बिहार 2020 – राम को मानने वाले कभी ईमानदार नहीं हो सकते – NIN अख़बारनामा
बिहार २०२० – राम को मानने वाले कभी ईमानदार नहीं हो सकते – NIN अख़बारनामा
–नवल किशोर कुमार
किसी भी देश और उसके समाज को यदि समझना हो तो साहित्य एक बेहतर विकल्प प्रदान करता है। साहित्य के जरिए हम यह जान सकते हैं कि कोई भी समाज सोचता कैसे है और खास परिस्थितियों में उसकी प्रतिक्रिया क्या होती है। साहित्य से हम यह भी जान सकते हैं कि समाज के पास किस तरह की चुनौतियां हैं और वह उनसे किस तरह निबटने को तैयार है। यह सब साहित्य में शामिल होता है। अखबार अलग होते हैं। अखबार साहित्य का हिस्सा जरूर हैं लेकिन साहित्य नहीं। दोनों में एक स्पष्ट अंतर है। अखबार रोजमर्रा की घटनाओं को प्रस्तुत करता है तो साहित्य की अवधि विस्तृत होती है।
हम यहां साहित्य की नहीं, अखबार की बात करेंगे। वजह यह कि आज के जमाने में जबकि वैश्वीकरण का असर पूरी दुनिया में है, अपने देश हिन्दुस्तान में भी यह सिर चढ़कर बोल रहा है। अखबारों के हिसाब से ही देखें तो यह और भी स्पष्ट होता है। मसलन हिन्दी दैनिक में सबसे पहले नंबर पर माने जाने वाले अखबार “हिन्दुस्तान” को ही लेते हैं। इस अखबार के पहले तीन पन्नों पर विज्ञापन है। पहले दो पन्नों पर सौंदर्य उत्पाद के विज्ञापन हैं। यह समझने की आवश्यकता है कि बाजार किस तरह अखबारों का उपयोग करता है। इसे सामान्य लोग समझ नहीं सकते कि आखिर आज के दिन पहले दो पन्नों पर हिन्दुस्तान अखबार ने सौंदर्य उत्पाद का विज्ञापन क्यों प्रकाशित किया है।
बात कल की है। कल दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में उत्तर प्रदेश के हाथरस जनपद की दलित लड़की मनीषा ने दम तोड़ दिया। उसके साथ 14 सितंबर को सामूहिक बलात्कार को ऊंची जाति के चार शोहदों ने अंजाम दिया था। बलात्कार के बाद शोहदों ने उसकी जीभ काट ली। फिर उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी। वे उसे जान से मार देना चाहते थे, इसलिए उसका गला दबाया। लेकिन वह बच गयी। करीब 13 दिनों तक अलीगढ़ में एक सरकारी अस्पताल में रखने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार को होश आया तब उसे सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया जहां कल 29 सितंबर को उसकी मौत हो गई।
यह खबर पूरे देश में चर्चा का विषय है। हालांकि इसमें एक पेंच यह भी है कि जब उसके साथ घटना घटी और वह जीवन व मौत के बीच संघर्ष कर रही थी, तब भारत का यह समाज मौन रहा। आपको याद होगा निर्भया केस। कैसे उस समय देश भर में लोग सड़कों पर उतर आए थे। इनमें संभ्रांत वर्ग की महिलाएं भी थीं। दिल्ली के जंतर-मंतर का वह नजारा कोई कैसे भूल सकता है जब हजारों की संख्या में महिलएं सड़कों पर थीं। लेकिन इस तरह की संवेदनशीलता मनीषा के मामले में सामने नहीं आया। वजह?
