इस खत से महानायिका रमाबाई आंबेडकर का व्यक्तित्व छलकता है
रमाबाई आंबेडकर की जयंती (7 फरवरी) पर उन्हें नमन करते हुए प्रस्तुत है, उनका जीवन-परिचय रमाबाई को डॉ. आंबेडकर प्यार से रामू बुलाते थे .
डॉ. आंबेडकर अपनी जीवन-संगिनी रमाबाई आंबेडकर को प्यार से रामू कहकर पुकारते थे और उनकी रामू उन्हें साहेब कहकर बुलाती थीं। दोनों ने 27 वर्षों तक जीवन के सुख-दुख सहे। दुख ज्यादा, सुख बहुत कम। दोनों की शादी 1908 में उस समय हुई थी, जब डॉ. आंबेडकर की उम्र 17 वर्ष और रमाबाई की उम्र 9 वर्ष थी। रमाबाई का मायके का नाम रामीबाई था। शादी के बाद उनका नाम रमाबाई पड़ा। आंबेडकर के अनुयायी रमाबाई को ‘रमाई’ कहते हैं।
जैसाकि ऊपर जिक्र किया गया है, आंबेडकर उन्हें प्यार से रामू कहकर पुकारते थे। उन्होंने रामू के निधन (1935) के करीब 6 वर्ष बाद 1941 में प्रकाशित अपनी किताब ‘पाकिस्तान ऑर दी पार्टिशन ऑफ इंडिया’ को रमाबाई को इन शब्दों में समर्पित किया है–
‘रामू की याद को समर्पित
उसके सुन्दर हृदय, उदात्त चेतना, शुद्ध चरित्र व असीम धैर्य और मेरे साथ कष्ट भोगने की उस तत्परता के लिए, जो उसने उस दौर में प्रदर्शित की, जब हम मित्र-विहीन थे और चिंताओं और वंचनाओं के बीच जीने को मजबूर थे। इस सबके लिए मेरे आभार के प्रतीक के रूप में।’ ( आंबेडकर, 2019)
समर्पण के इन शब्दों से कोई भी अंदाज लगा सकता है कि डॉ. आंबेडकर रमाबाई के व्यक्तित्व का कितना ऊंचा मूल्यांकन करते हैं और उनके जीवन में उनकी कितनी अहम भूमिका थी। उन्होंने उनके हृदय की उदारता, कष्ट सहने की अपार क्षमता और असीम धैर्य को याद किया है। इस समर्पण में वे इस तथ्य को रेखांकित करना नहीं भूलते हैं कि दोनों के जीवन में एक ऐसा समय रहा है, जब उनका कोई संगी-साथी नहीं था। वे दोनों ही एक दूसरे संगी-साथी थे। वह भी ऐसे दौर में जब दोनों वंचनाओं और विपत्तियों के बीच जी रहे थे।
दोनों ने कितने कष्ट सहे, इसका एक परिचय आंबेडकर के इस पत्र से मिलता है-
लंदन, दिनांक 25 नवंबर 1921
प्रिय रामू,
नमस्ते।
पत्र मिला। गंगाधर (आंबेडकर पहला पुत्र) बीमार है, यह जाकर दुख हुआ। स्वयं पर विश्वास (भरोसा) रखो, चिंता करने से कुछ नहीं होगा। तुम्हारी पढ़ाई चल रही है, यह जानकर प्रसन्नता हुई। पैसों की व्यवस्था कर रहा हूं। मैं भी यहां अन्न [दाने-दाने को] का मोहताज हूं। तुम्हें भेजने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है, फिर भी कुछ न कुछ प्रबंध कर रहा हूं। अगर कुछ समय लग जाए, या तुम्हारे पास के पैसे खत्म हो जाएं तो अपने जेवर बेचकर घर-गृहस्थी चला लेना। मैं तुम्हें नए गहने बनवा दूंगा। यशवंत और मुकुंद की पढ़ाई कैसी चल रही है, कुछ लिखा नहीं?
मेरी तबीयत ठीक है। चिंता मत करना। अध्ययन जारी है। सखू और मंजुला के बारे में कुछ ज्ञात नहीं हुआ। तुम्हें जब पैसे मिल जाएं तो मंजुला और लक्ष्मी की मां को एक-एक साड़ी दे देना। शंकर के क्या हाल हैं? गजरा कैसी है?
सबको कुशल!
भीमाराव
(शहारे, अनिल, 2014, पृ. 57)
महानायिका रमाबाई आंबेडकर ने डॉ. आंबेडकर को जो खत लिखा इसे पढकर आप के आंखों से आंसू झलकने लगेंगे
पएबावडी
मुंबई,
सबसे सम्मानित पति,
भीमराव अंबेडकर की सेवा में,
नमस्कार,
आपको यह बताते हुए बहुत दुख हुआ कि रमेश ने हमें छोड़ दिया। उसकी बीमारी जानबूझकर आपको नहीं बताई गई, ताकि यह आपकी पढ़ाई में बाधा न बने। इतनी दूर तक सहन करने के लिए, और फिर यह दुर्घटना! मुझे कहां से ताकत मिलनी चाहिए? लेकिन मैं सिर्फ इतना पूछती हूं कि आप दर्द को मुझे सौंप दें। इसे अपने अध्ययन में बाधा न बनने दें। इसे अपने भोजन पर असर न पड़ने दें। अपनी सेहत का ख्याल रखें। मैं यहाँ सब कुछ ध्यान रखूँगी .
आपके बेटे यशवंत को बधाई,
मैं यहां रुकती हूं
तुम्हारी पत्नी
श्रीमती रमाबाई
इस अनंत बलिदान का मूल्यांकन कौन कर सकता है?
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