महानायक बिरसा मुंडा कैसे बने भगवान!
आज बिरसा मुंडा की जयंती है और पूरा आदिवासी समाज जयंती मना रहा है. वही ट्वीटर पर भी धरती आबा-बिरसामुंडा ट्रेंडिंग पर चल रहा है. बिरसा मुंडा औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ आदिवासी जनता के निर्णायक संघर्ष के प्रतीक माने जाते हैं. हालंकि कम लोग जानते है कि बिरसा मुंड़ा कौन है. तो आपको बता दें कि जिस वक्त राजनीति की मुख्यधारा का प्रतिनिधित्व करने वाली कांग्रेस अंग्रेजों की छत्रछाया में सीमित आंतरिक स्वशासन या होम रूल की मांग कर रही थी. उससे कई दशक पूर्व बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों से मुक्ति के खिलाफ निर्णायक संघर्ष का ऐलान किया और पूरी ताकत से उनसे लड़े भी.
1895 के समय में पूरा आदिवासी समाज साल-दर-साल चले आ रहे शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ अंदर ही अंदर सुलग रहा था. मुंडा राज की वापसी की उद्घोषणा हो चुकी थी. जरूरत थी उस आंदोलन का नेतृत्व करने वाले एक नायक की और बिरसा मुंडा उस विद्रोह के नायक बनकर उभरे. उनका मकसद था जमींदारों को मार भगाना और मूलवासियों को परंपरा से मिले अधिकारों को बहालकर रहे लोगों को सबक सिखाना. फिर बिरसा ने सेना तैयार की न सिर्फ जमींदारों से लड़ने के लिए बल्कि अंग्रेजों को उस क्षेत्र से भगा देने के लिए. और उन्होने मुंडा राज की स्थापना का संकल्प लेते हुए घोषणा की मैं उस राज का प्रमुख हूं.
अंग्रेजों की लागू की गयी ज़मींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-ज़मीन की लड़ाई की जंग का ऐलान किया. यह मात्र विद्रोह नहीं था. यह आदिवासी अस्तित्व और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था और बिरसा ने सबसे पहले आदिवासी-समाज अंधविश्वासों और ढकोसलों के चंगुल से छूट कर पाखंड के पिंजरे से बाहर आ सके. इसके लिए उन्होंने ने आदिवासियों को स्वच्छता का संस्कार सिखाया. शिक्षा का महत्व समझाया. सहयोग और सरकार का रास्ता दिखाया. दूसरा बिरसा मुंडा ने जब सामाजिक स्तर पर आदिवासी समाज में चेतना पैदा कर कि आर्थिक स्तर पर सारे आदिवासी शोषण के विरुद्ध होगें.
तीसरा था राजनीतिक स्तर पर आदिवासियों को संगठित करना. चूंकि उन्होंने सामाजिक और आर्थिक स्तर पर आदिवासियों में चेतना की चिंगारी सुलगा दी थी अतः राजनीतिक स्तर पर इसे आग बनने में देर नहीं लगी. आदिवासी अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति सजग हुए.
ब्रिटिश हुकूमत ने इसे खतरे का संकेत समझकर बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया. वहां अंग्रेजों ने उन्हें धीमा जहर दिया था. जिस कारण वे 9 जून 1900 को शहीद हो गए. खैर हालात तो आज भी नहीं बदले हैं. आदिवासी आज भी गांवों से खदेड़े जा रहे हैं और जंगलो को खत्म किये जा रहे हैजिससे आदिवासी भी विलुप्त होते जा रहे है. अगर आज बिरसा मुंडा होते तो आदिवासि अपनी जमींन और जंगल दोनो से वंचित न होते.
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