“मराठा आरक्षणामुळे काय त्रास झाला की चार उच्च न्यायाधीशांनी कोरोना साथीच्या दरम्यान निर्णय घेतला?”
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने आज अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि आरक्षण को 50 % से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता इसलिए मराठा आरक्षण असंवैधानिक है।
सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने आज अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि आरक्षण को 50 % से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता इसलिए मराठा आरक्षण असंवैधानिक है। पीठ ने एक मत से कहा कि ‘ऐसी कोई खास परिस्थितियां नहीं थी कि मराठा समुदाय को 50 % सीमा से बढ़कर आरक्षण दिया जाए’
संवैधानिक पीठ के मुखिया जस्टिस अरुण भूषण ने कहा ‘ना ही गायकवाड़ कमीशन और ना ही हाईकोर्ट 50 % की सीमा से आगे जाने की वजह बता पाया।’ बेंच ने कहा कि महाराष्ट्र Socially and Educationally Backward Class एक्ट के तहत मराठाओं को सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़ा मानना समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है।
बेंच ने मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षा में मिले आरक्षण को ख़ारिज कर दिया। हालाँकि कोर्ट ने ये साफ़ कर दिया है कि मराठा आरक्षण के तहत 9 सप्टेंबर 2020 तक मिले मेडिकल एडमिशन पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।
जस्टिस अशोक भूषण, एल नागेश्वर राव, s. अब्दुल नज़ीर, हेमंत गुप्ता और एस. रविंद्र भट्ट की बेंच ने कहा है कि आरक्षण पर 50 % की सीमा लगाने वाले इंदिरा साहनी जजमेंट पर दोबारा विचार करने की कोई ज़रूरत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि इंदिरा साहनी जजमेंट को कई फ़ैसलों में दोहराया गया है और उसे स्वीकार्यता है।
मराठा आरक्षण को लेकर ट्वीटर पर भी लोग #मराठा_आरक्षण ट्रेंड कर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे है, वही इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल अपने फेसबुक वॉल पर लिखते है कि
मराठा आरक्षण को लेकर ऐसी कौन सी आफ़त थी कि चार सवर्ण जजों ने कोरोना महामारी के बीच में फ़ैसला सुना दिया। रुक जाते तीन-चार महीने तो आसमान नहीं फट जाता। EWS आरक्षण पर जिस तरह कुंडली मारकर बैठे हो, वैसे ही मराठा आरक्षण पर भी ठहर जाते। हम सब समझ रहे हैं। सवर्ण आरक्षण पर 10% की लिमिट क्यों लागू नहीं होगी?
संवैधानिक पीठ ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को बनाने वाले 102वें संवैधानिक संशोधन को दी गई चुनौती को भी ख़ारिज कर दिया। बेंच ने इस दलील को ख़ारिज कर दिया कि 102वें संवैधानिक संशोधन से संविधान के बुनियादी ढाँचे से कोई छेड़छाड़ हुई है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से एक बार फिर से वही सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिर इस देश में आबादी के हिसाब से अनुपात कब मिलेगा? देश की बहुसंख्यक आबादी को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है जबकि चंद जातियों के लोग खूब मलाई खा रहे हैं।
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