26 मई को किसान आंदोलन 6 महीनें, मोदी सरकार के नीतियों के खिलाफ इन राज्यों में मनाया जाएगा काला दिवस
किसान बेहद विपरीत परस्थतियों में भी अपने आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं। दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन अपने छह महीने पूरे करने जा रहा है। इस दौरान किसान लगातार सरकारी दमन और मौसम की मार भी झेल रहे हैं लेकिन वो अभी भी अपनी मांगों को लेकर पूरे जोश के साथ संघर्ष कर रहे हैं। किसानों का साफ कहना है कानूनों की वापसी से कम कुछ और मंज़ूर नहीं है लेकिन सरकार तो मांगे मानने की बात दूर, वो शुरुआती वार्ताओं के बाद किसानों से अब बातचीत भी नहीं कर रही है। किसान लगातार शांतिपूर्ण ढंग से अपना विरोध जता रहे हैं। उन्होंने 21 मई 2021 को सरकार को पत्र लिखकर वार्ता की टेबल पर आने को कहा है। 26 मई को किसान आंदोलन के छह महीने पूरे हो जाएंगे, इसी समय मोदी सरकार के सात साल भी पूरे होंगे। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने 26 मई, 2021 को भारतीय लोकतंत्र के लिए काला दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया है। जिसका देशभर में मज़दूर संगठनों के केंद्रीय संयुक्त मंच ने भी समर्थन किया है। साथ ही वामपंथी दल और उसके सहयोगी नौजवान और छात्र संगठनों ने भी इस आह्वान का खुलकर समर्थन किया है।
केंद्रीय मज़दूर संगठन सीटू, एटक, ऐक्टू , इंटक , सेवा सहित दस ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने भी 26 मई को काले दिवस के रूप में मानाने का आवाह्न किया है। केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा गरीब परिवारों को नकद हस्तांतरण, सभी जरूरतमंदों को सार्वभौमिक रूप से मुफ्त राशन, मनरेगा के विस्तार और शहरी क्षेत्रों के लिए नई रोजगार योजना, सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण के खिलाफ उनकी निरंतर मांगों पर अखिल भारतीय हड़ताल का आह्वान किया गया था।
ट्रेड यूनियनों ने कहा “हम 26 मई को भारतीय लोकतंत्र के लिए काला दिवस के रूप में मनाएंगे, काले बैज पहनकर, काले झंडे के साथ विरोध करेंगे। हम इस दिन संकल्प लेंगे की जब तक हम अपनी मांगों को पूरा नहीं कर लेते, तब तक चैन से नहीं बैठेंगे।
ट्रेड यूनियनों की मांग :
- सभी के लिए मुफ्त टीका।
- सरकार द्वारा संचालित सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को सभी स्तरों पर मजबूत करें।
- सभी असंगठित/अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों और बेरोजगार लोगों को मुफ्त खाद्यान्न और प्रति महीने 7500/- रुपये की नकद सब्सिडी के रूप में तत्काल मदद करें।
- तीन कृषि कानूनों को निरस्त करें, बिजली (संशोधन) विधेयक, 2021 को वापस लें, कृषि उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने वाला कानून बनाएं,
- केंद्रीय नियमों के मसौदे के साथ 4 श्रम संहिताएं वापस लें और तुरंत भारतीय श्रम सम्मेलन बुलाएं।
- सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सरकारी विभागों के निजीकरण/निगमीकरण की नीति को वापस ले।
- भाजपा और उसके सहयोगियों द्वारा शासित राज्यों द्वारा 3 साल की अवधि के लिए 38 श्रम कानूनों के सभी मनमाने निलंबन को वापस लें, जो खुले तौर पर अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों का उल्लंघन करते हैं।
इसी तरह कई राज्यों में भी मज़दूर ,किसान और नौजवान विरोध प्रदर्शन की तैयारी कर रहे है। राज्यों में विरोध प्रदर्शन में केंद्रीय मांगों के साथ ही स्थानीय मांगो को भी शामिल किया गया है।
हिमाचल: कोरोना काल में मज़दूरों के अधिकारों कटौती को लेकर 26 मई को हल्ला बोल
