घर भाषा हिंदी डॉ. मनीषा बांगर ट्रोल झाल्याचा विरोधाभास व्यक्त करतात. ब्राह्मण जातीवर अनेक प्रश्न उपस्थित झाले !

डॉ. मनीषा बांगर ट्रोल झाल्याचा विरोधाभास व्यक्त करतात. ब्राह्मण जातीवर अनेक प्रश्न उपस्थित झाले !

ट्रोल केलेला म्हणजे जेव्हा लक्ष्य योग्य ठिकाणी असेल तर एखाद्याने अस्वस्थ होण्याऐवजी आनंदी असले पाहिजे.. तसेच, ट्रॉल्सला उत्तर देऊ नका , टिप्पणी पाहू नका. जर सायबर कायद्याविरूद्ध असेल तर अहवाल देणेही सोयीचे आहे.. त्यानंतर अवरोधित केले जाऊ शकते. ट्रोल सैन्याने बर्‍याच वेळा छापे टाकले , मग जर आपल्याला घट्ट राहून मित्रांकडून मदत मिळाली तर ते चांगले आहे.

आपण ट्रोल असताना काय करावे हे आपल्या आणि आपल्या समाजाच्या हिताचे आहे , हा एक अतिशय महत्त्वाचा प्रश्न आहे. ट्रोल केलेले असताना सेलिब्रिटी बरेचदा काय करतात – चाहे वो मीडिया कर्मी हो, लेखक हो या कोई प्रख्यात व्यक्ति हो.

सोशल मीडिया पर बहूजनो की उपस्थिति बढ़ रही है मगर ट्रोल होने की ख्याति जैसे सिर्फ ब्राह्मण द्विज लोगो ने प्राप्त की हुई है.

क्यों किए जाते है ये ट्रोल. क्या है इसके पीछे की रणनीति ? क्या जो ट्रोल होता है उसे फायदा होता है या व्यक्तिगत तौर पर नुकसान. या फिर ट्रोल होने से ख्याति और बढ़ती है ? एक बार जब कोई ट्रोल होने लग जाए तो वो सिलसिला कहां जाकर रुकता है. क्या हमने कभी इसका आकलन किया है?

इन सवालों का जवाब और ज्वलंत उदाहरण लेखन-पत्रकारिता में सक्रिय ब्राह्मण-द्विज पत्रकार प्रस्तुत करते हैं। ज्योंही वे सोशल मीडिया पर ट्रोल होते हैं, शहीदाच्या पोझमध्ये, तो त्याच्या महानतेचे गुणगान करू लागतो आणि स्वतःला असे सादर करतो., उदार असल्याबद्दल त्यांना खूप वाईट वागणूक दिली जात आहे, जबकि ट्रोल करने वाले भी उनके सजातीय ही होते हैं और इस तरीके से वे बहुजनों की सहानुभूति हासिल करने की कोशिश करते हैं और इसमें काफी हद तक सफल भी होते हैं। इस तरीके से वे खुद को पूरे समाज के नायक की तरह प्रस्तुत करते हैं। ब्राह्मण-द्विज होने के चलते उन्हें अपने सजातीय बंधु-बांधवों के बड़े हिस्से का समर्थन तो प्राप्त ही रहता है। खुद को ट्रोल के शिकार शहीद की तरह प्रस्तुत कर बहुजनों का समर्थन भी प्राप्त कर लेते हैं और एक नायक के रूप में खुद प्रस्तुत कर अपने कैरियर का ग्राफ उंचा कर लेते हैं।

यह सारा खेल वे अपना कैरियर बनाने के लिए करते हैं और इसमें काफी हद तक उन्हें सफलता भी मिलती है। कई सारे ब्राह्मण-द्विज पत्रकार इसी प्रक्रिया में आज मीडिया में अपनी ऊंची हैसियत बना लिए हैं। सच तो है कि वे चाहते हैं कि उन्हें ट्रोल किया जाए और जिससे वे खुद महान शख्सियत के रूप में प्रस्तुत कर सके और इसकी कीमत विभिन्न रूपों में वसूल सकें।

