रेप भला कोई मुद्दा है? ‘मीडिया वाले भई.. वाह क्या कहने तुम्हारे…’
~नेमत तौहीद
संसार में लोग ना जाने कितने अपराध करते हैं। चाहे वह छोटी हो या बड़ी लेकिन उसकी कुछ ना कुछ सजा होती है मुआवजा होता है। उन अपराधों की श्रेणी में बलात्कार भी आता है जो जघन्य अपराध माना गया है। यह एक भारत की ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में इससे महिलाएँ अछूती नहीं हैं। यूँ कहें तो बलात्कार एक वैश्विक समस्या बन गयी है जिससे महिलाएं अब हर पल डर के साये में जी रहे हैं।
उनको घर से जाने का पता तो होता है लेकिन वापस आने का नहीं होता है। कब कौन कहाँ से अपहरण कर लें या राह चलते छेड़छाड़ हो या उससे भी आगे की वारदात हो। कुछ भी कहा नहीं जा सकता।
आज वो सुरक्षित कहीं भी महसूस नहीं कर रहीं हैं चाहे वो घर हो या बाहर, स्कूल हो या कॉलेज, निजी दफ्तर हो या सरकारी दफ्तर। हर जगह उनका शोषण हो रहा है और इस पर कोई ठोस कदम उठाया ही नहीं गया है। अगर हम बात करें कि जब भी कोई घटना होती है और हमें पता चलता तो खून खौल जाता है और कुछ दिनों तक हम खूब चर्चा करते हैं साथ ही सोशल मीडिया पर भी भर-भर के लिखते हैं
लेकिन क्या हफ्ते 10 दिन में सब ठीक हो जाता है? नहीं.. हो ही नहीं सकता यूँ चंद दिनों में क्योंकि हम फिर से अपने काम मे लग जाते हैं और दूसरी घटना का इन्तजार करने हैं कि जब ऐसा होगा तो फ़िर से मार्च निकालेंगे, मोमबत्तियां जाएंगे, आक्रोश दिखाएंगे और फिर अपने वही पुराने ढर्रे पर आ जाएंगे। लेकिन क्या कभी आपने इस पर शांत मन से सोचा है? कभी गंभीरता से इस पर गौर किया है? कुछ महसूस हुआ है? शायद नहीं.. तो आइये थोड़ा इस पर हम गौर फरमाते हैं।
आँख बन्द करके 5 से 10 मिनट तक सिर्फ़ ये सोचना
आज सब लोग एक बार सोने से पहले आँख बन्द करके 5 से 10 मिनट तक सिर्फ़ ये सोचना कि अगर कल मैं राबिया की जगह हुई या मेरा कोई अपना हुआ तो.. कैसे मुझे दरिन्दे नोच-नोच कर अपनी हवस मिलाएँगे, कैसे.. कैसे.. मुझे तड़पा तड़पा कर काटा जाएगा, कैसे मुझे लोग बलात्कार कर रहे होंगे, कैसे चाकुओं से मेरे बदन के हर अंग को घोंप घोंप कर मारा जाएगा, मुझे जानवरों की तरह मेरे एक एक स्तन को बारी-बारी से काटा जाएगा, मैं तड़प रही होऊँगी, प्राइवेट पार्ट्स को काटेंगे, मैं चिल्लाती चीखती रहूँगी लेकिन कोई ना होगा बचाने वाला.. मरने के बाद भी चैन कहा से आएगा क्योंकि उसके बाद ही तो आचरण पर लांछन लगाया जाएगा फिर जो मन मे आएगा वही कहा जाएगा।
जनता क्या आवाज़ उठाएंगी मेरे लिए? भला क्यों उठाएंगी जनता मैं तो किसी के लिए नहीं बोल रहीं/ रहा हूँ। मेरे लिए या मेरे परिवार के लिए कोई क्यों आवाज़ बुलंद करे? क्या पडी है इस मामले से? ये तो आम बात हो गयी है? हां.. आम होता है वो खास बन जाता है और ज्वलंत मुद्दा भी हल्के में लिया जाता है।
पुलिस वाले भाई साहब कमाल करते हो पांडे जी.. बलात्कार क्या है ये तो मैडम होते रहता है यही काम रह गया है क्या हमारा? हम अपनी जिंदगी ना जिएं? मर जाए केस के पीछे भाग भाग के? हमारा भी एक परिवार है उनके साथ भी जीना है। भई ऐसा है जाओ आप आना बाद में अभी तो हमें चाय पकौड़े खाने दो..।
क्या होगा दूसरे मुल्कों का?