वजह हम सभी जानते हैं। इसमें वर्ग और वर्ण दोनों शामिल है। मनीषा दलित समाज की लड़की थी। वह वाल्मीकि समाज की थी। यदि वह सवर्ण समाज की होती तो निश्चित तौर पर लोग संवेदनशील होते। एक अंतर वर्ग का भी है। मनीषा गरीब परिवार की थी। 14 सितंबर यानी घटना के दिन वह अपनी मां के साथ पशुओं के लिए चारा काटने गई थी। यदि वह चारा काटने वाली नहीं होती, अमीर होती व शैक्षणिक संस्थान से संबद्ध होती तो निश्चित तौर पर लोगों की संवेदनशीलता का स्तर दूसरा होता।
खैर, मामला यही है। सोशल मीडिया पर जस्टिस फॉर मनीषा के नारे लगाए जा रहे हैं। लेकिन हिन्दुस्तान अखबार सौंदर्य उत्पाद का विज्ञापन प्रकाशित कर रहा है। इसका मतलब क्या है? अखबारों में बैठे लोग यह भलीभांति समझते हैं कि आज सबसे अधिक जो खबर पढ़ी और शेयर की जाएगी, वह मनीषा से संबंधित खबर है। जाहिर तौर पर इनमें महिलाएं अधिक होंगी। फिर जब महिलाएं होंगी तो उनके लिए सौंदर्य उत्पाद के विज्ञापन से अधिक महत्वपूर्ण क्या होगा।
यह है हिन्दुस्तान अखबार की अखबारी समझ।
खैर, बात करते हैं बिहार की। चूंकि यह कार्यक्रम बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव पर केंद्रित है। लिहाजा वहां के अखबारों का मुआयना करते हैं।
बिहार में प्रभात खबर एक लोकप्रिय अखबार है। यह वही अखबार है जिसके समूह संपादक कभी हरिवंश जी रहे। इस पद पर रहते हुए उन्होंने नीतीश कुमार की पार्टी जदयू से राज्यसभा जाने का जुगाड़ किया और फिर राज्यसभा में दूसरी बार उपसभापति की कुर्सी पर कब्जा करने में सफलता प्राप्त की है। बिहार में इस अखबार को राजपूतों का अखबार कहा जाता है। इसका प्रमाणा आज भी देखा जा सकता है।
आज इस अखबार ने अपने पहले पन्ने पर सुशांत सिंह राजपूत से जुड़ी खबर को सबसे पहला स्थान दिया है। भाजपा के नारे “ना भूले हैं और न भूलने देंगे” के तर्ज पर इस अखबार ने बड़ी ही चतुराई से मनीषा की खबर को दबा दिया है। पहले पन्ने पर इस अखबार ने मनीषा की खबर को प्रकाशित ही नहीं किया है। इसकी एक वजह यह भी कि उत्तर प्रदेश में राजपूत जाति के योगी आदित्यनाथ की सरकार है।
प्रभात खबर ने आज अपने पहले पन्ने पर बिहार चुनाव से संबंधित एक खबर प्रकाशित किया है – आज लोजपा लेगी निर्णय, एनडीए में सीट बंटवारे का होगा एलान। इस खबर में यह बताया गया है कि एनडीए और महागठबंधन दोनों ने सीट बंटवारे को अंतिम रूप दे दिया है। वहीं इसी खबर में उपेंद्र कुशवाहा द्वारा बसपा के साथ मिलकर राज्य की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की खबर को एक बॉक्स में प्रकाशित किया गया है। सबसे खास है इस खबर के साथ चिराग पासवान की तस्वीर। इसके कैप्शन में बताया गया है कि चिराग पासवान दिल्ली कनॉट प्लेस के नजदीक एक हनुमान मंदिर में पूजा कर रहे हैं।
प्रभात खबर को इसके लिए बधाई दी जानी चाहिए कि वह चिराग पासवान जैसे दोहरे चरित्र वाले दलितों की पोल खोल रहा है। ये मनु को मानने वाले नैतिक रूप से इतने खोखले हैं कि चुनौतियों का सामना करने का भी दम नहीं।
देश के दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को यह बात समझ लेनी चाहिए कि राम को मानने वाले कभी ईमानदार नहीं हो सकते। फिर चाहे वह चिराग पासवान हों, लालू प्रसाद हों, नीतीश कुमार हों या फिर कोई और।
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यह लेख वरिष्ठ पत्रकार नवल किशोर कुमार के नीजी विचार है