सीरिया केमिकल हमला: राष्ट्रपति असद का लॉजिक क्या था?
एक हफ्ते पहले तक सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद काफी मजबूत स्थिति में नजर आ रहे थे। रूस का साथ होने के कारण कूटनीतिक स्तर पर भी उनकी स्थिति काफी अच्छी थी। रूस की मौजूदगी के कारण सुरक्षा परिषद भी उनके खिलाफ कदम नहीं उठा सकता था। पिछले 6 साल से सीरिया में गृहयुद्ध चल रहा है। जब से रूस ने असद को अपना समर्थन दिया, उसके बाद से ही विरोधी गुट पर उनको बढ़त मिलती गई। इसके बाद ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने। मध्य-पूर्व को लेकर अपनी रणनीति के बारे में ट्रंप ने साफ कर दिया था कि असद को सत्ता से हटाना उनकी प्राथमिकता नहीं है, बल्कि इस्लामिक स्टेट (ISIS) को हराना उनकी पहली वरीयता है।
असद के लिए ये सारी स्थितियां सकारात्मक मानी जा रही थीं। उन्हें कोई तात्कालिक खतरा नजर नहीं आ रहा था। मंगलवार को सीरिया के इदलिब प्रांत में हुए रसायनिक हमले ने पूरी तस्वीर पलट दी है। गुरुवार को ट्रंप ने सीरिया के सरकारी ठिकानों पर मिसाइल हमला करने की घोषणा कर दी। ऐसे में सवाल उठता है कि असद इतनी बड़ी भूल करके अपने लिए हालात क्यों बिगाड़ेंगे? इदलिब के जिस इलाके में यह रसायनिक हमला किया गया, वह विरोधी गुट के कब्जे में है, लेकिन हमले में निर्दोष नागरिक मारे गए।
मासूम लोगों पर इतना जानलेवा केमिकल हमला कर असद ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी क्यों मारी? हमले के बाद अपने टेलिविजन संबोधन में ट्रंप ने कहा कि इस हमले में प्रतिबंधित नर्व एजेंट्स का इस्तेमाल किया गया था। इससे पहले साल 2013 में राजधानी दमिश्क के बाहरी इलाके में भी असद ने केमिकल हमला कराया था। उसकी प्रतिक्रिया के तौर पर अमेरिका सैन्य हमला करने ही वाला था, लेकिन फिर आखिरी पलों में हुए समझौते के कारण अमेरिका ने अपने पांव पीछे खींच लिए थे। अब सवाल उठता है कि असद ने सबकुछ जानते-समझते हुए भी एक बार फिर इसी तरह का खतरा क्यों मोल लिया है
सीरियन सरकार ने कहा है कि इस हमले के पीछे उसका हाथ नहीं है। उसके सहयोगी और समर्थक देश भी यही दावा कर रहे हैं। मंगलवार को हुए हमले में रसायनिक हथियारों का इस्तेमाल होने के दावों को खारिज करते हुए सीरिया के समर्थक देश दलील दे रहे हैं कि ऐसा करना पागलपन होता, तो फिर सीरिया ऐसा क्यों करेगा? उधर विश्लेषकों का कहना है कि यह घटना नागरिकों के खिलाफ हमलों को बढ़ाने की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। असद सरकार पिछले कुछ समय से लगातार इस कोशिश में है कि आम लोगों की जिंदगी को ज्यादा से ज्यादा बदतर बनाए। विरोधी गुट के इलाकों में रहने वाले आम लोगों को निशाना बनाकर वह विरोधी गुट पर आत्मसमर्पण का दबाव बनाना चाहता है। सरकारी सेनाएं पिछले कुछ समय से जानबूझकर विरोधी गुट को इदलिब में जमा होने दे रही थीं। उनकी रसद सप्लाइ बंद करना और बम हमले करना उसकी इसी रणनीति का हिस्सा है। इस प्रांत में अल-कायदा से जुड़े कुछ आतंकवादी संगठन भी सक्रिय हैं। असद सरकार इसे भी अपने पक्ष में इस्तेमाल करती आ रही थी। नागरिकों की सुरक्षा को अनदेखा करते हुए इस क्षेत्र में किए जाने वाले अपने बम हमलों के पीछे असद सरकार इन्हीं आतंकवादी संगठनों को बहाने की तरह इस्तेमाल करती आ रही थी।
गुरुवार को सीरिया के विदेश मंत्री वालिद अल-मोअलेम ने कहा कि मंगलवार को हुए हमले में रसायनिक हथियार इस्तेमाल करने के दावे गलत हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं एक बार फिर जोर देकर कहता हूं कि सीरियन सेना ने न तो इस तरह के हथियारों का इस्तेमाल किया है और न ही आगे कभी वह ऐसा करेगी। ना केवल हमारे अपने लोगों पर, बल्कि आतंकियों पर भी हम इस तरह का हमला नहीं करेंगे।’ उधर रूस ने कहा है कि हो सकता है कि असद सरकार द्वारा गिराए गए बम विरोधियों द्वारा विकसित किए गए किसी रसायनिक हथियार के भंडार पर गिर गए हों।
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के आलोचकों का कहना है कि 2013 में जब असद सरकार ने केमिकल अटैक किया था, उस समय प्रतिक्रिया न करके उन्होंने एक तरह से असद को आश्वासन दिया था कि ऐसे मामलों में आगे भी वह बच जाएंगे। आलोचकों का यह भी कहना है कि इसी के बाद से असद ने आम नागरिकों पर हमले तेज कर दिए।
विश्लेषकों का कहना है कि ट्रंप के यह कहने पर कि असद सरकार को हटाना उनकी प्राथमिकता नहीं है, सीरियन सरकार का मनोबल और बढ़ गया। शायद यही वजह है कि असद सरकार और क्रूर तरीके अपनाने लगी। उसे यकीन था कि पश्चिमी देश उसके खिलाफ कोई कारगर कार्रवाई नहीं करेंगे। तस्वीर के इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखने पर लगता है कि पश्चिमी देशों, खासतौर पर अमेरिका द्वारा सीरिया में सरकार के हाथों हो रही ज्यादतियों पर इतने लंबे समय तक आंखें मूंदने के कारण राष्ट्रपति असद को शह मिली और मंगलवार को हुआ रसायनिक हमला इसी का एक उदाहरण है।
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