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संस्कृती - सामाजिक - ऑगस्ट 24, 2019

Ravidas राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आणि हिंदू भाजप च्या ध्येयवादी नायक का ?

सिद्धार्थ By- डॉ रामू ~

का संत संत रैदास, बजरंग दल, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व हिंदू परिषद आणि भाजपा हिंदू आहेत आणि स्वत: ला हिरो मानत नाहीत ?

रैदास मंदिर तोडले, त्यानंतर, निषेध आणि त्यानंतरच्या सर्व घडामोडींनंतर देश आणि जगात दलित-बहुजनांच्या पूर वाढल्याबद्दल संघ-भाजप आणि त्यातील सहयोगी संघटनांचे मौन हे राडेस या लोकांना किंवा दोघांनाही नाही, ही स्पष्ट घोषणा नाही हिंदू स्वत: ला नायक मानत नाहीत किंवा मानत नाहीत.

आदि शंकराची कल्पना करा, तुलिडीदास, सावरकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाळ उपाध्याय यांचे कोणतेही मंदिर किंवा स्मारक तोडले गेले असते, तर या हिंदूवादी संघटना गप्पच राहतील? रस्त्यावर येऊ नका? रक्ताचे नद्या कधीही वाहण्यास तयार होत नाहीत?

असे म्हणता येईल की संघ-भाजपा आणि त्यांच्या इतर संघटना रायदास मंदिर पाडण्याच्या विरोधात नाहीत.,क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तोड़ा गया है। इस बात में कोई सच्चाई नहीं है। इन्हीं लोगों ने अभी हाल में सुप्रीमकोर्ट के आदेश की ऐसी-तैसी करके हजारों लोगों की मानव दीवार बनाकर सबरीमला मंदिर में महिलाओं को घुसन से रोका और सुप्रीम कोर्ट के आदेश की ऐसी की तैसी कर दी। इन्हीं लोगों ने यथास्थिति बनाए रखने के सुप्रीमकोर्ट के आदेश का खुलेआम उल्लंघन करके बाबरी मस्जिद तोड़ा था। इनको किसी कोर्ट के आदेश से कोई लेना-देना नहीं होता। अभी हाल में इन्होंने कानून की ऐसी की तैसी करके सावरकर की मूर्ति दिल्ली विश्वविद्यालय में लगा दी।

संघ-भाजपा आणि त्यांच्या अन्य संस्था संत रैदासांना हिंदू किंवा त्यांचा नायक का मानत नाहीत, हा प्रश्न आहे?

इसका पहला कारण तो यह है कि संघ-भाजपा और उसके अन्य संगठन ब्राह्मणों या अधिक से अधिक द्विजों को ही अपना नायक मानते है। हां केवल ब्राह्मण या द्विज होने से काम नहीं चलेगा, ती व्यक्ती देखील ब्राह्मण असणे आवश्यक आहे, ज्याचा अर्थ वर्ण-जातीची पद्धत आणि स्त्रिया आणि इतर धर्मांवर पुरुषांचे वर्चस्व स्वीकारणे होय, विशेषत: मुस्लिम आणि ख्रिश्चनांचा द्वेष. संघ-भाजपाचे जवळजवळ सर्व नायक ब्राह्मण आहेत., सावरकरांसारखे, श्याम प्रसाद मुखर्जी, गोलवरकर, दीनदयाळ उपाध्याय यांनी आदि आणि वर्ण-जाती प्रणाली आणि मनुस्मृती यांचे कौतुक केले आणि मुस्लिमांना हिंदूंचे शत्रू घोषित केले.

दूसरे प्रश्न यह है संघ-भाजपा संत रैदास को क्यों हिंदू और अपना नायक नहीं मानते। पहला कारण तो यह है कि संत रैदास दलित हैं और दूसरा कारण यह है कि उन्होंने वेदों, ब्राह्मण, वर्ण-जाति व्यवस्था और हिंदू धार्मिक पाखंडों और अन्य मूल्यों-विचारों की तीखी आलोचना की है। इसके साथ वे मुसलमानों के प्रति हिंदुओं को ललकारने के भी काम नहीं आ सकते। क्योंकि उन्होंने कबीर की तरह ही हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रेम और भाईचारे की बात की है और दोनों के पोंगापंथ को खारिज किया है।

कभी भी हिंदू धर्म ने आज के अन्य पिछड़ों ( शूद्र ), दलित ( अतिशुद्र ) और महिलाओं को हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं माना, न वे आज मानते हैं। यहां तक कि इनसे इंसान होने का दर्जा भी छीन लिया। इतना ही नहीं उनके भगवान भी इन्हें कभी अपना नहीं माने। हां यह सच है कि दलित-बहुजन और महिलाएं अपनी मानसिक गुलामी के चलते अपने को हिंदू मानते रहे और अधिकांश आज भी मानते हैं।

यही पूरे भारतीय समाज पर मुट्टठीभर द्विजों के वर्चस्व का आधार है।

वे रैदास को अपना नहीं मानते, लेकिन हम उनके राम को अपना मानकर बाबरी मस्जिद तोड़ने और रामंदिर बनाने के लिए सबकुछ न्यौछावर करने को तैयार हो जाते है। यही उनके वर्चस्व का आधार है। जिसे तोड़ने के लिए जोतिराव फुले, डॉ. आंबेडकर, पेरियार, पेरियार लालाई सिंह यादव, रामस्वररूप वर्मा और स्वामी अछूतानंद ने अपना जीवन लगा दिया। लेकन अफसोस की आज भी दलित-बहुजनों का बड़ा हिस्सा संघ-भाजपा और द्विजों की पालकी ढ़ोने के लिए तैयार है। यही है ब्राह्मणवादी मानसिक गुलामी।

न्याय आणि लोकशाही
ज्येष्ठ पत्रकार
संपादक-पुढे प्रेस

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