प्रधानमंत्री जी, मुख्यमंत्री जी, आयोग के अधिकारी जन सभी लोग अपने अपने महत्वपूर्ण कार्य में लगे हैं। आए दिन देश दुनिया भर की चिंता डुबाए जा रही है। क्या होगा दूसरे मुल्कों का? बहुत महत्त्वपूर्ण कार्यों में लगे हुए हैं भाई साहब बलात्कार क्या है ये तो आम बात है.. ये तो भाई होता रहेगा इस पर क्या बोलना या लिखाना है या क्यों परिवार वालों से मिलना है?
जब वोट लेना होगा तो चलेंगे उनके फटेहाल जिंदगी में भी उनके पत्तेदार प्लेट पर हँसते हुए खाना खाएंगे और कहेंगे कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और क्या बस हो गया हमारा काम.. बलात्कारियों को मंत्री बनाएंगे उनकी सत्ता में पकड बढ़ाएंगे ताकि बलात्कार का तूफ़ान थमे नहीं निरंतर चलता रहे और साथ ही महिलाओं को भी लाएंगे जो आगे चलकर ऐसे मुद्दे को चुपचाप देखती रहें और पीछे से सेक्स रैकेट चलाने में पूरा सहयोग दें उन्हीं को मंत्रिमंडल में बैठने का मौका मिलेगा।
बेवक़ूफ़ लोग सालों से मेहनत कर के आईएएस/आईपीएस बनेंगे वो हमलोग को सलाम ठोकेंगे। मंत्री को क्या कोई पढ़ाई थोड़े करनी ज़रूरत है वो तो पढ़ें लिखे बेवक़ूफ़ लोग हमारे इशारे पर नाचेंगे। कुछ वीआईपी सुविधा देकर अपने हिसाब से करवाएंगे काम। बलात्कार क्या है भाई ऑफिसर तो सरकारी गुलाम है वो क्या बोलेगा? आका के इशारे का इन्तजार करेगा हुक्म का पालन करेगा।
मीडिया वाले भई.. वाह क्या कहने तुम्हारे…
मीडिया वाले भई.. वाह क्या कहने तुम्हारे… दूसरे मुल्कों में महिलाएं असुरक्षित हैं रेप हो रहा है। सरकार उनकी सुनेगी नहीं बड़ा बुरा हाल है रे भैया… ओहो ओहो करते थक नहीं रहे हैं। अपने देश मे भी बुला लिया शरण देने के लिए अच्छी बात है। लेकिन क्या अपने देश मे महिलाएँ सुरक्षित हैं? इसपर कोई चर्चा नहीं। बलात्कार क्या है..? होता रहता है.. अब क्या ये कोई न्यूज दिखाने की है? भारत की छवी धूमिल हो जाएगी। ये सब नहीं दिखाना रे बाबा. . . ना.. ना.. ना.. जब तक लोग सड़कों पर नहीं आएंगे और जब तक लोग अनशन नहीं कर लेते तब तक ये सब क्यों करना? फ़िलहाल तो तालिबानी के पीछे पड़े रहना ठीक है बाकी मुद्दा सब भूल जाएगें।
( ये लेख नेमत तौहीद फरिश्ते फाउंडेशन, फाउंडर हैं उनके निजी विचार है, इसके लिए नेशनल इंडिया न्यूज़ के संपादकीय टीम को जिम्मेंदार ना माना जाएं। )
Remembering Maulana Azad and his death anniversary
Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…