पिछली सरकार और वर्तमान सरकार में जमीन-आसमान का फर्क
By_Shyam Meera Singh
साल 2011,12,13 के समय की वीडियोज, ट्वीट्स, फोटोज देखिए, तब के पत्रकार, विपक्षी नेता और जनता टमाटर, सिलेंडर, डीजल, पेट्रोल की कीमत के लिए सरकार से सवाल पूछा करती थी. ये सवाल इतने जरूरी औए अहम माने जाते थे कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार भी इन सवालों के दबाव में आ जाया करती थी. उसको प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी पड़ती थीं, कांग्रेसी प्रवक्ताओं को जबाव देना पड़ता था कि वे महंगाई कम करने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं. परिणाम होता था कि यदि 9 सिलेंडर सब्सिडी वाले थे तो 12 सिलेंडर सब्सिडी के देने पड़ते, यदि पेट्रोल 1 रुपए बढ़ती तो अगले दिन 1 रुपए घटानी पड़ जाती थी. दुनिया में भारतीय यूनिवर्सिटियों की रैंक से लेकर, ओलंपिक खेलों में मिले मेडलों की संख्या कम होने पर भी कांग्रेस को जबाव देना पड़ता था.
सरकार और नागरिकों के बीच उत्तरदायित्व तय करने का वह जबरदस्त टाइम था. ऐसा नहीं है तब अच्छा अच्छा ही था, कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगते रहे, लेकिन कांग्रेस में इतना लोक लिहाज हुआ करता था कि उसके केबिनेट स्तर के मन्त्रियों से भी अगले ही दिन इस्तीफा ले लिया जाता था.
आप उस समय के सबसे बड़े आंदोलनों और उनके मुद्दों को याद करिए?
1.लोकपाल कानून आंदोलन – लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए 2. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन
3. कालाधन विरोधी आंदोलन
4. आरटीआई आंदोलन
एक समय ऐसा भी आया कि “स्वर्गीय” बाबा रामदेव ने “राइट टू रिकॉल” नाम की मुहिम चलाई, जिसे लोगों का भी बराबर साथ मिला, ये दिखाता है कि उस समय के बहुसंख्यक नागरिकों में वैज्ञानिक सोच के लिए कुछ तो जगह थी ही, राइट टू रिकॉल के अनुसार यदि कोई जनप्रतिनिधि यानी एमपी/एमएलए चुनाव के बाद हरामीपन देने लग जाए तो उसे जनता उसे वापस बुला सकती है, और उसकी जगह किसी अन्य नेता को जनप्रतिनिधि बना सकती है। आप सोचिए, उस समय देश की प्राथमिकताएं क्या थीं? भारत सच में अपने समय से आगे की भी सोच रहा था, अपने वर्तमान की भी सोच रहा था. मटर की दाल के भी दाम बढ़ते थे तो सरकार दबाव में आ जाती थी, सरकार के प्रवक्ताओं को टीवी पर आकर जबाव देना पड़ जाता था.
लेकिन अब?
अब देश की प्राथमिकताएं क्या हैं? कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के लाख आरोप लगे लेकिन उसने इस देश की वैज्ञानिक सोच के साथ कभी गड़बड़ नहीं की, उसने आपको मूर्ख बनाने का काम नहीं किया, उसने आपके बच्चों की शिक्षा के साथ समझौता नहीं किया, उसने आपसे झूठ नहीं बोला, उसने आपको मूढ़ नहीं बनाया. उसने आपके पड़ोसी, दोस्त, यार के बीच नफरत नहीं बढ़ाई. भ्रस्टाचार का आरोप तो मुगल सम्राट जहांगीर पर भी लगा था कि उसने कुछ पैसे लेकर अंग्रेजी राजदूत सर टॉमस रो को भारत में कम्पनी खोलने, फेक्ट्रियों का निर्माण करने के लिए पैसे लेकर ठेका दिया था.
भ्रष्टाचार मनुष्य के साथ साथ आने वाली एक अपरिहार्य त्रुटि है, जिसे कैसे कम किया जाए हमें इस पर काम करना था। लेकिन अब आप भाजपा के बीते 6 सालों पर विचार करिए, रोटी, दाल, सिलेंडर, पेट्रोल, डीजल, नौकरियां, प्याज, आपके लिए मुद्दे हैं ही नहीं हैं। भाजपा की आईटी सेल, उसके नेताओं और आरएसएस जैसे संगठन ने आपके दिमाग पर इसकदर कब्जा कर लिया है कि सिलेंडर, दाल, प्याज, डीजल, पेट्रोल, पत्रकारों की हत्याओं, एक्टिविस्टों की गिरफ्तारियों, एडुकेशन, भ्रष्टाचार, कालाधन अब आपके लिए मुद्दे ही नहीं है। अबकी सरकार ऐसी है कि उसके नेता, उसके प्रवक्ता इन मुद्दों पर जबाव देना भी जरूरी नहीं समझते।
आप याद करिए लास्ट टाइम आपने सरकार के किसी बाशिंदे को पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों पर स्पष्टीकरण देते हुए कब देखा था? याद करिए लास्ट टाइम आपके आसपास के लोगों में किसकी सरकारी नौकरी लगी थी और कितनों की लगी थी, याद करिए लास्ट टाइम प्रधानमंत्री ने कब प्रेस कॉन्फ्रेंस करके आपको बताया था कि नौकरियां क्यों नहीं मिल पा रही हैं?
जब इनमें से कुछ भी नहीं हुआ है तो आज ये मुद्दे क्यों नहीं है? क्या किसी ने आपकी जिंदगी का सिलेबस बदल दिया है? इस सरकार ने आपको CAA/NRC, Triple Talaq, Art. 370, Lynching, टुकड़े-टुकड़े गैंग, देशद्रोह, गाय, गोबर, मूर्तियों और गर्व के सिवाय क्या दिया है? क्या इससे आपकी जिंदगी में कोई बदलाव आया? इन सब मुद्दों ने सिर्फ और सिर्फ आपके मन में जहर भरने के सिवाय कुछ नहीं किया. पिछली कांग्रेस सरकार लाख आरोपों के बाद भी भाजपा से अच्छी थी, पिछले प्रधानमंत्री वर्तमान प्रधानमंत्री से लाख गुना अच्छे थे। राहुल गांधी भले ही अच्छा भाषण न देते हों, भले ही उनके अंदर लीडरशिप की क्षमता कुछ कम हो, लेकिन आपको मूर्ख बनाने वाले मोदी से वे लाख अच्छे हैं। राहुल के सवालों और जबावों दोनों में आम जनमानस है। लेकिन मोदी के सिर्फ सवालों में ही आम जनमानस होता है, जबावों में नहीं, जबावों से जनता गायब है। न प्रधानमंत्री इन सवालों का जबाव देते हैं, न उनके नेता, न उनके प्रवक्ता.
ये लेख श्याम मीरा सिंह के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है.
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