क्या वाकई में भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है..?
किसी भी बात को अपने तर्क-विवेक और संशय आधारित वैचारिकता से बिना परखे अनुकरण करना हानिकारक हो सकता है। भारत में आजकल राष्ट्रवाद का झंडा लिए घूम रहे तथाकथित राष्ट्रवादी तरह तरह के नारों से राष्ट्रवाद का प्रचार कर रहे है। हर भारतीय को वे शक की नज़रों से देख रहे है। उनके राष्ट्रवाद की परिभाषा के मुताबिक़ अगर आप राष्ट्र के सवंविधानिक मूल्यों का आदर करते है लेकिन तथाकथित ‘भारत माता’ के नारे नहीं लगाते, या पड़ोसी मुल्क को गालियाँ नहीं देते है, तो आप उनकी नज़रों में राष्ट्रवादी नहीं बल्कि देशद्रोही माने जाएँगे! देश के हर नागरिक का कर्तव्य होता है, अपने देश की हिफ़ाज़त करना, राष्ट्र का आदर और सम्मान देना और राष्ट्र के संविधान का सम्मान करना भी नागरिक कर्तव्य है।
तथाकथित राष्ट्रवादी द्वारा लोगों को गुमराह-भ्रमित करने एवं राष्ट्र की संप्रभुता और एकता-अखंडितता तोड़ने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे है। इनके लिए शब्द ही सबसे बड़ा हथियार है! जब राष्ट्र के नाम की बात आती है तो ज़्यादातर लोग राष्ट्र को संविधानिक नाम, ‘भारत’ और ‘इंडिया’ के बजाय ग़ैर संविधानिक और अपमानजनक नाम ‘हिंदुस्तान’ से सम्बोधित करते हुए नज़र आएँगे! ठीक उसी तरह राष्ट्रध्वज के बारे में भी लोगों को इरादतन भ्रमित किया जा रहा है। आम लोगों की बात छोड़िए, सबसे बड़े संविधानिक ओहदे पर बिराजमान भारत के महामहिम राष्ट्रपति जब राष्ट्रध्वज को ‘तिरंगा’ कहते है तो दुखद आश्चर्य होता है!
आज़ादी के आंदोलन के दौरान विविध संगठनो का ध्वज बदलता रहा, और आख़िरकार तीन रंगो के पट्टों के साथ नीले रंग के अशोक चक्र वाले वर्तमान राष्ट्रध्वज को संविधान द्वारा अंगिकृत किया गया। लेकिन भारत के राष्ट्रध्वज को ‘तिरंगे’ के नाम से जाना जाता है। संविधान के मुताबिक़ राष्ट्रध्वज का सम्मान करना नागरिक का मौलिक कर्तव्य है। लेकिन राष्ट्रध्वज की पहचान के दौरान ही राष्ट्रध्वज की अवहेलना होती है! भारत का राष्ट्रध्वज तिरंगे के नाम से क्यों पहचाना जाता है? जबकि तीन रंगो के पट्टों के साथ नीले रंग का अशोक चक्र भी है! लेकिन तथाकथित राष्ट्रवादियों द्वारा अशोक चक्र के नीले रंग को चालाकी से जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया जाता है। तथाकथित राष्ट्रवादी बिना मक़सद कोई काम नहीं करते..! याद रखिए, अगर हम उसे इसी तरह नज़रअंदाज़ करते रहे तो जिस तरह से करेंसी नोटों से अशोक स्तंभ ग़ायब हुआ, ठीक उसी तरह राष्ट्रध्वज से अशोकचक्र भी ग़ायब हो जाएगा। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है! इसी साल के 26 जनवरी, गणतंत्र दिन के कुछ विज्ञापन को ग़ौर से देखिए।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 51A में बताए गए नागरिकों के मूल कर्तव्य में पहला कर्तव्य है कि हर नागरिक संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे। और हम हर 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन राष्ट्रध्वज लहराकर और राष्ट्रगान गाकर अपना नागरिक कर्तव्य अदा कर देते है! लेकिन क्या यह काफ़ी है? संसद भवन के पास एक ख़ास समूह द्वारा देश के एक समुदाय का और संविधान निर्माता का अपमान कर, भारत का संविधान जलाया जाता है। आरोपी अब तक खुले घूम रहे है और संविधान द्रोह की इस कलंकित घटना को ना तो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का चौथा खंभा, नेशनल मीडिया इसे मुद्दा बनाता है और ना ही संसद के भीतर आवाज़ उठाई जाती है और दंभी राष्ट्रवादी व तथाकथित क्रांतिकारी तमाशबिन बने रहते है। हमें ऐसे पाखंडीयो को पहचान लेना चाहिए।
इस बारे में ज़रूर शांति से सोचिए, सिर्फ़ राष्ट्रध्वज फहराने से हमारा कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता!
जय भारत.. अब जागो भारत..
By- कीर्तिकुमार
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