हाल ही में सीटू हिमाचल राज्य कमेटी की ऑनलाइन बैठक सम्पन्न हुई जिसमें केंद्र व प्रदेश सरकार द्वारा कोविड-19 महामारी में आम जनता को मेडिकल व अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने में नाकामी तथा इस दौरान सरकार की मजदूर कर्मचारी व कोविड योद्धा विरोधी नीतियों का कड़ा विरोध किया गया। सीटू ने निर्णय लिया है कि 26 मई को कोरोना योद्धाओं को उचित किट सहित अन्य सम्मानजनक सुविधाएं देने,उन्हें डयूटी के बाद क्वारन्टीन पीरियड सुनिश्चित करने व बीमारी से लड़ते हुए शहादत पाने वाले कोरोना योद्धाओं को पचास लाख की बीमा सुविधा व उनके परिवार वालों को रोज़गार उपलब्ध करवाने की मांग को लेकर पूरे प्रदेश में धरना प्रदर्शन करेगा व सरकार की मजदूर व कर्मचारी विरोधी नीतियों के खिलाफ काला दिवस मनाएगा।
सीटू के प्रेस बयान के मुताबिक़ इस दिन प्रदेश भर में धरने प्रदर्शन होंगे। सीटू ने आशा कर्मियों, आंगनबाड़ी कर्मियों, सभी नियमित व आउटसोर्स मेडिकल कर्मियों, सभी जगह कार्यरत सफाई कर्मियों, सोसाइटी कर्मियों आदि को कोविड योद्धा का दर्ज़ा देने की मांग की है व इसे अक्षरशः लागू करने की मांग की है। सीटू ने पिछले सवा एक साल में कोरोना डयूटी के दौरान जान गंवाने वाले सभी कर्मियों को बीमा कवर सुनिश्चित करने की मांग की है।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, उपाध्यक्ष भूपेंद्र सिंह व महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि केंद्र व प्रदेश सरकार की कोविड महामारी में असफलता व इनकी मजदूर कर्मचारी विरोधी तथा पूँजीपतिपरस्त नीतियों के खिलाफ हिमाचल प्रदेश में गहन अभियान चलाया जाएगा। इसके तहत 26 मई को काला दिवस मनाया जाएगा। इसी कड़ी में 30 मई को सीटू के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर प्रदेश भर में सीटू का ध्वजारोहण करने के साथ ही जगह-जगह सेमिनार व अन्य कार्यक्रम आयोजित करके केंद्र व प्रदेश सरकार की नीतियों की पोल खोली जाएगी। सीटू ने फैसला लिया है कि एक से दस जून तक प्रदेश भर में बारह सूत्रीय मांग पत्र पर प्रचार अभियान चलाकर मजदूरों व जनता को शिक्षित किया जाएगा।
उन्होंने कहा है कि केंद्र व प्रदेश सरकार कोरोना की आड़ में मजदूर वर्ग पर हमला बोल रही हैं। इसी क्रम में कुछ लेबर कोडों के नियम फाइनल कर दिए गए हैं जोकि पूर्णतः मजदूर विरोधी हैं। हिमाचल प्रदेश के लगभग पांच हज़ार से ज़्यादा कारखानों में कार्यरत लगभग साढ़े तीन लाख मजदूरों के कार्य के घण्टों को प्रदेश सरकार ने आठ से बढ़ाकर पुनः बारह घण्टे कर दिया है जोकि गैर कानूनी व संविधान विरोधी कार्य है।
बिहार में भी 26 मई को किसानों से प्रतिरोध दिवस मनाने का आह्वान
बिहार राज्य में किसान मज़दूर संगठनों के साथ ही वाम दलों ने भी 26 मई को विरोध दिवस मानाने का आवाह्न किया है। माकपा राज्य सचिव अवधेश कुमार ने कहा आज एक तरफ बिहार में सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कहीं भी गेहूं की खरीद नहीं हो रही है। खरीद की सरकारी घोषणा पूरी तरह झूठी और भ्रामक है। वहीं दूसरी तरफ खादों की कीमतों में की गई बढ़ोतरी ‘जले पर नमक छिड़कने’ जैसा है। यह मोदी सरकार का आपदा को अवसर में बदलने का ज्वलंत उदाहरण है।
उन्होंने कहा सरकार का यह कदम घोर किसान विरोधी एवं कंपनियों को लूटने का अवसर प्रदान करने वाली है। सरकार का यह कदम किसानों का सम्मान है या बर्बादी? पार्टी सरकार की घोर किसान विरोधी नीतियों की निंदा करती है और मांग करती है की खाद कंपनियों द्वारा बढ़ाए गए कीमतों पर तुरंत रोक लगाई जाए एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य पर राज्य में गेहूं की खरीद की गारंटी सुनिश्चित की जाय।
मध्य प्रदेश: माकपा ने 21 मई को मनाया विरोध दिवस, 26 को कला दिवस मनाने का आह्वान