प्रसारमाध्यमांमध्ये असेच घडते, जसे राजकारणात. चळवळ - संघर्ष बहुजन, लाठ्या-गोळ्यांचा बळी जातो आणि त्याचे श्रेय घेण्याची वेळ येते, तर कोणीतरी ब्राह्मण आणि द्विजांमधून येतो. चळवळ - संघर्षाचे नेतृत्व करण्याचे नाटक करते, एकदा तुरुंगात, या पुलिस की लाठियां खा लेता है और इसके बाद इसकी भरपूर कीमत वसूलता है। रातों-रात बड़ा नेता बना जाता है।
बहुजनांच्या चळवळी आणि संघर्षांच्या जोरावर मीडिया आणि राजकारणात स्थान निर्माण करणाऱ्या अशा लोकांना सहज ओळखता येईल.

सच तो यह ब्राह्मण-द्विज पत्रकारों के लिए ट्रोल होना फायदे का धंधा है। उन्हें ट्रोल करने वाले भी अक्सर उनकी जाति-बिरादरी के होते हैं। जो ट्रोल करके उन्हें फायदा ही पहुंचाते हैं।

ब्राह्मण-द्विजों से विपरीत रूख बहुजन पत्रकारों होता हैं। हमें अक्सर ट्रोल करने वाले ब्राह्मण-द्विज होते हैं, जो अपने जातिवादी-मर्दवादी नफरत का हमारे प्रति इजहार करते हैं और हमें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं।

इसका उदाहरण में अपने अनुभव से देना चाहूंगी। में पिछले दिनों कोरोना के संदर्भ में एक फेसबुक टिप्पणी लिखी। जो बहुत वायरल हुई । लाखो लोगो ने पढ़ा और हजारों में शेयर हुई । बहुजन समाज के लेखकों-पत्रकारों और पाठकों ने भारी संख्या में उसे शेयर किया। यहां विभिन्न भाषाओं में उसका अनुवाद करके भी बहुजन समाज के लोगों ने उसे शेयर किया है। सबसे पहले तो मैं उन सभी लोगों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहती हूं और उन्हें उनके समर्थन और सहयोग के लिए धन्यवाद देती हूं।

लेकिन मै इस बात के लिए बहुत सतर्क थी बहुजन समाज के मेरे साथी, सोशल मीडिया के फॉलोअर्स और आंदोलनकारी लोगो को मेरे समर्थन में आकर ट्रोल की प्रतिक्रिया देने में ना उलझाऊं. अपने आप को बहुत बड़ा शहीद बता कर सभी सेआई स्टैंड विथ डॉक्टर मनीषा बांगर ” ” आई सपोर्ट डॉक्टर मनीषा बांगरइस किस्म के कोई कैंपेन करवाऊं. हमने सोशल मीडिया पर देखे हैं कई बारी बड़े-बड़े मीडिया हाउसेस के लिए बहुजन लोग जिनका मीडिया हाउसेस से कोई सरोकार नहीं है जिनके मुद्दे वहां पर उठाए नहीं जाते फिर भी तख्तियां लेकर खड़े रहे हैंआई स्टैंड विथ ..करते हुए.

मैं चाहती थी कि मेरे समाज के लोगों को किसी भी रूप से उलझा के ना रखें ताकि वह अपने आप में महत्वपूर्ण चीजों पर ध्यान दें जिसके की आवश्यकता है अगर वह मेरे लिए खड़े होते हैं अगर तीन-चार दिन इस तरह से एक कैंपेन का रिएक्शन देने में चला जाता है तो हमारा व्यक्तिगत और वक्त के माध्यम से बहुत नुकसान होता है. इसके विपरीत देखा गया है कि जो ब्राह्मण द्विज पत्रकार है वह ट्रोल होते ही लोगो को उलझना शुरू कर देते है. उन्हें बहुत अच्छा लगता है कि लोग तख्तियां लेकर उनके लिए खड़े रहें. यह व्यक्ति पूजा है. ट्रोल का रिएक्शन देने में हफ्तों तक सभी को उलझा के रखने की मानसिकता कितनी घिनौनी है और हम नहीं चाहते थे कि हम भी वही चीज दोहराए .

