पूर्व CM दारोगा प्रसाद राय बाबू ने सामंतीयों को चने चबवा दिए थे ।
दारोगा प्रसाद राय 1970 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे।उनका जन्म सारण जिले में 1922 को हुआ था। पहली बार 1957 मे विधायक चुने गए थे।
इनके पहले भी दो पिछड़े वर्ग के व्यक्ति बिहार में मुख्यमंत्री रह चुके थे, पहला तीन दिन जब कि दूसरा 30 दिन। पिछड़े वर्ग से आनेवाले दरोगा प्रसाद राय तीसरे मुख्यमंत्री थे जो 300 दिन मुख्यमंत्री रहे।दारोगा बाबू से पहले बिहार में करीब 9 माह से राष्ट्रपति शासन चल रहा था।
मुख्यमंत्री के रूप में दारोगा बाबू ने पहली बार खुलकर पिछड़ा वाद किया।
शपथ लेते ही उन्होंने तात्कालिक मुख्य सचिव को एक आदेश पत्र थमाया जिसमे पहला आदेश ही उनको इस्तीफा देने के लिए था, वे द्विज थे। दूसरा आदेश था, वरीयता क्रम में 16वें स्थान पर रहने वाले पिछड़े वर्ग के ऑफिसर को मुख्यसचिव बनाने के लिए, इस आदेश को न्यायालय में चुनौती भी दी गई, पर दारोगा बाबू अटल थे विजयी भी हुए।
तीसरा आदेश था पुलिस विभाग के महत्वपूर्ण पोस्ट आईजी-प्रशासन पर एक पिछड़े वर्ग के आईपीएस की नियुक्ति के लिए। ज्ञात रहे डीजीपी रैंक के लिए कोई पिछड़ा ऑफिसर उपलब्ध ही नही था। चौथा आदेश था पिछड़े वर्ग के व्यक्ति को राजभाषा परिषद का चेयरमैन बनाने का .. इसी तरह का एक/दो और आदेश उसी पत्र में था। सब तुरत एक्सक्यूट हुआ।
दारोगा बाबू के कार्यकाल पर 2 अप्रैल 1970 को विधानसभा के ऐतिहासिक भाषण में शहीद जगदेव प्रसाद कहते हैं,
” राष्ट्रपति शासन में शोषित जनता और शोषित ऑफिसर तबाह बर्बाद कर दिए गए हैं। ऐसे जन-विरोधी, जनतंत्र विरोधी ऊची जात के शासन से मुक्ति दिलाने वाले दारोगा प्रसाद राय बधाई के पात्र हैं। बिहार के इतिहास में पहली बार एक शोषित समाज के साधारण परिवार में पैदा हुआ एक अच्छा आदमी मुख्यमंत्री हुआ है। इस पर हमको फक्र है।
हम को खुशी है कि इस सरकार ने एक महीने के अंदर पांच एकड़ जमीन पर से मालगुजारी खत्म करने के लिए अध्यादेश जारी कर दिया ..”
हमे ध्यान रखना चाहिए कि जिसप्रकार 1925 में हुआ लाखोचक घटना बिहार में सामाजिक मामले में मुलचुल बदलाव के दिशा में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ था, उसी तरह 1970 का साल राजनीति में मोड़ था। इसी साल लालु प्रसाद पटना विश्वविद्यालय में पहली बार हो रहे छात्रसंघ के चुनाव में सेक्रेटरी चुने गए थे तथा बिहार में पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने के लिए मुंगेरी लाल आयोग के गठन का फैसला लिया गया था।
भले ही इसकी पृष्टभूमि बहुत पहले से बन रही थी, पर उसे निर्णायक मोड़ देने का श्रेय दारोगा बाबू को ही जाता है।
यह भी ध्यान रहना चाहिए कि जब 14 अप्रैल 1970 को आरा में जगदीश मास्टर और रामेश्वर अहीर अपने हजारों साथियों के साथ जुलुस लेकर रमना मैदान पहुचकर द्विज ब्राह्मणवादी/सामंतीयों के खिलाफ उदघोष कर रहे थे और हरिजिस्तान लड़ के लेंगे का नारा बुलन्द कर रहे थे तो यह दारोगा बाबू के ही शासन में सम्भव हुआ था।
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