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने 21 मई को पूरे प्रदेश में विरोध दिवस मनाया । इस दिन प्रत्येक पार्टी ब्रांच जांच, इलाज और राहत की मांगों को लेकर शाम 4.00 बजे से 6.00 बजे तक फिजीकल डिस्टेंस के साथ पोस्टर्स, फैस्टोन्स लेकर विरोध प्रदर्शन किया और महामारी और उसके असर से बचाव और राहत की मांगे उठाई गईं।
सीपीएम राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने विरोध दिवस की मांगों की जानकारी दी। इनमें सभी स्रोतों से: घरेलू और विदेशों से भी व्यापक पैमाने पर टीकों की व्यवस्था की जाए और युद्ध स्तर पर सबको टीके लगाये जाने, केंद्रीय बजट में टीकाकरण के लिए आवंटित 35000 करोड़ के बजट को खर्च किये जाने, सेंट्रल विस्टा (नए मोदी महल और संसद भवन) के निर्माण के काम को तुरंत रोक कर उसके लिए आवंटित 20 हजार करोड़ रुपए को ऑक्सीजन और उपकरणों व दवाओं की उपलब्धता पर खर्च किये जाने, सभी जरूरतमंदों को मुफ्त में राशन मुहैया कराने, उस राशन में केरल की तरह सभी 17 आवश्यक वस्तुओं को शामिल करने, आयकर टैक्स न देने वाले समस्त परिवारों के खाते में 6000 रुपये प्रति माह जमा करने, किसी भी जांच से परे और निजी बना दिए गए पीएम केयर फंड में से पैसा निकाल कर ऑक्सीजन और अन्य चिकित्सा उपकरण और टीके खरीदे जाने के साथ तीनों कृषि कानूनों को रद्द किये जाने की मांगें शामिल हैं ताकि लाखों अन्नदाताओं को महामारी से बचाया जा सके। उपरोक्त छ: मांगों के अलावा अन्य जो भी स्थानीय मांगें भी शामिल की जाएंगी। इन्हे लेकर 21 मई को विरोध दिवस का आयोजन किया गया था ।
माकपा राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने भाजपा सरकार की नीतियों की निंदा करते हुए कहा कि उसने कोरोना की स्थिति के संबंध में जिला स्तर पर गठित सर्वदलीय समितियों में सीपीएम सहित कई राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को को शामिल नहीं किया है। उन्होंने बताया कि इसका विरोध करते हुए जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपे जाएंगे।
माकपा की राज्य इकाई ने 26 मई को किसान आंदोलन के छह माह पूरे होने पर किसान संगठनों के इस दिन को काला दिवस के रूप में मनाने के आह्वान का समर्थन किया है। वो इसके लिए पूरी तैयारी भी कर रहे हैं।
दिल्ली : मज़दूर संगठन, छात्र और नौजवान के साथ मिलकर 26 मई को मनाएंगे काला दिवस!
दिल्ली में भी मज़दूर संगठन, छात्र और नौजवान के साथ मिलकर 26 मई को काला दिवस मनाएंगे। जबकि महामारी के दौरान दिल्ली में मज़दूरों की खस्ता हाल को लेकर मज़दूर संगठन सीटू लगातार मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और एलजी को चिट्ठी लिख रहा है और उनसे मज़दूरों की मदद की अपील कर रहा है लेकिन अभी तक सरकारों की घोषणा के आलावा ज़मीन पर बहुत कुछ होता नहीं दिख रहा है। ऐसे में अपनी तीसरी और अंतिम चिठ्ठी में उन्होंने दो टूक कहा की सरकारी राहत नाकाफ़ी है। दिल्ली के मज़दूरों को कोरोना की दोहरी मार से राहत दिलाने के लिए तुरंत ठोस कदम उठाओ।
सीटू दिल्ली की माँगें प्रकार है :
- राशन ई-कूपन में पहचान कार्ड की बाध्यता खत्म करो।
- राशन किट में चावल, आटा, दाल, नमक, तेल, मसाले, चना, सेनेटाइजर, मास्क आदि मुहैया कराओ जिससे मज़दूर इस संकट के दौर में न्यूनतम पौष्टिक भोजन सम्मान के साथ पा सकें।
- सभी को राशन व्यवस्था के दायरे में शामिल करो। प्रवासी श्रमिकों के लिए राशन की दीर्घकालिक व्यवस्था लागू करो।
- प्रवासी श्रमिकों के लिए वेलफेयर बोर्ड का गठन करो।
- रेहड़ी-पटरी श्रमिक, घरेलू कामगार आदि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों समेत सभी गैर-आयकरदाता परिवारों को तुरंत कोविड आर्थिक सहायता उपलब्ध करो।
- 2008 से ठंडे बस्ते में डाले गए असंगठित क्षेत्र के लिए राज्य स्तरीय वेलफेयर बोर्ड की योजना को लागू करो।
- कोई भी फैक्ट्री मालिक कोरोना की आड़ में औद्योगिक मज़दूरों की छंटनी, तालाबंदी न करे, इस बाबत तुरंत सरकारी आदेश जारी करो।
