Home Social Education याशिका दत्त ने अपनी किताब ‘कमिंग आउट एज़ दलित’में किए कई बड़े खुलासे
Education - Hindi - February 15, 2020

याशिका दत्त ने अपनी किताब ‘कमिंग आउट एज़ दलित’में किए कई बड़े खुलासे

हम देखते कि हमारे देश में पिछड़े वर्ग के लोगों को समाज में बेहद ही कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है. हर जगह उठते-बैठते पिछड़े वर्ग में आने वाले लोगों को नीची जाति से होने की कीमत चुकानी पड़ती है. यहां तक की समाज में भेदभाव का सामना भी करना पड़ता है. जाति जानने के बाद लोगों की नफरत भी जागने लगती है. भारत की जातीय व्यवस्था पर हमेशा से ही तगड़े हमले होते रहे है. सभी पिछड़े वर्गों के साथ भेदभाव होता है, उन्हें उनके हक से वंचित रखा जाता है. ये बात आम तौर पर बहुजनों के बारे में कही जाती रही है. लेकिन करीब से नजर डालें, तो जातिवादी भेदभाव हमारे समाज का ही एक बेहद चौंकाने वाला आईना हैं.

ऐसी ही कठिनाईयों को पार करके उभरी याशिका दत्त के जीवन की कहानी बेहद ही खुलासे करने वाली है. जिसके बारे में याशिका दत्त ने अपने जीवन पर आधारित एक किताब लिखी है जिसका नाम है‘कमिंग आउट एज़ दलित’इस किताब में उन्होंने लिखा है कि उनके जीवन में उन्हें कैसी-कैसी परेशानियों का सामना करना पड़ा और कैसे उन्हें अपने बहुजन होने की पहचान को लोगों से छिपा कर रखना पड़ा. इस किताब पर उन्होंने अपने जीवन के तजुर्बे को साझा कर कई खुलासे किए.

याशिका दत्त ने बताया कि उन्हें उनके खुद के परिवार ने ही यह बताने से मना किया कि वह एक बहुजन जाति से है. उनके माता-पिता ने उनसे कहा कि अगर कोई पूछे तो कहना कि मै ब्राह्मन हूं या कहना कि मुझे नही पता या कुछ भी बहाना बना देना लेकिन यह मत बताना कि बहुजन हो. याशिका ने बताया कि उन्हें बचपन से ही यह सिखाया कि आप बहुजन हो और समाज में बहुजन होना सही नही है. जिसके बाद उस उम्र में यह सब सहना मेरे लिए मुश्किल था औऱ हर समय डर रहता था कि किसी को पता ना चल जाए कि मैं बहुजन हूं. और यह भारत में हर मां-बाप करते है जो बहुजन होते है ताकि समाज में उनके बच्चों को भेदभाव का सामना ना करना पड़े. आस-पास के लोग, रिश्तेदार सब बोलते थे कि लड़की को इतना पढ़ाने की क्या जरुरत है,इन सबके बाद भी मेरे माता-पिता ने मुझे पूरजोर समर्थन दिया, अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ाने की कोशिश की, दिल्ली विश्वविद्यालय के स्टिफंस कॉलेज में मुझे पढ़ने भेजा और उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए मैं कोलंबिया गई. जिसके बाद मैने करीब 2 साल रिसर्च करने के बाद अपनी किताब लिखी.

मेरी इस पूरी जीवन की यात्रा में सबसे बड़ा हाथ मेरी मां का है. जिन्होंने समाज की बाधाओं को मुझ पर हावी नही होने दिया और इसके लिए मां ने बहुत दुख सहे. कभी-कभी मैं सोचती हूं कि अगर मां ऐसा नही करती तो उनकी जिंदगी बहुत आसान होती. वहीं उन्होंने यह भी बताया कि जब वह यह किताब लिख रही थी तब पिछले वक्त को याद करके वह कई बार भावुक भी हुई और मन में कई सवाल भी आएं कि कैसी जिंदगी से वह बचपन से अब तक उभरी औऱ आज वह इस पिछड़े वर्ग के मुद्दे को जो उन्होंने सहा अपनी किताबों के जरिये सभी को बता रही हैं. उन्होंने आगे कहा कि इस किताब के पढ़े जाने के बाद मेरे पास कई मेसैजे और मेल आए जिसमें लोगों ने मुझसे अपनी बाते साझा की. यह मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी है जिसे मै बता कर बयां नही कर सकती.

(अब आप नेशनल इंडिया न्यूज़ के साथ फेसबुकट्विटरऔर यू-ट्यूबपर जुड़ सकते हैं.)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

Remembering Maulana Azad and his death anniversary

Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…