पीएम मोदी का महिला सशक्तिकरण का नारा कितना जायज़ ?
By- Aqil Raza
विश्व में कल महिला दिवस मनाया गया, कल के दिन सभी न्यूज़ पेपर में, मैनस्ट्रीम मिडिया में महिलाओं की बहादुरी.. उनके प्रति आत्म सम्मान, और समाज में उनके योगदान पर कसीदे पढ़ने की होड़ लगी रही थी.. हमारे देश के राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों से लेकर शहर शहर महिला सम्मान कार्यक्रमों में लोग महिलाओं के सशक्तिकरण पर बड़ी बड़ी बातें करते दिखाई दिए थे। तो चलिए आज महिलाओं की स्थिति हकीकत की रोशनी में टटोलने की कोशिश करते हैं।
देश में महलाओं की स्थिति, खासकर ग्रामीण इलाकों की एसी है कि उनके दयनीय हालत हमारे दोहरे मापदंड, हमारे सिस्टम, हमारे समाज के गाल पर हर दिन झन्नाटेदार तमाचा लगाती हैं। मगर हम गाल सहला कर आगे बढ़ जाते हैं.. कोई मौजूदा सरकार को दोष देता है, कोई सिस्टम को, तो कोई समाज को। आज भी ग्रामीण क्षेत्र की कई समाज की महिलाएं अपने हक और अधिकार से वाकिफ नहीं हैं। और शायद इसी लिए कहना पढ़ रहा है कि ‘महिला दिवस पर ही क्यों आती है महिलाओं की याद..?
महिला सशक्तिकरण के नारों के बीच इसकी एक बड़ी तस्वीर को देखें तो ‘महिला आरक्षण बिल’ पर निगाह जाती है, मगर सियासी पार्टियां ने इस बिल को पार्लियामेंट की डस्ट बिन में डाल रखा है..ऐसे में सशक्त भारत औऱ महिला सश्तिकरण की बात कर पीएम मोदी पर कई सवाल खड़े होते हैं। सवाल ये है कि देश की संसद और विधानसभा में उन्हें उचित स्थान क्यों नहीं मिल रहा? महिला आरक्षण बिल जैसे गंभीर मुद्दे पर सरकार चुप क्यों है? मौजूदा प्रधान मंत्री आज राजस्थान में महिला सशक्तिकरण की दुहाई देते हुए कहते हैं कि PM का मतलब प्रधान नही बल्कि ‘पोषण मिशन’ है.. तो फिर महिला आरक्षण बिल पास कराने के मुद्दे पर पीएम चुप्पी क्यों साध लेते हैं..???
हमारा संविधान महिलाओं को समान अधिकार देने के साथ सशक्त बनाने के लिए कदम उठाने का अधिकार देता है. अनुच्छेद 14 के मुताबिक महिलाओं को समानता का अधिकार, अनुच्छेद 39 d में समान काम के लिए पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन, और अनुच्छेद 51 a महिलाओं के सम्मान को नुकसान पहुंचाने वाली परंपराओं को खत्म करने की बात करता है.
इसी प्रावधान के तहत ‘महिला आरक्षण बिल’ पास कर महिलाओ को समान हक दिलाने की बात की गई…मगर पिछले 22 वर्षों से ये बिल पास नही हो सका.. एच डी देवगौड़ा की सरकार में 1996 में सबसे पहले ये बिल संसद में पेश हुआ. 9 मार्च 2010 को राज्यसभा ने पास किया. मगर लोकसभा में आज तक इस बिल पर वोटिंग नहीं हुई.., हालांकि 1993 में संविधान में 73वें और 74वें संशोधन के जरिए पंचायत और नगर निकाय में एक तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित की गईं. मगर देश की राजनीति में महिलाओं की शून्य का बराबर भागीदारी मुंह चिढ़ाती है.
इस देश की सरकार में महिलाओं का क्या योगदान है उसपर नजर डालते हैं, लोकसभा की 545 सांसदों में महिला सांसदो की तादाद महज 66 है, राज्यसभा की 239 सांसदों में महिला सांसदों की तादाद सिर्फ 28 है, वहीं मोदी सरकार के 76 मंत्रियों में महिला मंत्रियों की दादा महज 9 है, औऱ देश भर के राज्यों में महिला मुख्यमंत्री सिर्फ 3 हैं, नागालैंड में अभी तक कोई महिला विधायक नहीं चुनी गई है।
अब आप अंदाज़ा सकते हैं कि कौन से महिला सशक्तिकरण की बात की जाती है। अगर महिला आरक्षण बिल पास हुआ, तो लोकसभा की 543 में से 179 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. वहीं राज्य विधानसभाओं की 4120 सीटों में से 1360 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. लेकिन ऐसा होने नहीं दिया जा रहा है, अब आप समझ सकते हैं कि पीएम मोदी कैसे महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं। लेकिन हकीकत में इसपर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
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