध जयंती के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुतारेस ने भी कोरोना महामारी से निपटने हेतु विश्व को बुद्ध के संदेशों पर चलने का आग्रह किया है।बुद्ध के पदचिन्हों पर चलना मौजूदा महामारी और अनेकों त्रासदी के दौर में मुल्क़ को नफ़ासत हासिल करा सकती है।
लेखक आकाश सिंह,दिल्ली विश्वविद्यालय के डिपॉर्टमेंट आफ बुद्धिस्ट स्टडीज़ में अध्यनरत व स्टूडेंट एक्टिविस्ट हैं,ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं।
(अब आप नेशनल इंडिया न्यूज़ के साथ फेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब पर जुड़ सकते हैं.)
Remembering Maulana Azad and his death anniversary
Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…