“Rohith Fights Back”को दलित आंदोलन की सीमा में बांधना Rohith के साथ अन्याय है!
रोहित के विचारो और संघर्ष का दायरा बहुत व्यापक था. उतना ही व्यापक जितना के उसके आदर्श डॉ आंबेडकर , पेरियार, फूले, और सावित्रीबाई का था. सामाजिक बदलाव से लेकर शैक्षणिक सांस्कृतिक बदलाव तक. यह सब कुछ उसके आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन ( ASA) की गतिविधियों, खत और सोशल मीडिया खासकर उसके फेसबुक पर दर्ज है !
अपने ही शब्दों मै रोहित कहता है
” Agraharam laws loom large over higher education institutions in India”,
और ,आगे कहता है की
” I want a democratic campus where casteism will not kill my bothers and sisters “
उसकी लड़ाई एक ऐसी व्यवस्था के साथ थी जिसमे की बहुजन का पढ़ना, ज्ञान पाना, उच्च शिक्षा लेकर शशक्त होना और सम्मान भारी जिंदगी जीना भी दुस्साहस है.
एक ऐसी व्यवस्था जिसमे बहुजनो के दमन , अशिक्षा, अवहेलना , अवैज्ञानिकता, धार्मिक पाखण्ड को ही ‘ संस्कृति और धर्म ‘ कहकर परोसा और जबरन थोपा जाता है .
रोहित की सांस्थानिक हत्या के प्रतिरोध में और उसके बाद आंदोलन की जो मशाले जली वो देश और दुनिया भर में जली. इसमें बहुजनो के सभी घटक शामिल थे.
शिक्षा संस्थानों के ब्राह्मणी आतंकवाद के विरूद्ध से लेकर तो आज fee hike, CAA NRC, के युवा प्रोटेस्ट तक एक शृंखला जो बनी है वो रोहित के बलिदान से जली है.
इसलिए आज अगर इसे कोई महज ” #दलितप्रतिरोध ” या ” #दलितआंदोलन इन #शब्द #में #संकुचित करते है तो वे रोहित के विचार और लड़ाई के साथ धोखा करते है . ये रोहित और उन सब के संघर्ष के साथ अन्याय होगा जो ब्राह्मणी आतंक और तानाशाही के खिलाफ लड़ रहे है!
यह लेख सामाजिक चींतक एव राजनीतिक डॉ मनीषा बांगर के नीजी विचार है ।
(अब आप नेशनल इंडिया न्यूज़ के साथ फेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब पर जुड़ सकते हैं.)