सऊदी अरब में महिलाओं को मिली ड्राइविंग की आजादी
नई दिल्ली। सऊदी अरब की महिलायें भी अब गाड़ी चला सकेंगी. सऊदी अरब ने महिलाओं को ड्राइविंग का अधिकार दे दिया है. दरअसल सऊदी के शाह सलमान बिन अब्दुल अजीज अल सऊद ने शाही फरमान जारी करते हुए महिलाओं को पहली बार ड्राइविंग की इजाज़त दे दी है. यह कानून साल 2018 से लागू होगा. अब तक सऊदी अरब में महिलाओं को गाड़ी चलाने की इजाजत नहीं थी. सऊदी अरब अकेला ऐसा देश है जहां महिलाओं को गाड़ी चलाने पर पाबंदी है. हालांकि महिलाओं को कार चलाने से रोकने वाला कोई कानून नहीं है, लेकिन धार्मिक मान्यताएं इनका समर्थन नहीं करतीं.
सऊदी अरब महिलाओं को वो सभी आजादी नहीं देता जो पुरूषों को हासिल है. सऊदी अरब में महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां हैं. दरअसल इस्लामिक धर्मगुरूओं के परिषद् ने फ़तवा जारी कर महिलाओं के ड्राइविंग पर रोक लगा रखा थी. फतवे में कहा गया कि इससे महिलाएं की नजदीकी पुरुषों के साथ बढ़ेगी. जिससे वे ऑपोजिट सेक्स के प्रति आकर्षित होंगी. साथ ही सऊदी मौलवी ये तर्क देते रहे हैं कि महिलाओं के गाड़ी चलाने से समाज भ्रष्ट हो जायेगा और गुनाह की ओर बढ़ेगा. कई सालों से सऊदी मौलवी महिलाओं के ड्राइविंग करने पर पांबदी लगाने के लिए कई वजह गिनाते रहे हैं, सऊदी अरब के एक मौलवी का कहना है कि गाड़ी चलाने वाली महिलाओं में अंडाशय के खराब होने का ख़तरा रहता है.
सऊदी अरब की महिलाओं के लिए खुल कर जीवन जीना शायद एक खूबसूरत ख्वाब ही है और उन्हें एक आजाद जिंदगी जीते देखना वहां के मर्दों के लिए किसी बुरे ख्वाब जैसा. शायद इसी वजह कर सऊदी अरब में महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां हैं. ये है पाबंदियों की फेहरिस्त जिसमें मना है- महिलाओं का ड्राइविंग करना, मेकअप करना, ऐसे कपड़े पहनना जिसमें शरीर दिखाई दे (कपड़े तंग नहीं होने चाहिए), पूरा शरीर सिर से पांव तक ढका होना चाहिए, जिसके लिए बुर्के डालना जरूरी है. पुरुषों से बात करना, स्विमिंग करना, खेल कूद में भाग लेना, खरीदारी के दौरान कपड़े ट्राइ करना, जिमिंग करना, बिना इजाज़त के घूमना, वगैरह-वगैरह.
सऊदी अरब में औरतें किसी मर्द के बगैर घर में भी नहीं रह सकती हैं. अगर घर के मर्द नहीं हैं तो गार्ड का होना जरूरी है. बाहर जाने के लिए घर के किसी मर्द का साथ होना जरूरी है.
इससे पहले राष्ट्रीय दिवस के जश्न के लिए राजधानी रियाद के मुख्य स्टेडियम में महिलाओं को आने की इजाजत दी गई थी. इस फ़ैसले से पहले केवल पुरुष ही स्टेडियम जाकर वहां आयोजित स्पोर्ट्स कार्यक्रम देख सकते थे. वहीं, साल 2015 के चुनावों में महिलाओं को पहली बार वोट देने का अधिकार दिया गया था.
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