इसी पोस्ट पर कई सारे ब्राह्मण-द्विज पत्रकारों ने मुझे ट्रोल भी किया। मेरे समर्थन में कुछ ब्राह्मण-द्विज पत्रकारों-लेखक भी उतरे।

जिन्होंने मुझे ट्रोल किया उनसे मैं उनसे कहना चाहती हूं कि महोदय आपके ट्रोल का हम पर आप चाहते वो असर नहीं होगा. हम विचलित होंगे मगर टूटेंगे नहीं. हमारी लड़ाई आप की शोषण की व्यवस्था के खिलाफ है और ये लड़ाई लंबी है हम जानते है. मुझे महान बनने का कोई शौक नहीं हैं, न तो मैं कैरियर बनाने के लिए लिखती हूं।

यही बात मै तथाकथित उदार ब्राह्मण द्विज लेखक पत्रकार और राजनीतिक हस्तियों से कहना चाहती हूं. सच तो यह है कि मुझे या बहुजनों को किसी उद्धारक की जरूरत नहीं है। उद्धार करना या आप जैसा उद्धारक बनने की कोशिश करना ब्राह्मणवादी-मनुवादी संस्कृति है। बहुजन संस्कृति मुक्तिदाता में विश्वाश नहीं करती है, वह मार्गदाता में विश्वाश करती है। डॉ. आंबेडकर ने बुद्ध के सदर्भ में लिखा है कि वे खुद को मुक्तिदाता नहीं, मार्गदाता के कहते थे।

मैं खुद को बहुजन समाज के हितों के लिए संघर्षरत एक सामाजिक राजनीतिक आंदोलनकारी नेत्री- लेखिका-पत्रकार हूं। मुझे मुक्तिदाता होने का न भ्रम है, न शौक। कृपया आप लोग भी मेरा या मेरे समाज का मुक्तिदाता बनने की कोशिश मत कीजिए। बस इतना अहसान कीजिए। हम अपनी लड़ाई खुद लडेंगे। आपके भरोसे हमारी लड़ाई नहीं, क्योंकि आप हमारे संघर्षों में सिर्फ भटकाने के लिए शामिल होते हैं, सच्चे भाव से सहयोग या समर्थन देने के लिए नहीं। मैं मनीषा बांगर तिहरी लड़ाई लड़ रही हूं, एक वर्ण-जातिवादी ब्राह्मणवाद से तो दूसरी तरफ स्त्री होने के चलते ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से और बहुजन समाज की स्त्री होने के चलते वर्ण-जातिवाद और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के गठजोड़ से भी। मेरी संघर्ष आप जैसा सतही नहीं है, न तो कैरियर या आर्थिक फायदे के लिए है। मैं अपने और बहुजन समाज की गरिमा की लड़ाई लड़ रही हूं।

अगर सचमुच में आप बहुजन समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं,-हालांकि मुझे शक है कि आप कुछ करना चाहते हैं- तो दो काम काम कीजिए।
पहला अपने चेहरे पर से उदारता का नकाब उतार कर अपने असली रूप- ब्राह्मण-द्विज के रूप में सामने आइए। दूसरा अपने ब्राह्मण- द्विज बंधुओं की वर्ण-जातिवादी मानसिकता और ब्राह्मणवादी पितृसता की सोच से मुक्त करने की कोशिश कीजिए, जो कि संभव नहीं लगता

बहुजनों के लिए संघर्ष करने या मनीषा बांगर के पक्ष में खड़े होने का नाटक करना बंद कीजिए। खुद के भीतर कुंडली मारकर बैठे ब्राह्मणवाद की पहचान कीजिए और उससे लड़ने की कोशिश कीजिए।

मैं अपनी और बहुजन समाज की लड़ाई लड़ने में पूरी तरह सक्षम हूं। मैं एक बार फिर बहुजन समाज के अपने सोशल मीडिया के साथियों को धन्यवाद देती हूं, जिन्होंने मेरा खुले दिल से समर्थन किया।
~डॉ मनीषा बांगर
~ सामाजिक राजकीय विचारवंत, ~ सामाजिक राजकीय विचारवंत.
~ सामाजिक राजकीय विचारवंत ,
~ गॅस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट आणि यकृत प्रत्यारोपण विशेषज्ञ
~ गॅस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट आणि यकृत प्रत्यारोपण विशेषज्ञ

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