विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में ’13 प्वाइंट’ रोस्टर अन्यायपूर्ण!
By- Urmilesh Urmil ~
विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में जिस अन्यायपूर्ण रोस्टर को लेकर विवाद खड़ा हुआ है, दरअसल वह सिर्फ शिक्षा जगत तक सीमित नहीं है। भारत सरकार और अनेक राज्यों की सेवाओं में लगभग उसी तर्ज के रोस्टर के तहत नियुक्तियां हो रही हैं और 2 जुलाई, सन् 1997 से ही यह सिलसिला जारी है!
सरकारी सेवाओं में आरक्षण लागू होने से नाराज शीर्ष नौकरशाहों ने बड़ी चालाकी से यह रोस्टर तत्कालीन सरकार से मंजूर करा लिया। तब से वही ज्यादातर सेवाओं और राज्यों में लागू है।
बहुजन पक्ष के राजनेताओं को शासन और नियुक्ति प्रक्रिया की इन बारीकियों-जटिलताओं का ज्ञान नहीं था, इसलिए वे इसे समझ भी नहीं सके! फिर उनकी रुचि प्रोफेसर, कुलपति, सहायक प्रोफेसर, निदेशक आदि से ज्यादा पुलिस-पीएसी-बीएमपी आदि में कांस्टेबल या अधिक से अधिक सब इंस्पेक्टर और अन्य सरकारी विभागों में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी नियुक्त कराने में थी! शुरुआती दिनों में SC/ST-ओबीसी समाज के अंदर उच्च शिक्षित लोगों की संख्या भी आज जैसी नहीं थी!
ज्यादातर SC/ST-ओबीसी नेताओं के सलाहकार, सचिव और कानूनी पैरोकार भी लगभग उच्च वर्णीय पृष्ठभूमि से थे या हैं! फिर वे अपने ‘पोलिटिकल बासेज’ को ऐसी समझदारी क्यों देते!
हाल के दिनों में किसी भी सरकारी संस्थान में सीधी नियुक्ति के किसी भी विज्ञापन को देखकर आरक्षण के प्रावधान को ध्वस्त करते ऐसे रोस्टर का खेल देखा जा सकता है।
~ Urmilesh Urmil
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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