अखबारनामा : किसके पक्ष में पॉलिटिक्स कर रहे बिहार के अखबार
दोस्तों, ऐसा केवल बिहार में ही नहीं होता। पूरी दुनिया में मीडिया राजनीति का हिस्सा है। फिर चाहे वह अमेरिका में होने वाला चुनाव हो या फिर दक्षिण अफ्रीका में। हालांकि हर देश में मीडिया के अपने इथिक्स होते हैं। इथिक्स मतलब नैतिकता संबंधी मानदंड। यह मानदंड हर देश में अलग-अलग है। भारत में भी इसका मानदंड अलग है। भारत में ही अलग-अलग प्रांतों में अलग। मतलब यह कि किसी अखबार की नैतिकता दिल्ली और बिहार में अलग-अलग होगी। उसके तरीके अलग-अलग होंगे।
सवाल यही है कि कौन है तो इस नैतिकता का निर्धारण करता है? क्या वह पाठक व दर्शक हैं जो यह तय करते हैं? क्या इनकी कोई भूमिका भी होती है? सामान्य तौर पर भारतीय मीडिया वन-वे कम्यूनिकेशन है। जनता तक चयनित सूचनाएं पहुंचाई जाती हैं और खास तरह के विचार परोसे जाते हैं। इसमें भारतीय पाठक का हस्तक्षेप बहुत कम होता है।
आपको यह जानकर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि भाषा के आधार पर भी नैतिकता का पारामीटर बदलता है। सामान्य अर्थों में कहें तो भारत के अंग्रेजी अखबार हिन्दी के अखबारों की तुलना में अधिक नैतिकवान हैं। इसकी वजहें भी हैं। एक वजह तो यह कि अंग्रेजी अखबारों का पाठक वर्ग गरीब नहीं है। अंग्रेजी अखबार आप किसी नुक्कड़ पर चाय की दुकान में नहीं मिलेगी। वहां मिलेगा तो केवल हिन्दी अखबार। उसमें भी वह अखबार जो समय-समय पर अपने पाठकों को तोहफे बांटता फिरता है। बिहार जैसे बीमार राज्य में तो अंग्रेजी के अखबार केवल शहरों तक सीमित हैं। गांवों में इनका सर्कूलेशन होता ही नहीं।
अंग्रेजी अखबारों के नैतिकवान होने की एक वजह यह है कि इसके पाठक शिक्षित हैं। अखबार वाले इनसे झूठ नहीं बोल सकते। बरगला नहीं सकते। इसलिए भी अंग्रेजी के अखबारों का स्तर ऊंचा रहता है। जबकि हिन्दी के अखबारों में आपको तमाम तरह के तत्व मिल जाएंगे जिनसे आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि अखबार कैसे लोगों को बरगला रहा है।
खैर, यह कार्यक्रम अखबारों पर केंद्रित है और चूंकि बिहार में चुनावी संग्राम शुरू हो गया है तो हम इसी पर फोकस करेंगे कि बिहार के अखबार लोगों को कैसे और किस हदतक बरगला रहे हैं। आज हम प्रभात खबर के पटना संस्करण को उदाहरण के रूप में लेते हैं। बिहार में यह तीसरे नंबर का अखबार है। इसके पहले हिन्दुस्तान और दैनिक जागरण है। प्रभात खबर का संबंध झारखंड से रहा है। वहां पांव फैलाने के बाद इस अखबार ने बिहार को अपना बेस बनाया। इसके कारीगर रहे हरिवंश सिंह। ये वही हरिवंश सिंह हैं जो वर्तमान में राज्य सभा के उपसभापति हैं और जाति के राजपूत हैं। इनकी जाति का उल्लेख इसलिए जरूरी है क्योंकि हरिवंश सिंह ने वाकई में अपनी जाति का अखबार निकालने में कामयाबी हासिल की।
