वाराणसी में मोदी को टक्कर देने वाले तेज बहादुर कौन हैं?
By-दिलीप मंडल
कौन है तेजबहादुर यादव और उसकी फैमिली फोटो आपको क्यों देखनी चाहिए?
भ्रष्टाचार से लड़ने के सबसे सटीक प्रतीक क्यों हैं तेजबहादुर यादव?
तेज बहादुर यादव ने अपनी जिंदगी बीएसएफ में खपा दी थी. दुश्मन की गोलियों की बीच जिंदा रहा. लगातार सीमाओं पर तैनात रहा.
वैसा ही राष्ट्रवादी था, जैसा आरएसएस हर किसी को बनाना चाहता है. मुसलमानों के लिए नफरत वाली उनकी पोस्ट आप पढ़ सकते हैं. मतलब कि जैसा कि होता है, वैसा ही था.
बाकी की कहानी ये है कि रिटायरमेंट के करीब आखिरी पोस्टिंग थी.
वहां खाना खराब मिला, तो उन्हें गुस्सा आया. मोदी राज में सैनिकों को ऐसा खाना. उन्हें लगा कि शिकायत करूंगा तो सरकार खुश होगी कि राशन में भ्रष्टाचार का पर्दाफाश कर दिया. उन दिनों कुछ वैसा ही माहौल था कि सरकार भ्रष्टाचार से लड़ रही है.
यादव साहेब ने उठाकर भोलेपन में फेसबुक पर सब बता दिया कि अफसर कैसे खाने में भ्रष्टाचार करते हैं. कितना खराब खाना सैनिकों को मिलता है.
उम्मीद थी कि शाबाशी मिलेगी.
मिला क्या?
तत्काल नौकरी से विदाई. कोर्ट मार्शल. रिटायरमेंट का विकल्प था लेकिन ये नहीं मिल पाया. बर्खास्त किए गए.
यानी सारी रिटायरमेंट बेनिफिट की छुट्टी. पेंशन नहीं, ग्रेच्युटी नहीं. मेडिकल सुविधा नहीं. कहीं और नौकरी करने से मनाही. सारे एजुकेशनल सर्टिफिकेट पर रेड मार्क.
जिंदगी पूरी तरह बर्बाद कर दी गई.
इसी तनाव में उनके जवान 22 साल के बेटे रोहित ने घर में खुद को गोली मार ली.
भ्रष्टाचार से लड़ना मोदी राज में कितना जोखिम भरा काम था, इसका प्रतीक है तेज बहादुर यादव.
उन्हें वार्निंग देकर छोड़ा जा सकता था. लेकिन सरकार ने तय किया कि इस आदमी की जिंदगी बर्बाद कर दी जाए, ताकि कोई और आवाज न उठे.
रिटायर होने ही वाले थे. हो जाने देते.
तेजबहादुर को इसलिए वोट नहीं मिलना चाहिए कि बहुत महान आदमी है. सारी कमजोरियां हैं उनमें.
ये सही है कि उन्हें अनुशासनहीनता के कारण बर्खास्त किया गया है. आरोप गलत भी नहीं है. लेकिन ये भोलेपन में हुआ है. नीयत बुरी नहीं थी बंदे की.
जो सजा मिली वो सही थी. कोई भी सुरक्षा बल अनुशासनहीनता के साथ नहीं चल सकता.
लेकिन सजा देने में मानवीय होने का रास्ता था. लेकिन सरकार ने ये रास्ता नहीं चुना.
तो ऐसे में मैं क्या करूं?
मुझे उनसे सिंपैथी है. सहानुभूति है. दया है. करुणा है.
तेजबहादुर यादव ये संघर्ष चुना नहीं है. उनके इरादे नेक थे. वो सुधार चाहता था. भ्रष्टाचार से लड़ना चाहता था. लेकिन उन्हें दीवार की तरफ इतना ज्यादा धकेल दिया गया है कि बंदा रेसिस्ट कर रहा है. जिंदा रहने की कोशिश कर रहा है.
फिलहाल इतना ही.
Via~दिलीप मंडल
मेरी त्वरित संपादकीय टिप्पणी
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