Home Social Culture क्या रक्षाबंधन का त्योहार पुरुषवादी मानसिकता और पितृसत्ता्मक संस्कृति को और बढ़ावा देता है ?
Culture - Uncategorized - August 3, 2020

क्या रक्षाबंधन का त्योहार पुरुषवादी मानसिकता और पितृसत्ता्मक संस्कृति को और बढ़ावा देता है ?

आज महिलाएँ हर मामले में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा काबिलियत दिखा रही है.. प्रोफेशनल क्षेत्र हो, कला क्षेत्र हो या राजनीतिक क्षेत्र हो.. हर जगह महिला ने अपना परचम लहराया है.

पश्चिम देश और कई एशियाई देश की नागरिक महिलाओं का जीवन और स्वास्थ स्तर भारत की महिलाओं की तुलना में बहुत बेहतर है, वे अपनी सुरक्षा करने के काबिल है। उन्होंने वैज्ञानिक सोच और पॉलिसी के आधार पर अपना सुरक्षा कवच निर्माण किया है। उन्हें दूसरे पुरुषों से अपनी रक्षा करने के लिए राखी के धागे की या अपने घर के पुरुषों की या भाई की जरूरत नहीं होती। वो ऐसा कोई त्योहार नहीं मानती है। वहां की न्यायिक व्यवस्था, कानून और समांतावादी मानसिकता उसकी रक्षा करते है।

आप जानते ही होंगे कि मेडम क्यूरी एक अकेली वैज्ञानिक है, जिन्होंने विज्ञान की दो अलग अलग शाखाओं में नोबेल प्राइस जीता है..!! कोई भी भारतीय विज्ञानी अभी तक यह सिद्धी हासिल नहीं कर पाया है।

मैडम क्युरी को राखी की जरूरत नहीं पड़ी।
फिर भारत महिलाओं को क्यों रक्षा वचन की ज़रूरत है ??

इतने बंधनो , अवरोधों के बावजूद अवसर और मौका मिलते ही महिलाएं की सृजन शक्ति और काबिलियत खेतो से लेकर तो उच्चतम सदन तक नजर आती है ।

इसके विपरित हजारों सालों की पितृसत्ता की ताकत होने के बावजूद लगभग हर क्षेत्र में मौजूद होने के बावजूद पुरुषों ने ( खासकर द्विज ब्राह्मण पुरुषों ने – जिसकी देखा देखी बहुजन पुरुष करते नजर आते है ) अपने घरों , बस्तियों , शहरों , और देश की संस्थानों का क्या हाल बना रखा है ये जग जाहिर है. ना विचारो में प्रगति ना शोध में ना सृजन ना कोई आविष्कार . हां ये जरूर है की अपनी पूर्वाग्रह ग्रसित शिक्षा, विचार और टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग कर महिला प्रताड़न , हिंसा और महिला के अवसर छीनने के नए नए तरीके ढूंढ निकाले है।

अब व्यवहारिक दृष्टिकोण से जो सक्षम है, वही रक्षा कर पाएगा.. तो फिर पुरुष को महिला की कलाई पर राखी बाँधकर उससे रक्षा का वचन लेना चाहिए ना!

हम तो कहते है महिला कमजोर है और उनकी गुलामी ( मानसिक तथा शारीरिक) का प्रदर्शन करने वाले इस त्योहार को हर स्तर पर खारिज कर इसे मानना बंद करना चाहिए. पुरुषों की काल्पनिक ताकत का महिमा मंडन बंद कर देना चाहिए. जो समाज उन्नति की ओर अग्रसर होते है वो समाज ऐसा करते है।

लेकिन जातिवादी ब्राह्मण कभी ऐसा नहीं होने देंगे, रक्षा बंधन को उलट पलट नहीं होने देंगे , क्योंकि ऐसा करने से ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को हानि पहुँचेगी..

डॉ मनीषा बांगर जो सामाजिक राजनितिक चिंतक, विश्लेषक एवं चिकित्सक,राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पीपल पार्टी ऑफ़ इंडिया-डी ,गैस्ट्रोइंटेरोलॉजिस्ट और लिवर ट्रांसप्लांट स्पेशलिस्ट, पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बामसेफ नेत्री और मूलनिवासी संघ से है, यह लेख उनके निजी विचार है।

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