तो चलिए आज प्रभात खबर के माध्यम से यह समझने की कोशिश करते हैं कि बिहार में चल क्या रहा है। पहले बात मुख्य खबरों की करते हैं। मुख्य खबरों का मतलब वे खबरें जो पहले पन्ने पर हैं और जिनके शीर्षक के फांट साइज बड़े हैं। सबसे पहली खबर सुशांत सिंह राजपूत से जुड़ी है। इसे प्रभात खबर के राजपूताना खून का सबूत मान सकते हैं। शीर्षक है – ड्रग्स मामले में रिया चक्रवर्ती को जमानत, भाई शौविक रहेगा जेल में। इस शीर्षक से स्पष्ट है कि यह अखबार एम्स, दिल्ली की पोस्टमार्टम रिपोर्ट को नकारता है कि सुशांत सिंह राजपूत ने खुदकुशी की है। खबर में रिया चक्रवर्ती के संबंध में मुंबई हाई कोर्ट की इस टिप्पणी को गायब कर दिया गया है कि उसका ड्रग डीलर्स से कोई लेना-देना नहीं है।
प्रभात खबर की दूसरी खबर है – सुप्रीम कोर्ट ने कहा, धरना-प्रदर्शन के लिए नहीं कर सकते सार्वजनिक स्थान ब्लॉक। हिन्दी के वाक्यों में अंग्रेजी के शब्द घुसेड़ने का प्रयोग करने में प्रभात खबर अव्वल रहा है। इस खबर का संबंध शाहीनबाग से जुड़ा है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बेमियादी विरोध प्रदर्शन के लिए सरकार को कोई खास स्थल का निर्धारण करना चाहिए। अखबार ने खबर को इस रूप में परोसा है मानों शाहीनबाग आंदोलन गलत था। जबकि सुप्रीम कोर्ट का आशय केवल जगह से सीमित है।तीसरी बड़ी खबर का शीर्षक है – जदयू ने लगाया अति पिछड़ा पर जोर, 10 विधायकों का टिकट कटा। इसके ठीक बगल में खबर का शीर्षक है – नीतीश ने काम के आधार पर चुनाव में मांगा सहयोग। दोनों खबरें एक-दूसरे से जुड़ी हैं। पहली खबर में अखबार ने अपनी तरफ से जदयू के उम्मीदवारों की सामाजिक पृष्ठभूमिक का आकलन किया है। इसके मुताबिक जदयू के 115 उम्मीदवारों में 67 पिछड़ा व अति पिछड़ा शामिल हैं। इस वाक्य को खास तवज्जो दी गयी है। अति पिछड़ा वर्ग को 27, पिछड़ा वर्ग, 40, सवर्ण 19, मुसलमान 11, एससी 17 और एक सीट एसटी। अखबार ने यह बताने से परहेज किया है कि जदयू ने मुजफ्फरपुर शेल्टर होम बलात्कार कांड के कारण चर्चा में रहीं मंजू वर्मा को भी टिकट दिया है।
एक अन्य खबर है – राजद नेता और बिस्कोमान निदेशक के यहां छापेमारी। खबर का तेवर बताता है कि अखबार को राजद से कितनी एलर्जी है। वहीं पहले पन्ने का बॉटम है – पूर्व डीजीपी पर भारी पड़े पूर्व सिपाही। यह खबर गुप्तेश्वर पांडे से जुड़ी है जिन्हें जदयू ने बेटिकट कर दिया है। वहीं भाजपा ने उनकी ही जाति के परशुराम चतुर्वेदी को बक्सर से उम्मीदवार बनाया है जो गुप्तेश्वर पांडे की जाति के हैं और पूर्व में सिपाही थो।
पहले पन्ने पर एक खास सेक्शन है ब्रीफ न्यूज। यानी संक्षिप्त खबरें। इसमें पहली और छोटी सी खबर है – सूदखोरी में हुई थी पूर्व राजद नेता शक्ति मल्लिक की हत्या। अखबार ने इस खबर को छोटी खबर माना है जबकि इसी मामले में राजद नेता तेजस्वी यादव और उनके भाई तेजप्रताप यादव को अभियुक्त बनाया गया था। इसे लेकर भाजपा और जदयू के नेताओं के अलावा बिहार के अन्य अखबारों ने भी राजद के उक्त नेताओं पर आरोपों की बौछार लगा दी थी।
तो यह है आज हमारी ओर से हमारी प्रस्तुति। आप खुद ही देखें, सोचें और समझें कि अखबार किसके पक्ष में पॉलिटिक्स कर रही हैं और क्यों कर रही हैं। कल इसी संबंध में और चर्चा करेंगे।
यह लेख वरिष्ठ पत्रकार नवल किशोर कुमार और सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषण मनीषा बांगर के निजी विचार है ।
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