बेमिसाल बर्तोल्त ब्रेख्त, जिनके विचार आज भी भारत के लिए प्रासंगिक हैं
Published by- Aqil Raza ~
बर्तोल्त ब्रेख्त को एक बेहतरीन कवि… लेखक… नाट्यकार… के रूप में जरूर पहचाना जाता था, मगर वे एक यथार्थवादी क्रांतिकारी थे इसका अनुभव तो स्टेफन पार्कर की किताब “Bertolt Brecht a Literary Life” ने कराया |
जर्मन लेखक बर्तोल्त ब्रेख्त और हंगरी के दार्शनिक जार्ज लुकाच के बीच हुई ऐतिहासिक बहस में समतामूलक समाज की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध क्रांतिकारी कला व साहित्य के मूल सृजनकारी तत्त्व कौन से होने चाहिए इसकी चर्चा आज के भारत के सन्दर्भ में भी प्रासंगिक है |
ब्रेख्त, की यह कोशिश थी कि…
बाह्य जीवनरूपों के भीतर छिपे सत्य को क्रांतिकारी कला व साहित्य के माध्यम से कैसे व्यक्त किया जाए।
उन्होंने उन 5 समस्याओं का उल्लेख किया जिनका किसी लेखक को सामना करना होता है, उन्होंने लिखा है की इन दिनों जो भी झूठ और अज्ञानता से लड़ना चाहता है और सच लिखना चाहता है, उसे कम से कम पांच मुश्किलों पर अवश्य विजय हासिल करनी चाहिए।
उसमें ऐसे समय में सच लिखने का ‘साहस’(courage) होना चाहिए जब सच का हर तरफ विरोध हो रहा हो। सत्य को पहचानने की ‘उत्सुकता’ (keenness) होनी चाहिए, भले ही हर तरफ उसे ढंकने-छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो।
सत्य का हथियार की तरह प्रयोग करने का ‘गुण’ (skill) होना चाहिए। यह निर्णय (judgement) करने की क्षमता होनी चाहिए कि किसके हाथ में सत्य अधिक प्रभावशाली होगा। ऐसे योग्य लोगों के बीच सत्य का प्रचार करने की चतुराई (sagaciousness) भी होनी चाहिए।
स्वाभाविक रूप से…फासीवाद के अधीन रह रहे लेखकों के लिए ये भारी मुश्किलें होती हैं, लेकिन ये उनके सामने भी होती हैं जो पलायन कर गए हैं या निर्वासन में हैं। ये मुश्किलें वहां भी हैं जहां लेखक ऐसे देश में रह रहे हैं जहां नागरिक स्वतंत्रता मिली हुई है।
ब्रेख्त मानते थे की..कला का उद्देश्य प्रतिरोधी यथार्थवाद है तो वह केवल शोषक तथा शोषित के मध्य के निर्णायक संघर्ष के दौरान ही अपनी सार्थक भूमिका का निर्वाह कर सकती है। और यह ऐसे संघर्ष में हथियार की तरह है जो शोषित समाज के अंतिम भ्रामक रूपों को भी समाप्त कर देगा।
इसके लिए केवल सत्य लिखना काफी नहीं है बल्कि एक विशेष पाठक वर्ग (शोषितों) को ध्यान में रखकर सत्य को व्यक्त करना होगा।
यह थे…
बर्तोल्त के विचार जो आज के भारत के लिए कितने प्रासंगिक है |
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