क्या RSS के इशारो पर काम कर रहा है सुप्रीम कोर्ट? संदर्भ प्रशांत भूषण को दोषी मानना!
संघ के आंगन में नाच रहा है, सुप्रीम कोर्ट- संदर्भ प्रशांत भूषण को दोषी ठहराना
सुप्रीम कोर्ट की अवमानना मामले में सीनियर वकील प्रशांत भूषण दोषी ठहराया गया है। न्यायपालिका के प्रति कथित रूप से दो अपमानजनक ट्वीट करने को लेकर अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ स्वत: शुरू की गई अवमानना कार्यवाही में आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने इस मामले में अधिवक्ता प्रशांत भूषण को दोषी करार दिया। अब सजा पर सुनवाई 20 अगस्त को होगी।

सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले पर सबसे सटीक टिप्पणी वरिष्ठ पत्रकार करन थापर ने की है।उन्होंने लिखा- “ सुप्रीम कोर्ट न्याय स्थापित करने के लिए बनाया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट 2014 से ही संघ के आंगन में नाच रहा है।”
कल दी इंडियन एक्सप्रेस में लिख अपने लेख में इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने विस्तार से बताया है कि कैसे सुप्रीकोर्ट सत्ता न्याय एवं लोकतंत्र के रक्षक की जगह सत्ता के उपकरण के रूप में काम कर रहा है।
यह वही सुप्रीमकोर्ट है, जो निरंतर आरक्षण विरोधी फैसले दे रहा है, आर्थिक आधार पर सर्वणों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण उसे संविधान विरोधी नहीं दिखता, जबकि ओबीसी के आरक्षण ( मंडल आयोग) को 2 सालों तक रोके रखा।
यह वही सुप्रीकोर्ट है, जिसने बिना किसी सबूत के संघ के आंगन में नाचते हुए बाबरी मस्जिद को रामजन्मभूमि घोषित कर दिया।
यह वही सुप्रीकोर्ट है, जो कश्मीर से अनुच्छेद -370 हटाया जाना वैधानिक है या नहीं उस 1 वर्ष से कुंडली मारे बैठा है।
यह वही सुप्रीकोर्ट है, जिसे कश्मीर में और वर्षों से लोगों को हिरासत में रखने मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ याचिकाओं को सुनने का वक्त नहीं है।
करीब हर मामले में सुप्रीम कोर्ट संघ-भाजपा ( सत्ता) के आंगन में नाच रहा है।
यह देश की सबसे बड़ी अलोकतांत्रिक संस्था है, जिसमें बिना किसी चुनाव या परीक्षा के जज नियुक्त होते हैं और ज्यादात्तर एक कुछ परिवारों और कुछ जातियों ( उच्च जातियों- विशेषकर ब्राह्मण) से नियुक्त होते हैं।
यह मट्टीभर उच्च जातीय मर्दों की कुलीनतंत्रीय मनुवादी-ब्राह्मणवादी संस्था है, जो अब खुलकर संघ के आंगन में नाच रही है।यह असहमति की आवाजों को कुचलने में पूरी तरह संघ-भाजपा के साथ खड़ी है।प्रशांत भूषण को दोषी ठहराना संघ-भाजपा के आंगन में उसके नाचने का एक और सबूत भर है।
यह लेख वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सिद्धार्थ रामू के निजी विचार है।
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