क्रीमीलेयर सर्टिफिकेट का प्रारूप बदला जाए- डॉ वरदानी प्रजापति
सरकार और प्रशासन में बैठे लोग हमेशा ऐसे नियम-कायदे बनाते रहे हैं ताकि ओबीसी का आरक्षण कभी ठीक से लागू न हो पाए।
अति पिछड़ा महासभा के कार्यवाहक अध्यक्ष और यूपी सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के पूर्व एडीजी वरदानी प्रजापति ने ये आरोप लगाते हुए कहा कि पिछड़े वर्ग के नेताओं ने भी ऐसी समझदारी कभी नहीं दिखाई कि वो आरक्षण विरोधी मानसिकता के अधिकारियों पर लगाम कस सकें।
नेशनल इंडिया न्यूज के प्रोग्राम जनता की पुकार में डॉ प्रजापति ने कहा कि चाहे नीट का मामला हो, या प्रोफेसरों की भर्ती का, हर समय कोई न कोई पेंच फंसाकर ओबीसी तबके के उम्मीदवारों को आरक्षण का लाभ लेने से रोक दिया जाता है।
डॉ प्रजापति ने कहा कि नीट में पहले जनरल की लिस्ट बनती थी जिनमें आरक्षित तबके के मेधावी छात्र-छात्राएं जगह पा जाते थे, लेकिन अब उसमें पहले एससी, एसटी और ओबीसी की लिस्ट बनती है
जिस वजह से इस तबके के कैंडिडेट जनरल से ज्यादा नंबर लाकर भी आरक्षित कोटे में ही जगह पाते हैं, और कम नंबर लाने वाले जनरल भी सिलेक्ट हो जाते हैं।
डॉ प्रजापति ने बीपी शर्मा कमेटी के उस सुझाव को ओबीसी के लिए बहुत घातक बताया जिसमें कमेटी ने ओबीसी क्रीमीलेयर तय करते समय खेती और वेतन की आय को जोड़ने का सुझाव दिया है।
उन्होंने नॉन क्रीमीलेयर ओबीसी के सर्टिफिकेट के प्रारूप की बड़ी खामी की ओर इशारा किया और बताया कि उसमें समग्र आय लिखा होता है और इस वजह से सर्टिफिकेट बनवाने वाले उसमें खेती और वेतन की आय जोड़ देते हैं।
यहां तक कि तहसीलदार और उच्च अधिकारियों को भी ये पता नहीं होता और इस तरह से बहुत से पात्र ओबीसी, क्रीमीलेयर के दायरे में आकर आरक्षण का लाभ नहीं ले पाते।
यह लेख वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वरदानी प्रजापति के निजी विचार है
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