आखिर कब रुकेगा बहुजनों पर अत्याचार !
आखिर कब रुकेगा बहुजनों पर अत्याचार
पहले हम मरते हैं, फिर व्यवस्था, फिर जिसे मारा जाता है वो
– मो. तौहिद आलम
मध्यप्रदेश के गुना में बहुजन समाज के किसान के साथ जो हुआ वह देश में न तो कोई पहली घटना है और न आखिरी। इससे पहले भी बहुजनों के साथ अत्याचार, मानसिक व शारीरिक शोषण होते आया है। एक तरफ तो नागरिकता संशोधन कानून के जरिए पड़ोसी देशों से हिंदुओं को बुलाकर नागरिकता देने की बात की जाती है तो वहीं, दूसरी तरफ देश में ही रह रहे पिछड़े तबके के हिंदुओं के साथ भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया जाता है।
मुख्यमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक को बहुजन होने के कारण मंदिरों में नहीं घुसने दिया जाता है। देश भर में बहुजनों के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार किया जाता है। उन्हें घोड़ी नहीं चढ़ने दिया जाता है। आवाज उठाने पर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। कुछ दिनों के लिए उनके समर्थन में आवाज उठती है फिर सब खामोश हो जाते हैं। फिर एक समय अंतराल के बाद इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति होती रहती है। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। न शासन को न प्रशासन को, न हम आप को। आवाज उठती है संबंधित अधिकारी और कर्मचारियों को राज्य सरकारें कुछ समय के लिए निलंबित करती है जांच बैठाती लेकिन नतीजा सिफर होता है।
कुछ दिनों के बाद फिर उक्त अधिकारी को ड्यूटी पर तैनात कर दिया जाता है। गुना में बहुजन किसान के साथ जो हुआ वह सिर्फ हृदय विदारक ही नहीं बल्कि एक सभ्य समाज को कलंकित करने वाली घटना भी है। एक लोकतांत्रिक देश में अपने ही देश के एक जाति या समुदाय विशेष के प्रति शासन, प्रशासन का रवैया उस समुदाय के प्रति उनकी घृणा को दर्शाता है। यह राजनीतिक उपेक्षा ही है कि आज तक उन्हें वह अधिकार नहीं मिला जिसके वे हकदार हैं। आरक्षण जो कि उनका संवैधानिक अधिकार है उसके लिए भी उन्हें गालियां दी जाती हैं।
मध्यप्रदेश के गुना में किसान रामकुमार अहिरवार ने तीन लाख रुपये लेकर खेत में फसल लगाए थे। मंगलार को पुलिसकर्मी इसे सरकारी जमीन बताकर खाली कराने गए और खड़ी फसल पर जेसीबी चलवा दिया। फसल नष्ट करने से रोकने पर पुलिसकर्मियों ने दंपती को बेरहमी से पीटा। काफी मिन्नत करने के बाद भी जब पुलिसकर्मी नहीं माने तो किसान रामकुमार व उनकी पत्नी सावित्रि देवी ने कीटनाशक दवा खा ली। इस दौरान बीच-बचाव करने गए रामकुमार के भाई को भी पुलिस ने बड़ी बेरहमी से पीटा। गंभीर हालत में बच्चे अपने पिता को गोद में लेकर रोते-बिलखते रहें लेकिन, पुलिसवालों का दिल नहीं पसीजा।
वीडियो वायरल होने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने आईजी ग्वालियर रेंज राजाबाबु सिंह, गुना जिलाधिकारी एस विश्वनाथन व पुलिस अधीक्षक तरुण नायक को पद से हटा दिया। लेकिन, सवाल उठता है कि क्या इस कार्रवाई से बहुजनों को इंसाफ मिल जाएगा। जब भी इस तरह की घटनाएं होती है सरकारें अधिकारियों को कुछ दिनों के लिए सस्पेंड कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती है।
मुख्यमंत्री व राष्ट्रपति को भी झेलना पड़ा है बहुजन होने का दंश
