Home Social Education जातिगत भेदभाव को भोगते हुये हिंदी साहित्य को अद्वितीय योगदान समर्पित करने वाले सूरजपाल चौहान जी का स्मृतिशेष होना बहुजन समाज की अपूरणीय क्षति
Education - Hindi - Social - June 15, 2021

जातिगत भेदभाव को भोगते हुये हिंदी साहित्य को अद्वितीय योगदान समर्पित करने वाले सूरजपाल चौहान जी का स्मृतिशेष होना बहुजन समाज की अपूरणीय क्षति

हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार सूरज पाल चौहान नहीं रहें। आज 15 जून को सुबह उनका परिनिर्वाण हो गया। वह 66 वर्ष के थे। सूरजपाल चौहान पिछले काफी दिनों से बीमार थे और लगातार उनका डायलिसिस हो रहा था। उनके निधन की सूचना से बहुजन साहित्य के साथ हिन्दी साहित्य की भारी क्षति हुई है। सूरजपाल चौहान की कविताओं और कहानियों ने बहुजन समाज को जगाने और झकझोरने का काम किया। वह अपनी कविताओं की चंद पंक्तियों के जरिए बड़ी-बड़ी बातें कह देते थे, जिससे बहुजन समाज सोचने को विवश हो जाता था।

20 अप्रैल 1955 को यूपी के अलीगढ़ जनपद के फुसावली गांव में जन्मे सूजपाल चौहान जी संघर्ष व अपमान की कोख से निकले ऐसे हीरा थे जिनकी चमक उनकी साहित्यिक रचनाओं में सदियों तक कायम रहेगी।
चूड़ा(भंगी) समाज मे जन्मे सूरजपाल चौहान जी जाति के दंश से तिल-तिल जले-भुने ऐसे बहुजन बुद्धिजीवी थे जिन्होंने अपने समाज को जगाने हेतु अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया।




दलित दस्तक के सम्पादक माननीय अशोक दास जी को दिए गए इंटरव्यू के मुताबिक जन्म लेने के बाद जब वे बाल्यावस्था में थे तो वे अपनी बीमार माँ के साथ रोजी-रोटी हेतु कथित बड़ी जातियों के वहां झाड़-बहारू हेतु जाया करते थे।माँ गन्दगी साफ करती थीं और वे उन्हें इकट्ठा कर डलिया(टोकरी) में भरकर माँ के सिर पर उठाते थे।इन सब कामों को करने के बावजूद वे अपनी माँ को भद्दी-भद्दी जातिगत गालियां सुनते हुये देखते थे।
कक्षा दो तक गांव में अन्य जाति के बच्चों से अलग बैठाए जाने व हिकारत की भाषा मे मास्टरों की बातें सुनने के साथ वे जैसे-तैसे पढ़े फिर अपने पिताजी के पास दिल्ली चले आये जो सामान ढोने का काम करते थे।एक दूर के रिश्तेदार ने उन लोगों को शौचालय में रहने को जगह दी थी जिसमे रहते हुये किसी तरह से उन लोगों ने समय काटा।


सूरजपाल चौहान जी दिल्ली के एक आर्य समाजी स्कूल में दाखिला लिए जहां वे अपने गोल-मटोल कद-काठी के कारण पहले तो गुप्ता समझे गए और पहली पंक्ति में बैठाकर इनसे गायत्री मंत्र वाचन कराते हुये हवन करवाया गया लेकिन ज्यों ही यह ज्ञात हुआ कि वे चूड़ा/भंगी हैं,उनके संस्कृत टीचर व कक्षाध्यापक वेदपाल शर्मा की दिनचर्या ही बन गयी उन्हें नित्य गालियां देने व मार-पिटाई करने की।वह कथित शिक्षक उन्हें उनकी जाति के कारण अनायास पीटता व संस्कृत में फेल कर देता था।
बीए में जाने पर सूरजपाल जी ने अपने गोत्र नाम चौहान को अपनी टाइटिल में जाति छुपाने की नियत से जोड़कर अपना नाम सूरज पाल चौहान कर दिया लेकिन जाति है कि जाती नही,वह सामने आ ही जाती है।कालेज में वजीफा पाने वालों की सूची ब्लैकबोर्ड पर लिख दी गयी थी जिसमे सूरज पाल चौहान जी का भी नाम था फिर क्या उनके जो मित्र थे वे उनकी जाति जान फब्तियां कसने लगे।
जाति के नाते सूरजपाल चौहान जी को नौकरी करते समय भी ट्रांसफर आदि की दुस्वारियाँ झेलनी पड़ीं।सूरजपाल चौहान सर 5-6 वर्षो तक आरएसएस से भी जुड़े रहे जहां उन्हें हिंदुत्व से सम्बन्धित गीतों को गाने हेतु मंच दिया जाता रहा।वे अपनी चौहान टाइटल के नाते सवर्ण समझे जाने के कारण अभिजात्य वर्ग के संघियो द्वारा जगजीवन राम जी से लेकर दलित समाज के प्रति उनकी गालियों व हिकारत भरी बातों को सुनते रहे।


बाबा साहब को पढ़ने और ओमप्रकाश बाल्मीकि जी के संगत में आने के बाद आरएसएस छोड़ बहुजन समाज के लिए पूर्ण समर्पित हो अपनी आत्मकथा “तिरस्कृत” व सन्तप्त” लिखने वाले सूरजपाल चौहान जी ने फिर ऐसी-ऐसी रचनाओं का सृजन किया कि वह आज जेएनयू सहित तमाम यूनिवर्सिटीज व लोक गायकों की धुनों में गायी व पढ़ाई जा रही है और उससे बहुजन समाज मे चेतना का प्रस्फुटन हो रहा है।सूरजपाल चौहान जी की रचना “ये दलितों की बस्ती है” और “भीमराव का दलित नहीं यह गांधी का हरिजन है” अत्यंत ही मारक हैं।

सूरजपाल चौहान जी का जीवन संघर्ष भारतीय सामाजिक व्यवस्था का एक आईना है जिसमे हम इस समाज के विद्रूप चेहरे को देख सकते हैं।
सूरजपाल चौहान जी जैसे महानायकों की इस समाज को आज बहुत जरूरत है जो घृणित रीति-रिवाजों,परम्पराओ,रूढ़ियों,मनुवादी विकारों को ललकार सके,समाज को दिखा,जता व बता सके तथा अपने सोए हुये समाज को नींद से झकझोरते हुये जगा सके लेकिन दुःखद कि 20 अप्रैल 1955 को जन्मे सूरजपाल चौहान जी 15 जून 2021 को हमलोगों को अलविदा कहकर चले गए।सूरजपाल चौहान जी का निधन सम्पूर्ण बहुजन मूवमेंट के लिए दुःखद है।हम श्रद्धावनत हैं उनके अद्वितीय सामाजिक,वैचारिक व साहित्यिक योगदान के लिए और उन्हें अश्रुपूरित नमन करते हैं।

~~चन्द्रभूषण सिंह यादव ~~

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