पायल तड़वी
जातिवाद एक ज़हर है जो लोगों के मन मस्तिष्क में इस प्रकार घुल गया है कि वे किसी पायल तड़वी, रोहित वेमुला या मुथुकृष्णा को अपने साथ चलते नहीं देख सकते। उन्हें ये लगने लगता है कि पिछड़ी जाति से आने वाले लोग इस काबिल नहीं होते की उनके साथ पढ़ सकें या काम कर सकें। वे किसी नीची जाती वाले को अपना कंपटीटर बनते नहीं बर्दाश्त कर सकते। जो जाति के आधार पर इंटरनल्स में नंबर देते हैं। इसी मानसिकता से ग्रस्त ये लोग पिछड़ों को प्रताड़ित करना शुरू कर देते हैं और इतना प्रताड़ित करते हैं कि या तो वो पागल हो जाते हैं या मर जाते हैं।
इस मनुवादी मानसिकता का ताज़ा शिकार हुई हैं छब्बीस वर्षीय पायल तड़वी जिन्होंने बीते बाइस मई को अपने सीनियर्स की प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी। पायल एक गायनोकॉलॉजिस्टिक (प्रसूतिशास्री) थीं। वह मुस्लिम भील समाज से तअल्लुक रखती थीं। वो अपने समाज की पहली पीढ़ी थीं जो उच्च शिक्षा प्राप्त करने में कामयाब हुई थी। उन्होंने मिराज के गवर्नमेंट कॉलेज से mbbs किया था जिसके बाद वे गयनोकोलोजी में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए मुम्बई आयी थीं। पायल की सीनियर हेमा आहूजा, अंकिता खंडेलवान और भक्ति मेहर उन पर जाति सूचक कमैंट्स करती थीं, उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करती थीं, उनके साथ अभद्र भाषा का प्रयोग करती थीं और इसके अलावा वो उनसे ज़रूरत से ज़्यादा काम भी कराती थीं। रोज़ाना होने वाली इस प्रताड़ना ने डॉक्टर पायल को तोड़ दिया और रोज़ रोज़ की इस प्रताड़ना से तंग आकर डॉक्टर पायल ने बाइस मई को फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली।
पायल की माँ आबिदा तड़वी कहती हैं कि पहले वो लोगों से गर्व से कहती थीं कि मैं डॉ पायल की माँ हूँ लेकिन अब वो किस्से क्या कहेंगी? पायल की माँ आबिदा तड़वी के अनुसार उन्होंने दिसंबर 2018 में ही डॉ पायल के हो रहे शोषण की शिकायत में यूनिवर्सिटी को चिट्ठी लिखी थी। इसके अलावा उन्होंने घटना से नौ दिन पहले पी.एन टोपीवाला मेडिकल कॉलेज में भी इसकी शिकायत की थी लेकिन प्रशासन ने मामले पर ध्यान नहीं दिया और लेकिन डॉ पायल इतनी मानसिक पीड़ा न झेल पायीं और आत्महत्या कर ली। पायल अपने परिवार की ही नहीं बल्कि अपने पूरे समुदाय की एकलौती उम्मीद थीं। वे अपने समुदाय के लिए अपने जिले जलगांव में एक अस्पताल खोलना चाहती थीं। लेकिन इस जातिवादी और आरक्षण विरोधी मानसिकता ने उस समुदाय की इकलौती उम्मीद को बुझा दिया। फिलहाल तीनों आरोपी पुलिस हिरासत में हैं। पुलिस उन तीनों छात्राओं से पूछताछ कर रही है। इन तीनों छात्राओं का कहना है कि वे तीनों निर्दोष हैं। उन्हें पता ही नहीं था कि पायल अनुसूचित जनजाति से संबंध रखती हैं। डॉ पायल की मौत से लोगों का गुस्सा उबल पड़ा है। लोग पायल को इंसाफ दिलाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। थोराट कमिटी के सुझावों को इम्पलीमेंट करने की माँग भी फिर से शुरू हो चुकी है। नागपुर की डॉ बाबा साहेब अंबेडकर नेशनल स्टूडेंट फेडरेशन ने छब्बीस मई को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से थोराट कमिटी के सुझावों को इम्पलीमेंट करने की मांग की है।
हैरत इस बात से होती है कि लोग किस तरह आरक्षण पर आँखे मूंद कर बैठे हुए। वे आरक्षण का मूल समझे बिना इससे नफरत करने लगते हैं। वे बिना सोचे समझे पिछड़ों को कोसने लगते हैं। उन्हें लगता है कि आरक्षण के द्वारा उनके अधिकार उनसे छीन कर पिछड़ों को दिए जा रहे हैं। जबकि ये बिल्कुल सही नहीं है, आरक्षण द्वारा चयनित होकर आये पिछड़ी जाति के अभ्यर्थी कोई पाप नहीं कर रहे हैं न किसी के अधिकार छीन रहे हैं, आरक्षण उनका हक़ हैं। अस्ल में उन्हें आरक्षण इसलिए दिया जा रहा है ताकि वो भी समाज में बराबर का हिस्सा पा सकें। देश के दूसरे लोगों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकें। उस मानसिकता से आजाद हो सकें जो पानी पर भी पहरे लगा देती है। जो पिछड़ों को अगड़ों के खोदे कुएं से पानी नहीं पीने देती। जो ऊंची जाति वालों के आगे अच्छे कपड़े पहन कर निकलने पर पिछड़ों को पीट पीटकर मार देती है। जो ये तय करती है कि नीची जाति वाले ऊँची जाती वालों के साथ नहीं बैठ सकते। जो ऊंची जाति वालों को पिछड़ी जाति की महिलाओं से बलात्कार करने का अधिकार देती है। जिसे पिछड़ी जनजातियों से आने वाले लोग जंगली लगते हैं।
इस मानसिकता से पार पाने के लिए हमें आरक्षण की ज़रूरत है। हमें आरक्षण की ज़रूरत तबतक है जबतक मामला बराबरी का नहीं हो जाता। जबतक लोग पिछड़ों को अछूत मानना नहीं छोड़ देते। जबतक आर्थिक रूप से पिछड़े अगड़ों के बराबर नहीं हो जाते।
آج کے کشمير کے حالات’ کشميريوں کی زبانی – پيٹر فريڈرک کے ساتھ
کشمير مدعہ ايک مکمل سياسی مسئلہ تها ليکن اسے ہندوستانی ميڈيا نے پوری طرح ہندو مسلم کا جام…