जून 2020 में उत्तरप्रदेश के अमरोहा जिले के एक 17 वर्षीय किशोर विकास जाटव की इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि वह मंदिर में पूजा करने गया था। चार सवर्ण युवकों ने उसे गोली मार दी। विकास के पिता ओमप्रकाश जाटव ने बताया कि वह घर से दूर एक मंदिर में पूजा करने गया था। वहां कुछ सवर्ण जाति के लोगों ने उसे धमकी दी थी। वे रिपोर्ट दर्ज कराने गए लेकिन, पुलिस ने रिपोर्ट लिखने से मना कर दिया। जिसके बाद विकास की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
कुछ ही दिन पहले कानपुर के गजनेर गांव के विरसिंहपुर में एक सरकारी स्कूल के प्रधानाध्यपक ने स्कूल की कुर्सी इसलिए रगड़-रगड़कर धुलवाई क्योंकि उस पर बहुजन समाज की एक प्रधान बैठी थीं। मामला पुलिस प्रशासन तक पहुंचा लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं हुई। 2014में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को भी सवर्णों की उपेक्षा झेलनी पड़ी थी। दरअसल, वे उपचुनाव के प्रचार के लिए मधुबनी गए थे। वहां एक मंदिर में उन्होंने पूजा अर्चना की। उनके जाने के बाद न सिर्फ उस मंदिर बल्कि मूर्तियों को भी धोया गया।
मार्च 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में वहां के पंडाओं ने दुर्व्यवहार किया था। जिस पर राष्ट्रपति भवन ने असंतोष जताया था। मंदिर में जब राष्ट्रपति रत्न सिंहासन (जिस पर जगन्नाथ विराज होते हैं) पर माथा टेकने गए तो वहां पर उपस्थित सेवकों ने उनका रास्ता रोक दिया। यहां तक कि उनकी पत्नी को भी रोका गया। राष्ट्रपति ने पुरी छोड़ने से पहले जिलाधीश अरविंद अग्रवाल से अपना असंतोष भी जाहिर किया था।
लेकिन, इसे विडंबना ही कहेंगे कि राष्ट्रपति भवन और मंदिर कमिटी की बैठक में इसकी चर्चा होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई।
सड़क से संसद तक हुंकार और कड़ी कार्रवाई की जरूरत
जब बहुजन होने के कारण राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री के साथ गलत होने पर कार्रवाई नहीं होती है तो एक आम आदमी के साथ गलत होने पर इंसाफ की क्या उम्मीद की जा सकती है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि संविधान में समानता का अधिकार होने के बावजूद एक जाति विशेष के लोगों से भेदभाव और हिंसा की खबरें अक्सर सामने आती रहती है। हैदराबाद विश्वविद्यालय के स्कॉलर छात्र रोहित वेमुला भी भेदभाव की भेंट चढ़ गए। रोहित ने आत्महत्या कर ली।
उस वक्त भी बहुजनों के साथ अत्याचार व शोषण का मुद्दा जोर-शोर से उठा था उसके बावजूद आजतक बहुजनों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। वर्षों से मिल रहे आरक्षण के बावजूद आज तक उनकी स्थिति नहीं बदली है। राजनीतिक तुष्टिकरण की वजह से आज तक बहुजनों को हाशिये पर ही रखा गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कब तक बहुजन समाज के लोग इस तरह खुद को उपेक्षित महसूस करते रहेंगे। कब तक उन्हें अपने ही देश में दोयम दर्जे का नागरिक बनकर रहना होगा। देश तमाम रूढ़िवादियों से आजाद हो चुका है।
सती प्रथा से लेकर बाल-विवाह तक पर भारत रोक लगाने में सफल रहा है। लेकिन, आजादी के इतने साल बाद भी छुआछूत व भेदभाव पर रोक नहीं लगना हमारी विफलता को दर्शाता है। अब वक्त आ गया है कि इस मुद्दे को सड़क से लेकर संसद तक उठाया जाए।
अगर, कोई पुलिस अधिकारी या सवर्ण उन्हें प्रताड़ित करता है इस तरह से बर्बरतापूर्ण व्यवहार करता है तो उस पर निलंबन के बजाए सीधे बर्खास्तगी की कार्रवाई हो। ऐसा करने से ही बहुजनों पर हो रहे अत्याचार पर लगाम लगेगा। तभी उन्हें बराबरी का हक मिल सकेगा।
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ये लेख वरिष्ठ पत्रकार मो. तौहीद आलम के निजी विचार है