जय श्रीराम के नारे का मुकाबला फुले, पेरियार और आंबेडकर की विचारधारा से ही किया जा सकता है।
भाजपा के राजनीतिक विस्तार में जय श्रीराम के नारे की सबसे निर्णायक भूमिका रही है। लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या तक के लिए शुरू की गई रथयात्रा का मुख्य नारा जय श्रीराम था। बाबरी मस्जिद का विध्वंस भी जय श्रीराम के नारे के साथ किया गया था। मंडल की राजनीति को पराजित करने के लिए यह नारा व्यापक पैमाने पर उछाला गया। गुजरात नरसंहार का भी मूल नारा जय श्रीराम था। जय श्रीराम के नारे, विचार और एजेंडे की भाजपा को 2 सांसदों की पार्टी से 300 से अधिक सांसदों की पार्टी बनाने में अहम भूमिका रही है। जिसने वर्ण-जाति आधारित हिंदू राष्ट्र के निर्माण का रास्ता तैयार किया।
जय श्रीराम के नारे के साथ भाजपा बंगाल पर कब्जा करने की ओर बढ़ रही है। भाजपा के महासचिव और बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कहा है कि अब भाजपा जय श्रीराम के साथ जय महाकाली का नारा मिलाकर बंगाल में अपनी सत्ता कायम करेगी। ममता बनर्जी जय हिंद-वंदेमातरम के नारे के साथ इसका मुकाबला करने की सोच रही हैं। क्या वह ऐसा कर पायेंगी ?
प्रश्न यह उठता है कि जय श्रीराम के नारे, विचारधारा और एजेंडे का मुकाबला कैसे किया जा सकता है?
इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि जय श्रीराम किसके प्रतीक हैं?
सभी हिंदू ग्रंथों और महाकाव्यों में राम का जो चरित्र मिलता है, उसके दो बुनियादी लक्षण हैं। पहला, राम का मूल कार्य यह है कि वे जिस आर्य-ब्राह्मण संस्कृति और जीवन पद्धति के रक्षक हैं, उससे भिन्न संस्कृतियों और जीवन पद्धति वाले लोगों की हत्या और उनका संहार करना, जिन्हें असुर और राक्षस कहा गया, जो मूलत: अनार्य-द्रविड़ थे। दूसरा, जिन लोगों ने वर्ण-जाति व्यवस्था स्वीकार कर ली है, यदि वे उसका उल्लंघन कर रहे हैं, उन्हें दंडित किया जायेगा, जिसमें शूद्र (ओबीसी) अतिशूद्र (एस.सी.) और महिलाएं शामिल हैं। पहले का उद्देश्य है आर्य-ब्राह्मण संस्कृति और जीवन-पद्धति को न स्वीकार करने वालों का विनाश करना और उन्हें अपने अधीन बनाकर उन्हें आर्य-ब्राह्मण संस्कृति को स्वीकार करने के लिए बाध्य करना। दूसरे का उद्देश्य है आर्य-ब्राह्मण संस्कृति यानी वर्ण-जाति व्यवस्था और पितृसत्ता के नियमों का उल्लंखन करने वालों को दंडित करना। तुलसीदास ने भी साफ शब्दों में लिखा है कि राम ने ब्राह्मणों, गाय और देवताओं की रक्षा के लिए जन्म लिया था। भारतीय वामपंथियों ने भी इसी राम को न्याय का प्रतीक बना दिया। अब तो बंगाल में कहा जा रहा है कि पहले राम भी वाम थे। इस तथ्य की स्वीकृति मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने भी की। राम को न्याय का प्रतीक बनाने वालों में हिंदी के दक्षिणपंथी आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल से लेकर वामपंथी रामविलास शर्मा एवं नामवर सिंह भी शामिल रहे हैं। कवियों में मैथिलीशरण गुप्त से लेकर निराला तक राम को न्याय का प्रतीक मानते हैं। बंगाल के वामपंथियों ने राम की जगह अनार्य संस्कृति के राजा महिषासुर और उसके साथियों की हत्या करने वाली दुर्गा को न्याय का प्रतीक बना दिया। सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला ने राम और दुर्गा को मिलाकर न्याय का एक प्रतीक रच कर ‘राम की शक्तिपूजा’ नामक कविता लिख डाली। जिसे हिंदी के सभी प्रगतिशील आलोचक एकस्वर से हिंदी की सर्वश्रेष्ठ या सर्वश्रेष्ठ कविताओं में से एक मानते हैं।
आज भी जय श्रीराम के नारे के दो ही समुदाय लक्ष्य हैं। पहला आर्य-ब्राह्मण संस्कृति को न स्वीकार करने वाले मुसलमानों और ईसाईयों को असुर और राक्षस कहकर उनके प्रति घृणा और उनकी हत्या को जायज ठहराना। दूसरा उन बहुजनों और महिलाओं को दंडित करना जो आर्य-ब्राह्मण संस्कृति को चुनौती दे रहे हैं।
अब प्रश्न यह उठता है जय श्रीराम या जयमहाकाली के नारे का मुकाबला कैसे किया जा सकता है। यह तय बात है कि राम और दुर्गा को न्याय का प्रतीक मानने वाले तो ऐसा कर नहीं सकते, चाहे वे कांग्रेसी हो, वामपंथी हो या ममता बनर्जी हों। क्योंकि ये खुद ही राम को न्याय का प्रतीक मानते हैं।
सच यह है कि जय श्रीराम और जय महाकाली या जय दुर्गा का मुकाबला सिर्फ और सिर्फ फुले, पेरियार और आंबेडकर की विचारधारा से ही किया जा सकता है। क्योंकि यही विचारधार राम को अन्याय का प्रतीक मानती है और उन्हें हमलावार और उत्पीड़क के रूप में देखती है। पेरियार की ‘सच्ची रामायण’ और डॉ. आंबेडकर की ‘हिंदू धर्म की पहेलियां’ किताब ही राम के असली अन्यायी चरित्र को सामने लाती हैं और उससे मुकाबले के लिए तर्क, तथ्य, दर्शन, विचारधारा और एजेंडा मुहैया कराती हैं। फुले ने अपनी किताब ‘गुलामगिरी’ में राम जो विष्णु के अवतार कहे जाते हैं, उनके विभिन्न रूपों की असलियत को उजागर किया है।
जोतिराव फुले, पेरियार और डॉ. आंबेडकर की विचारधारा ही आर्य-ब्राह्मण संस्कृति के रक्षक राम को बहुजनों का दुश्मन घोषित करती है और स्वतंत्रता, समता और भाईचारा आधारित राम मुक्त भारत के निर्माण का आह्वान करती है।
लेखक- सिद्धार्थ आर, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक व संपादक, हिंदी फॉरवर्ड प्रेस. सिद्धार्थ जी नेशनल इंडिया न्यूज को भी अपने लेखों के जरिए लगातार सेवा दे रहे हैं।
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