सच हुई अम्बेडकर की भविष्यवाणी, बीजेपी राज में SC/ST पर अत्याचार बढ़ा, सामाजिक स्थिति गिरी
गुजरात के अहमदाबाद के नजदीक एक गांव में एक SC युवक ने मूंछें रख लीं। उसकी जम कर पिटाई की गई और उसकी मूंछें साफ कर दी गईं। कर्नाटक के चिकमंगलूर जिले के गोनी बीडू पुलिस थाना क्षेत्र में एक एससी युवक को गांववालों की शिकायत पर हिरासत में लिया गया। हवालात में उसे पीटा तो गया ही, जब उसने पीने का पानी मांगा तो पुलिसवालों ने हवालात में बंद एक अन्य व्यक्ति से उसके मुंह में पेशाब करने को कहा। मध्य प्रदेश में एक एससी मजदूर के पेड़ काटने से इंकार करने पर उसके बच्चों के सामने उसकी पत्नी, जिसे पांच माह का गर्भ था, उसके साथ बलात्कार किया गया।
ये तीनों घटनाएं हाल की हैं और देश भर में एससी और अन्य हाशियाकृत समुदायों के शोषण और दमन की घटनाओं की बानगी भर हैं। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से इस तरह की घटनाओं में इजाफा हुआ है। सामान्यतः यह माना जाता है कि बीजेपी हिन्दुओं के हितार्थ काम करने वाली पार्टी है और इसलिए मुसलमान और ईसाई उसके निशाने पर रहते हैं। परन्तु ऐसा है नहीं। दरअसल, महिलाओं, SC/ST, पिछड़े वर्गों और आदिवासियों को भी संघ परिवार की ब्राह्मणवादी नीतियों के गंभीर कुपरिणाम भोगने पड़ रहे हैं।
वहीं ट्वीटर पर आज बहुजनों ने हो रहे अत्याचारों के खिलाफ #बहुजनहिताय_बहुजनसुखाय ट्रेंड कर रहे है ताकि बहुजन अपनी आवाज और बुलंद कर सके. जिसको लेकर अनिल धेनवाल आजाद समाज पार्टी के पूर्व अध्यक्ष ट्वीट कर लिखते है कि मुझे ऐसा लगा कि अगर हमनें फुले-शाहू-अंबेडकर की विचारधारा को आगे नहीं बढ़ाया तो इस देश का दबा-कुचला इंसान, सदियों तक उठकर खड़ा नहीं हो सकेगा। – मा. कांशी राम #बहुजनहिताय_बहुजनसुखाय
ऐसे में बी आर अम्बेडकर के ये शब्द हमें याद आना स्वाभाविक है: “अगर हिंदू राज सचमुच एक वास्तविकता बन जाता है तो इसमें संदेह नहीं कि यह देश के लिए भयानक विपत्ति होगी… हिन्दू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।” बीजेपी के केंद्र में सत्ता में आने की बाद से अम्बेडकर की यह भविष्यवाणी सच होती दिख रही है। SC पर बढ़ते अत्याचार उनकी सामाजिक स्थिति में आ रही गिरावट का कारण और परिणाम दोनों हैं। इसके समानांतर, एससी और अन्य वंचित वर्ग आर्थिक दृष्टि से भी कमजोर हो रहे हैं।
कई रिपोर्ट से यह साफ है कि मुसलमानों के साथ-साथ एससी और महिलाओं पर भी अत्याचार बढ़ रहे हैं। यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (यूएससीआईआरएफ) द्वारा प्रायोजित “कोंस्टीट्युशनल एंड लीगल चैलेंजेज फेस्ड बाई रिलीजियस माइनॉरिटीज इन इंडिया” शीर्षक रपट में कहा गया है कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों और एससी के साथ भेदभाव होता है और उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। उनके विरुद्ध नफरत-जनित अपराधों, उनके सामाजिक बहिष्करण और जबरदस्ती धर्मपरिवर्तन की घटनाओं में 2014 के बाद से तेजी से वृद्धि हुई है।
SC/ST और अन्य हाशियाकृत समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में भी गिरावट आई है। एससी-एसटी के लिए सकारात्मक कदम के रूप में आरक्षण की व्यवस्था की गई है, परन्तु इससे लाभान्वित होने वाले दलितों की संख्या बहुत कम है। बीजेपी सरकार ने आर्थिक आधार पर आरक्षण देकर सरकारी नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी और कम कर दी है। आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए पात्रता की शर्तें इस प्रकार निर्धारित की गईं हैं कि अपेक्षाकृत समृद्ध वर्ग भी इसके लिए पात्र हो गए हैं। पिछड़े वर्गों के मामले में ‘क्रीमी लेयर’ के प्रावधान के कारण उनका एक बड़ा तबका आरक्षण से वंचित हो गया है। इससे उनकी बेहतरी के लिए उठाया गया यह महत्वपूर्ण कदम निरर्थक सिद्ध होने की कगार पर है।
