बिरसा मुंडा को समर्पित यह रचना
इसिलिए तू है…..
भूमिपुत्र मुंडा के कबीले में
लिया तू ने जन्म
आदीम सभ्यता की
विरासत के साथ…
और
केवल भूमिपुत्रों के उत्थानके लिए..
समर्पित कर स्वयं को
रचा नया इतिहास
इसिलिए तू है….
महामानव….महानायक…
यूँ ही नही पैदा होते महापुरुष
क्यूँ की…
विपरीत परिस्थिती को
मात दे कर
स्वयं सहित सभी के जिवन को..
नया अर्थ… नया आयाम
देने वाला…
हर व्यक्ती होता है महापुरुष…!!!
दिक्कू जमिंदारों ने
और
ब्रिटिश सरकार ने
घेर लिया था तुझे इर्द गीर्द…
तेरे सामने था
गुँगा अज्ञानी समाज
तथा
उन पर हो रहे
अन्याय अत्याचारों का रिवाज..
तभी गरज़ उठा तू..
स्वतंत्रता एवं स्वराज के
हक़ अधिकारों के लिए…
और
छेड दिया तू ने …
एकसाथ जिवन के सभी क्षेत्रों मे
क्रांतिकारी वैचारिक युध्द की
गरिमा के साथ
संपूर्ण परिवर्तन का आंदोलन
भडक उठी ज्वालाएँ
उलगुलान…उलगुलान पुकारते हुए…
इसीलिए तू है…
महापुरुष….
स्थापित किया तू ने ही
नया बिरसा धर्म
तथागत की राह पर
और दिया आदेश
न हिंसा करो
न चोरी करो
न झूठ बोलो
न करो व्याभिचार.
न करो नशापानी
न माँगों भिक भी कोई….
कर दिया ऐलान की…
मत पडो..
बापू….बुवा…
तांत्रिक मांत्रिक की चक्कर में..
मत पालों अंधविश्वास
भूत प्रेत पिशाच्च डाकीन
ये है नीरी कल्पनाएँ….
न करो इन पर विश्वास जरा भी…
साथ ही दिया संदेश भी
ज्ञान करो प्राप्त
मधुमक्खी की तरहा…
करो आपस में प्रेम..
पशू पक्षी की तरहा…
श्रम करो चींटी की तरहा…
सत्य की ही राह पर चलों….
सोचो…चिंतन करों….
मिलजुल कर संगठीत रहो…
मत होना निराश कभी…
मैने दिए विचारों के ही..
अस्त्र शस्त्र बनाओं….
आत्मविश्वास के साथ…
संयम के साथ…
लेकीन विचार विवेक से ही..
संघर्ष करो…
यकीन रक्खो…
विजय तुम्हारी ही होगी कहते हुए
इसिलिए तू है युगपुरुष…
तू ने ही दिया धरती को महत्त्व
बनाएँ रक्खा उसका अस्तित्व
जो समझता धरती का मोल
वह तू ही तो है सन्मित्र अनमोल
इसिलिए तू है….धरती आबा…
तू ही तो था…
समाज का कल्याण..
मानव का उत्थान…
साधने के लिए…
अपने आप को समर्पित…
करने वाला आदर्श इंसान….
इसिलिए तू है…भगवान…
आम इंसान को..
उसके हक़ अधिकार..
उसी की भाषा में समझा कर..
उसे प्राप्त करने की..
उचित राह दिखाकर…
उस अग्निपथ की ओर…
पहला कदम रखते हुए…
क्रांतिकारी संघर्ष के लिए…
समाज की सिध्दता करनेवाला…
उन्हे क्रियाशील करनेवाला…
प्रेरणादायक इंसान तू…
इसिलिए तू है…जननायक…
शोषित पिडित
दबे कुचले…
स्वयं की पहचान
स्वयं का इतिहास
स्वयं की शक्ती
भूले हुये समाज को
गुलामी के कारण
सबकुछ खोये लाचार को…
जड से हिलाकर..
जागृत करनेवाला….
मनुष्य के नाते उसमे…
उड़ान भरने वाला…
उसकी मानवीय संवेदनाएँ…
जगानेवाला…..
तू ही तो है मृत्युंजय योध्दा..
इसिलए तू है….वीर…
जिवन के अंत तक..
स्वयं को प्रज्वलित करने वाला..
अंधेरे को भी जलाने वाला
निरंतर सत्य ही कहने वाला…
हर एक को मिले रोशनी..
इसलिए….
हसते हसते….
मृत्यु को स्विकारते हुये….
बलिदान करने वाला…
जिंदादिल इंसान तू….
इसीलिए तू है….शहीद….
15 नवंबर 1975 से
09 जून 1900 तक का…
केवल 25 वर्षों का सफर…
जिवन का बस यही अल्पावधि…
और कार्य की विशालतम परिधि…
निर्माण किया युग…
कार्य किया महापुरुषों का..
हो गया शहीद…और..
बन गया विर..
जननायक हो कर…
आसिन हुवा
अनगिनत ह्रृदयों पर..
भगवान कहते हुये…
कृतज्ञता साथ होते है…
नतमस्तक कई सिर…
धरती आबा के रुप में…
जब अंकुरित हो रहे…
तू ने ही बोये हुए बिज…
मानो धरती की वंदना ही…
साथ ही…
अंकुरो के बिच…
तथाकथीत नेताओं के रुप में…
बढता हुवा मातम….
लेकीन चिंता न कर..
तेरे ही विचारों की…
जालिम दवा हैं मेरे पास…
इसि जालिम दवा की फँवारों से…
जडमुल से उखड़ जायेगा मातम..
क्यूँ की तू तो है ही…..
हम सभी के मन मस्तिष्क में….
क्रांतिकारी विचारधारा के साथ…
….बस्स….तू ही…
बिरसा मुंडा..
……केवल तू ही…
~ .धनंजय झाकर्डे
सी ई सी सदस्य एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष , मूलनिवासी सभ्यता विंग, बामसेफ .
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