नोटबंदी: राष्ट्रवादी महोत्सव या जातिवादी षड्यंत्र?
कीर्ति कुमार,
7 नवम्बर 2016 की वो भयानक रात लोग अभी तक भुला नहीं पाए है, जब देश के प्रधानमंत्री ने रात में टीवी पर अचानक सूचना दी कि 500 और हज़ार रुपए के नोट अब नहीं चलेंगे. वो रद्दी बराबर हो जाएँगे. यह सुनते ही कानपुर की रहने वाली 65 साल की बुज़ुर्ग महिला की सदमे से मौत हो गई. इस बुज़ुर्ग महिला ने पाई पाई जोड़कर अपने बुढ़ापे में निर्वाह के लिए 2 लाख 69 हज़ार रुपए जोड़े थे. कानपुर के ही एक युवक की इसी दिन ज़मीन बिकी थी और बयाने के 70 लाख रुपए 500 और 1000 की नोट में मिले थे, इस युवक ने भी जैसे ही यह ख़बर सुनी कि दिल के दौरे से उसकी मौत हो गई. अस्पताल द्वारा पुरानी नोट न लिए जाने के कारण इलाज के बग़ैर भी मरने वाले कई लोग थे. अपने पैसे, मेहनत की कमाई को रद्दी होने से बचाने के लिए लोग भूखे प्यासे बेंक के बाहर लाइन लगाकर खड़े रहें. न जाने कितने लोगों का भोग इस नोटबंदी ने लिया. नोटबंदी के फ़ायदे गिनवाए जाते रहे और लोग मरते रहे. आतंकवाद बंद होगा, कालाधन वापस आएगा, नक़ली नोटों से छुटकारा मिलेगा. जैसी स्किमें लायी गई थी और लोगों को इमोशनल फूल बनाया गया.
आज नोटबंदी को एक साल पूरा हुआ, कई उद्योग धंधे, छोटे-बड़े व्यापारी, विद्यार्थी, नौकरी पेसे वाले लोगों को नोटबंदी ने प्रभावित किया. इनमे कई उद्योग तो ऐसे है, जो अभी तक नोटबंदी की मार से उभर नहीं पाए है. नोटबंदी से कालाधन बाहर आएगा और महँगाई से मुक्ति मिलेगी जैसी बहुत सी अपेक्षाएँ लोगों ने रखी थी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. नोटबंदी के बाद जब नए नोट आए तो सबसे पहले आतंकियो के पास यह नोट पहुँच चुके थे, दूसरे ही दिन गुजरात से नक़ली नोट पकड़े गए, साल भर गिनने के बाद रिज़र्व बैंक ने बताया कि बंद किए गए सारे के सारे नोट वापिस आ गए है, कालाधन कहीं नहीं मिला. अब सवाल यह होता है कि आख़िरकार नोटबंदी जैसा भयानक क़दम उठाकर जनता का आक्रोश सहने के लिए सरकार तैयार कैसे हो गई? इतने बड़े फ़ैसले की क्या वजह थी?
भारत की वर्तमान सरकार संघ के ब्राह्मणवादीयों द्वारा नियंत्रित है, इसमें तो कोई दो राय नहीं! नोटबंदी की वजह जानने के इतिहास खंगालना होगा. इतिहास का मुआयना करने पर पता चलता है कि यह नोटबंदी पहली नोटबंदी नहीं थी, इतिहास में भी जातिवादी ब्राह्मणों ने नोटबंदी की है. महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल को इतिहासकार भारत का सुवर्ण युग बताते है. नोबल पारितोषिक विजेता और जग विख्यात अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन बताते है कि मौर्य शासन के दौरान भारत का GDP 35% था. चंद्रगुप्त मौर्य के समय काल में भारत में बुद्ध और महावीर की समता-मानवता और बंधुत्व के विचारों वाली श्रमण परंपरा के प्रचलन के कारण हर क्षेत्र में समाज के सभी वर्गों की समान हिस्सेदारी होने के कारण समाज का हर वर्ग समृद्ध था.
समानता, मानवता और बंधुत्व के विचारों वाली श्रमण संस्कृति के कारण जातिवाद प्रभावहिन हो चुका था, और जातिवादी ब्राह्मण मौक़े की तलाश में थे! मौर्य साम्राज्य के दशवें सम्राट बृहद्रथ मौर्य की पृश्यमित्र श्रिंग नाम के ब्राह्मण सेनापति द्वारा भर सभा में हत्या से मौर्य साम्राज्य समाप्त हुआ, और जातिवादी ब्राह्मणों के शासन की शुरुआत हुई. सत्ता पर आते ही पृश्य मित्र श्रिंग ने बौद्ध और जैन साधुओं की क़त्लेंआम शुरू की. एक बौद्ध साधु का कटा हुआ सर पृश्यमित्र के सामने पेश करने पर सौ सुवर्ण मुद्रा इनाम के तौर पर मिलती. इसके साथ ही पृश्यमित्र श्रिंग ने एलान किया था कि जी भी ज़िंदा बचना चाहता है, वो ब्राह्मण धर्म स्वीकार कर लें, अन्यथा मरने के लिए तैयार रहें. यह ब्राह्मण राष्ट्र की शुरुआत थी.
जान बचाने के लिए बहूजनों ने ब्राह्मण धर्म स्वीकार किया. अब मौर्यक़ालीन भारत में बहूजनों ने जमा किए पैसे निकालने की बारी थी. और इसके लिए सहारा लिया गया मनुस्मृति का. मनुस्मृति का हवाला देकर कहा गया कि शुद्रों को ब्राह्मण धर्म के मुताबिक़ धन रखना या कमाना वर्जित है! और इस तरह बहूजनों की समृद्धि पलभर में ही लूट ली गई. और बहुजन समाज फिर से ब्राह्मण धर्म का ग़ुलाम हो गया. यह ब्राह्मणों द्वारा की गई पहली नोटबंदी थी, यही ऐतिहासिक घटना फिर से दोहराई गई. सदियों की ग़ुलामी और संघर्ष के बाद डॉ. अंबेडकर द्वारा न्याय, समता, स्वतंत्रता और बंधुता की नींव पर रचे गए भारतीय संविधान द्वारा मिले मूलभूत मानवीय अधिकारों से बहुजन समुदाय फिर से अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिस कर रहा है, तब ब्राह्मणों द्वारा नियंत्रित सरकार द्वारा की गई नोटबंदी की घोषणा ने बहुजन समाज के सपने को फिर रोंद दिया. नोटबंदी द्वारा बहुजन समाज को मनुस्मृति की याद दिलाई गई कि, शुद्रों को धन संचय करना मना है. और संविधान के सहारे समृद्ध हो रहे बहूजनों को नोटबंदी ने फिर से आर्थिक कंगाल बना दिया गया.
बाबा साहब ने कहा था कि, जो क़ौम अपना इतिहास नहीं जानती, वो कभी अपना इतिहास नहीं बना सकते. ब्राह्मण अपना और बहूजनों का इतिहास बख़ूबी जानते है, उन्होंने इतिहास दोहराया. नोटबंदी कोई आर्थिक सुधार नहीं, बल्कि जातिवादी ब्राह्मणों का एक ख़तरनाक षड्यंत्र है.
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