सुजाता गिडला की ये किताब सभी जातियों को पढ़नी चाहिए
सुजाता गिडला ने भारतीय समाज में जातीय भेदभाव और छुआछूत को लेकर एक किताब लिखी हैं. ‘Ants Among Elephants’ यानि ‘हाथियों के झुण्ड में चीटियां’. बहरहाल आप ने अपने बचपन के जमाने में हाथी और चींटी को लेकर किताबों में ढेरों कहानियां पढ़ी होंगी. इस किताब का शीर्षक भले ही ‘हाथियों के झुण्ड में चीटियां’ रखा गया है लेकिन इस किताब में हाथी और चींटी को लेकर ऐसी कोई कहानी नहीं लिखी गई है. दरअसल यह किताब हमें अंदर से झकझोर कर रख देती है, क्योंकि इस किताब में जितना कुछ लिखा गया है, सब कुछ फ्रेम में डूबा हुआ लिखा है और कमाल ये है कि इस किताब में बिल्कुल भारत के कड़वे सच को लिखा गया है. इस में कोई दो राय नहीं की इस किताब के जरिए सुजाता गिडला ने सोये जमीरों को जगाया है. साथ ही दबे कुचलों की आवाज बनने की एक क्रांतिकारी कोशिश भी की है.
सुजाता गिडला आन्ध्र प्रदेश की रहनेवाली हैं और वो दलित परिवार से आती हैं. सुजाता अपनी किताब में एक जगह लिखती हैं आप भारत में एक सवाल से कभी बच कर भाग नहीं सकते और वो है जाति से जुड़ा हुआ सवाल.
बहरहाल दलित द्वारा पकाए खाने को ना खाना, दलितों को जाति सूचक गाली देना, दलित लड़कियों को बलात्कार का शिकार बनाना, दलितों को नंगा करके घुमाना, उनके साथ हिंसा करना, हिंसा के दौरान घर फूंक देना और हत्या जैसी घटनाएं उनके साथ होती रहती हैं. और यह सब जाति के नाम पर किया जाता है. जिस वक्त भारत में आजादी के आंदोलन चल रहे थे, उस वक्त समान सामाजिक हकों के लिए भी आवाजें उठ रहीं थीं. बाबा साहेब डॉ.भीम राव अम्बेडकर ने इसे लेकर लंबा संघर्ष किया. बाबा साहेब डॉ.भीम राव अम्बेडकर ने भारत के आजाद होने के बाद संविधान के जरिए कानूनी रूप से उन्हें हक भी दिलाया. लेकिन आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी देश आज छुआछूत के खेल में फंसा हुआ है.
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Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…