26 मई को पूरे प्रदेश में मनाया जाएगा काला दिवस : छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन
संयुक्त किसान मोर्चा और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के देशव्यापी आह्वान पर छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन और इससे जुड़े घटक संगठन मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ 26 मई को पूरे प्रदेश में काला दिवस मनाएंगे। और इस सरकार की मजदूर-किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करेंगे।
छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, राजनांदगांव जिला किसान संघ, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति (कोरबा, सरगुजा), किसान संघर्ष समिति (कुरूद), आदिवासी महासभा (बस्तर), दलित-आदिवासी मजदूर संगठन (रायगढ़), दलित-आदिवासी मंच (सोनाखान), भारत जन आन्दोलन, गाँव गणराज्य अभियान (सरगुजा), आदिवासी जन वन अधिकार मंच (कांकेर), पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति (बंगोली, रायपुर), उद्योग प्रभावित किसान संघ (बलौदाबाजार), रिछारिया केम्पेन, छत्तीसगढ़ प्रदेश किसान सभा, छत्तीसगढ़ किसान महासभा, परलकोट किसान कल्याण संघ, वनाधिकार संघर्ष समिति (धमतरी), आंचलिक किसान संघ (सरिया) सहित कई अन्य संगठन भी शामिल हैx।
संयुक्त रूप से जारी एक बयान में छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम व आलोक शुक्ला, संजय पराते, नंद कश्यप आदि ने बताया कि इस दिन संघ-भाजपा की मोदी सरकार की मजदूर-किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करते हुए ग्रामीण जन अपने घरों व वाहनों में काले झंडे लगाएंगे तथा सरकार का पुतला दहन करेंगे। पूरे राज्य में इस कार्यवाही को छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन से जुड़े 20 से ज्यादा संगठन संगठित करेंगे। किसान आंदोलन ने समाज के सभी तबकों, व्यापारियों और ट्रांसपोर्टरों से इस आंदोलन का समर्थन करने की अपील की है।
किसान आंदोलन के नेताओं ने बताया कि किसान विरोधी तीनों काले कानून और मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताओं को वापस लेने, सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का कानून बनाने, रासायनिक खादों के मूल्यों में की गई वृद्धि वापस लेने, रासायनिक खादों के मूल्यों में की गई वृद्धि वापस लेने, सभी कोरोना मरीजों का मुफ्त इलाज करने तथा देश के सभी नागरिकों का बिना किसी भेदभाव के मुफ्त टीकाकरण करने, महामारी को देखते हुए सभी गांवों में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ कोविड अस्पताल खोलने तथा दवाओं व ऑक्सीजन की कालाबाज़ारी पर रोक लगाने आदि मांगों को केंद्र में रखकर ये विरोध कार्यवाहियां आयोजित की जा रही है।
छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन ने प्रदेश के किसानों, ग्रामीण जनता, प्रदेश में कार्यरत सभी किसान संगठनों तथा ट्रेड यूनियनों सहित समाज के सभी तबकों से अपील की है कि देश को बचाने की इस लड़ाई में वे शामिल हों, ताकि भारत को ‘कॉर्पोरेट इंडिया’ में बदलने की मोदी सरकार की साजिश को विफल करें।
सयुंक्त किसान मोर्चा ने यह भी अपील की है कि बहस का मुख्य मुद्दा तीन कृषि कानून व MSP ही होना चाहिए। इतने लंबे प्रदर्शन के दौरान किसान संगठनों के मुताबिक 470 किसानों की मौत के बाद भी सरकार किसानों को दिखावे के तौर पर खुश रखना चाहती है तो यह बहुत शर्म की बात है। सरकार अपनी इमेज पर ज्यादा ध्यान देती है न कि किसान कल्याण पर। सरकार को किसानों की मांगे मानकर असल मे किसान कल्याण करना चाहिए। सरकार किसानों से दुबारा बातचीत शुरू करें व किसानों की मांगें मानें।
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