जामिया के बाद अब जेएनयू के गर्ल्स हॉस्टल में गुंडों की तानाशाही
BY: Kanaklata Yadav
आज शाम में हम लोग साबरमती ढाबे पर इकट्ठा थे, मुझे बाहर से खबर मिली कि बाहर बहुत से लोग मार पीट करने के लिए इकट्ठा हैं, काफी लोग कैंपस में भी घुस चुके हैं और आज रात में कुछ भी हो सकता है, आप लोग बच कर रहिये। हम लोग ये सब सुन ही रहे थे और जेएनयूटीए के पीस मार्च में शामिल होने वाले थे। हम और हमारे कई साथी साबरमती ढाबे पर चाय पी रहे थे, मुझे बाथरूम जाना था तो मैं साबरमती होस्टल में चली गई। बाथरूम के अंदर ही मुझे बाहर की आवाजें सुनाई देने लगीं, लोगों के चीखने भागने, गली गालौज और बदहवास भागती लड़कियों की चीख की आवाज आने लगी, बहुत सी लड़कियाँ बाथरूम की तरफ भी बचने के लिए भागी, मैं भी अंदर 10 से 15 मिनट तक रही, थोड़ा शोर थमने पर मैं बाहर निकली और मुझे समझ में आ गया था कि जामिया के पैटर्न पर यहां रात भर अब मारपीट, हरासमेंट, गली गालौज चलेगा और अब बचना मुश्किल है। मैं चुपचाप बाथरूम के गेट पर खड़ी थी और शायद डिसीजन नहीं ले पा रही थी कि अब किया क्या जाय। तभी दोबारा लड़कियां भागती हुई आई और सभी लोग दौड़ कर जिस भी कमरे में जगह मिली छुप गए, लाइट बन्द कर ली गयी, बहुत सी लड़कियां रोने लगीं, परेशान थीं, चोट लगी हुई थी और बहुत सी लड़कियां बहादुरी से इन गुंडों से लड़ भी रही थीं। 7 से 8 बार ऐसे हम सभी लोग होस्टल में भागे और अलग-अलग जगह जाकर छुपे, मुझे बस इतना ही समझ मे आया कि कुछ लोगो को मैसेज कर दूं ताकि मदद कैंपस को तुरन्त पहुंचायी जा सके और कुछ दोस्तों को फ़ोन करके उनकी जानकारी लिए। बाहर के गुंडे गर्ल्स हॉस्टल में लड़कियों को दौड़ा रहे थे और हम लोग दौड़ कर बच रहे थे लेकिन हिम्मत हममें से किसी की भी कम नहीं थी, सभी एक दूसरे के साथ एकदम बने हुए थे। एक दोस्त फंसा हुआ था और उसे वहां से निकालने के लिए हम साबरमती होस्टल से बाहर आये और आगे बढ़े, लेकिन रास्ते में कुछ लोग डंडा वगैरह लेकर खड़े थे तो हम तुरन्त वहां से वापिस साबरमती की तरफ बढ़े और उतने में दोबारा गुंडों ने सबको दौड़ा लिया और हम सभी लोग दौड़े होस्टल की तरफ, पता चला को उन लोगों के पास एसिड, टूटी हुई बोतल, कट्टा, पत्थर और लाठी वगैरह है। हम होस्टल में किसी रूम में जाकर बचे, फिर दूसरे कमरे में हालात देखने गए और सोचे कि हमारे पास क्या है जिससे जब ये हमें मारने आये तो हम लोग बच सकें, कुछ लड़कियों ने कहा कि अगर दरवाजा तोड़ेंगे तो बालकनी से कूदना ही एक ऑप्शन है, कमरे में कुछ मारने के लिए भी नहीं था, सिर्फ किताबें, बिस्तर, अखबार, पावदान, लैंप और थोड़ा सा खाना। कमरे में बैठे हुए इतना मन सुन्न हो गया था, मुझे बस गोधरा और सभी दंगों की याद आ रही रही, इन्होंने क्या किया होगा दंगों में महिलाओं के साथ, सामान्यतः मैं रोती नहीं हूँ या कम रोती हूँ, आज मुझे स्टेट स्पॉन्सर्ड हिंसा पर रोना आ गया कि पढ़ना इस देश में अपराध हो गया है और बोलना तो अपराधों से भी खतरनाक हो गया है, ये सरकार हर विश्वविद्यालय के छात्र को अपराधी बना कर पेश कर रही है। मेरा मन हुआ कि मैं कोई किताब निकालूँ और चुपचाप थोड़ा देर पढ़ लूँ लेकिन लगातार बाहर से चीखने चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं। कई लड़कियों ने बैग पैक करके रख लिया कि जैसे ही मौका मिलेगा वो बाहर चली जाएंगी। मेरा मन ही कमरे में नहीं लग रहा था, सोच भी रहे थे कि कब तक कमरे में बैठेंगे और भागना तो ऑप्शन है नहीं। फिर हम नीचे आये और साबरमती पर ब्रह्मपुत्रा होस्टल के लोग आ चुके थे और काफी संख्या में स्टूडेंट्स वहां थे, उसके बाद बाकी दोस्तों को भी जाकर ले आये। आज करीब 8 से ज्यादा बार हम लोग भागे, हम लोग किससे भाग रहे थे क्यों भाग रहे थे क्या हमारा जुल्म था क्यों हम लोगों को चोटें आई हैं इसका जवाब और गुनाहगार सिर्फ ये सरकार है। मैंने पहले भी कई बार हिंसा के माहौल देखे हैं और फेस किया है लेकिन आज की रात जो अफरा-तफरी मैंने महसूस की है और देखी है वो वीभत्स है। अभी भी मेरा दिमाग उन्हीं चीजों में घूम रहा है। इतना जरूर है कि ये सब और ज्यादा मजबूत बना रहा है। इतनी भागदौड़ में बचने के लिए दौड़ते वक्त मुझे कब चोट लगी ये भी मुझे नहीं ध्यान आ रहा है, जब चीजे थोड़ी स्थिर हुईं तो इन सब चीजों का ध्यान आया। सबसे बड़ा संकट ये था कि हालात सामान्य करने के लिए किसे कॉल किया जाय, किससे मदद मांगी जाए क्योंकि जब पुलिस गॉर्ड और गुंडे तीनों ही मिलकर पीट रहे हैं और सरकर आपके खिलाफ है तो आप क्या करेंगे? अभी तक तो हम लोग जिंदा हैं, मानसिक रूप से पीड़ित हैं, मजबूत भी हैं, जगे हुए हैं, थके हुए हैं अब आगे का पता नहीं…
~~कनकलता यादव~~
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