कश्मीर पर कायम चीनः CPEC को बताया क्षेत्र के विकास वाला प्रोजेक्ट
चीन ने सोमवार को 46 अरब डॉलर की ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ सीपीईसी परियोजना का बचाव किया। चीन ने कहा कि सीपीईसी परियोजना का मकसद क्षेत्र के लोगों की जीविका में सुधार करना है और इससे कश्मीर मुद्दे पर बीजिंग का रुख प्रभावित नहीं होगा।
दरअसल गिलगित-बाल्टिस्तान को अपना पांचवा प्रांत घोषित करने के पाकिस्तान के ‘मनमाना’ कदम के खिलाफ ब्रिटिश संसद में पेश प्रस्ताव पर चीन ने प्रतिक्रिया की दी थी। चीन ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा- सीपीईसी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट है। इसका मकसद इस इलाके के लोगों का विकास करना है। लेकिन, इसकी वजह से कश्मीर पर हमारा स्टैंड नहीं बदलेगा। ब्रिटिश संसद में लाए गए बिल पर प्रवक्ता ने कहा- ये सिर्फ एक प्रस्ताव है, रिजोल्यूशन पास नहीं किया गया है।
ब्रिटिश सांसद ने बिल किया था पेश
कुछ दिनों पहले ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद बॉब ब्लैकमेन ने एक बिल पेश किया था। बॉब कश्मीरी पंडितों के समर्थक माने जाते हैं। बिल में कहा गया कि पाकिस्तान ने 1947 से गिलगित-बाल्टिस्तान पर अवैध कब्जा किया हुआ है। इस प्रकरण में पाकिस्तान जिस तरह से आगे बढ़ रहा है, उससे इस इलाके में तनाव बढ़ सकता है।
क्या है पेश किये गए बिल में
ब्रिटिश संसद में पेश प्रस्ताव में कहा गया है कि गिलगित-बल्टिस्तान पर पाकिस्तान ने 1947 से अवैध कब्जा कर रखा है और वह इस विवादित क्षेत्र का अपने साथ विलय करने का प्रयास कर रहा है।
चीन के दबाव का नतीजा
पाकिस्तान की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आजादी के 70 साल बाद गिलगित-बाल्टिस्तान को 5वें राज्य के तौर पर दर्जा दिए जाने का फैसला वास्तव में चीन के दबाव का नतीजा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन इस इलाके को विवादित नहीं रहने देना चाहता क्योंकि सीपीईसी का ज्यादातर हिस्सा गिलगित-बाल्टिस्तान में ही है।
चीन की सफाई
चीन के प्रवक्ता ने कहा- कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच का मसला है और दोनों देशों को आपसी बातचीत से इसे सुलझाना चाहिए। उन्होंने कहा- जहां तक सीपीईसी का मसला है, तो ये चीन और पाकिस्तान के बीच का फ्रेमवर्क है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम कश्मीर पर अपनी नीति बदल लेंगे।
CPEC से चीन के फायदे
इस कॉरिडोर से चीन तक क्रूड ऑयल की पहुंच आसान हो जाएगी। चीन में आयात होने वाला 80 प्रतिशत क्रूड ऑयल मलक्का की खाड़ी से शंघाई पहुंचता है। अभी करीब 16 हजार किमी. का रास्ता है, लेकिन सीपीईसी से ये दूरी 5000 किमी घट जाएगी। चीन अरब सागर और हिंद महासागर में पैठ बनाना चाहता है। ग्वादर पोर्ट पर नेवी ठिकाना होने से चीन अपने बेड़े की रिपेयरिंग और मेंटेनेंस के लिए ग्वादर पोर्ट का इस्तेमाल कर सकेगा।
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