गौमांस के मुद्दे पर बीजेपी के अभियान ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया है। इससे किसानों और विशेषकर एससी पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। एससी का एक वर्ग गाय और गौमांस से जुड़े पेशों में संलग्न है। गाय के चमड़े के व्यवसाय पर पूर्ण रोक ने एससी के आर्थिक हितों पर चोट की है। गौरक्षा के नाम पर लिंचिंग की जो घटनाएं हुईं हैं उनमें से अधिकांश में पीड़ित दलित हैं। गुजरात के ऊना में सात दलितों को नंगा कर बेरहमी से पीटा जाना परंपरागत रूप से इस व्यवसाय से अपना जीवनयापन करने वाले एससी समुदायों के लिए एक चेतावनी थी।
एक ओर एससीका सामाजिक और आर्थिक हाशियाकरण किया जा रहा है तो दूसरी ओर वोटों की खातिर उन्हें हिंदुत्व के पाले में लाने की कोशिशें भी हो रहीं हैं। बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग और अन्य सांस्कृतिक उपकरणों की मदद से एससी, आदिवासियों और ओबीसी की बहुलता वाले क्षेत्रों में घुसपैठ कर ली है। इन इलाकों से बड़ी संख्या में बीजेपी सांसद और विधायक चुने गए हैं। देश भर में एससी के लिए 84 लोकसभा सीटें आरक्षित हैं। सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के अनुसार 2014 में बीजेपी ने इनमें से 40 सीटें जीतीं थीं।
संघ के अनुषांगिक संगठनों जैसे सामाजिक समरसता मंच, वनवासी कल्याण आश्रम और विश्व हिन्दू परिषद आदि ने एससी-एसटी क्षेत्रों में जड़ें जमाने में बीजेपी की मदद की है। इन संगठनों ने पिछले तीन दशकों में इन इलाकों में जमकर घुसपैठ की है और राजनैतिक लाभ, विशेषकर चुनाव जीतने, के लिए अनुसूचित जातियों और आदिवासियों को अपने साथ लेने के लिए हर संभव प्रयास करते रहे हैं।
अनुसूचित जाति-आदिवासी इलाकों में ब्राह्मणवादी धार्मिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है। इन समुदायों के कई नायकों जैसे सुहेल देव की छवि को मुस्लिम-विरोधी और ब्राह्मणवादी के रूप में गढ़ दिया है। बीजेपी और उसके सहयोगी संगठन अम्बेडकर को अपना नायक बताते हैं परन्तु अम्बेडकर को प्रिय मूल्यों और समानता, बहुवाद और विविधता के सिद्धांतों की खिलाफत करते हैं।
बीजेपी कुछ ऐसे अनुसूचित जाति के नेताओं को अपने झंडे तले ले आई है जो किसी भी हालत में सत्ता में बने रहने चाहते हैं। इन नेताओं का इस्तेमाल पार्टी अपने राजनैतिक एजेंडा को लागू करने के लिए करना चाहती है।
परन्तु यह सब लम्बे समय तक चलने वाला नहीं है। अनुसूचित जाति समुदायों के युवा धीरे-धीरे बीजेपी के असली हिन्दू राष्ट्रवादी चेहरे और एजेंडे से वाकिफ हो रहे हैं। उनकी गिरती आर्थिक स्थिति से वे परेशान हैं। अपने समुदाय पर बढ़ते अत्याचारों और अपनी महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों से वे दुखी और आक्रोशित हैं। वे ब्राह्मणवादी राष्ट्रवादियों की धूर्त चालों को समझने लगे हैं।
जिग्नेश मेवानी और चंद्रशेखर जैसे नई पीढ़ी के बहुजन नेता अम्बेडकर की हिन्दू राज के बारे में चेतावनी को याद कर रहे हैं। वे देख रहे हैं कि अनुसूचित जाति की सामाजिक-आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो रही है और उनके हाथ में कथित सम्मान की लॉलीपॉप के अलावा कुछ भी नहीं है। दमित वर्गों पर बढ़ते अत्याचार और उनका आर्थिक हाशियाकरण हमें बीजेपी के असली एजेंडे से परिचित करवाता है। और वह है आबादी के एक बड़े हिस्से को दबा कर रखना। यह तो समय ही बताएगा कि एससी और अन्य वंचित वर्ग संघ परिवार के जादू से कब तक मुक्त होते हैं।
ये लेख राम पुनियानी का है.
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