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Social - Uttar Pradesh & Uttarakhand - February 25, 2018

कासगंज: बहुजन की बारात से ‘शांति में ख़तरा’, पुलिस ने नहीं दी इजाजत

कासगंज। उत्तर प्रदेश के कासगंज ज़िले में बड़ा विवाद कुछ दिन पहले ही सामने आय़ा था. अब बहुजनों से भेदभाव की बड़ी खबर सामने आयी है. निज़ामपुर गांव की रहने वाली शीतल की शादी संजय जाटव से तय हुई है.

शीतल ठाकुर बहुल गांव में रहती हैं जहां बहुजनों की आबादी बहुत कम है. पर शीतल का मन है की उसकी बारात भी गाजे-बाजे के साथ आए और वो ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर से विदा हों. पर शीतल की इस ख़्वाहिश में शांति-व्यवस्था दिक्कत बन गई है. उनकी शादी इसी साल बीस अप्रैल को होनी है लेकिन वहां की पुलिस ने बारात निकालने की अनुमति नहीं दी है.

उनके मंगेतर 27 वर्षीय संजय जाटव को जब पता चला कि गांव से बारात निकालने में दिक्कत हो सकती है तो उन्होंने DM से लेकर CM तक को शिकायत की और सुरक्षा की मांग की. लेकिन अब पुलिस ने यह कहते हुए उनकी शिकायत का निवारण कर दिया है कि, “गांव में गोपनीय रूप से जांच की गई तो जानकारी हुई कि आवेदक के पक्ष के लोगों की बारात गांव में कभी नहीं चढ़ी है और आवेदक के द्वारा गांव में बारात चढ़ाए जाने से शांति व्यवस्था भंग होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता और गांव में अप्रिय घटना भी हो सकती है.”

स्थानीय पुलिस अधिकारी राजकुमार सिंह ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, “माननीय सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली के निर्देशों का पालन करते हुए बारात चढ़ाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.” वहीं, जब इस बारे में ज़िले के पुलिस अधीक्षक पीयूष श्रीवास्तव से सवाल किया गया तो उनका कहना था, “मुझे इस विषय में कोई जानकारी नहीं है, यदि आवेदक को कोई परेशानी है तो मुझसे आकर मिलें, वो बारात के लिए सुरक्षा की मांग करते हैं तो उन्हें सुरक्षा दी जाएगी.”

संजय ने सूचना के अधिकार के तहत पुलिस से पूछा है कि उनसे पहले कितनी बारातों को अनुमति नहीं दी गई है. बीबीसी से बात करते हुए संजय जाटव ने कहा, “हम भारतीय संविधान में मिला बराबरी का अधिकार मांग रहे हैं. बहुजन समुदाय को भी बाक़ी समुदायों की तरह बारात निकालने का हक़ है और मैं चाहता हूं कि मुझे ये हक़ दिया जाए.”

हाथरस ज़िले के बसई बाबस गांव के रहने वाले संजय जाटव कहते हैं, “मेरी बारात कासगंज के जिस गांव में जा रही है वहां बहुजनों की आबादी बहुत कम है और ऊंची जाति के लोग दबंगई करते हैं. वहां बहुजनों की बारात नहीं चढ़ाने दी जाती है, लेकिन मेरी इच्छा है कि बारात गांव से निकले इसलिए मैंने पुलिस अधीक्षक, पुलिस महानिदेशक और मुख्यमंत्री के कार्यालय में शिकायत भेजकर सुरक्षा की मांग की थी, लेकिन ये दुखद है कि बिना किसी आधार के पुलिस ने बारात निकालने की अनुमति देने से इनकार कर दिया.”

संजय कहते हैं, “दबंग लोग जाटव समाज की बहन बेटियों की बारात को चढ़ने नहीं देते हैं. मैं इस परंपरा को तोड़ना चाहता हूं. हम पीड़ित और वंचित समुदाय के लोग हैं, हमारे मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है.”

संजय ने यूपी सरकार के शिकायत पोर्टल पर भी अपनी शिकायत दर्ज कराई थी. उन्होंने कहा, “ये ही गंभीर और सोचनीय बात है कि आज के भारत में भी एक बहुजन व्यक्ति को अपनी बारात निकालने के लिए प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ रही है. ये आज के भारत की कड़वी सच्चाई है.”

उन्होंने कहा, “भेदभाव पहले भी था और अब भी है. अगर इस देश के बड़े नेता देश निर्माण की बात कर रहे हैं तो देश का निर्माण सिर्फ़ सड़कें और अस्पताल बनाने से नहीं होता, बल्कि समाज बनाने से होता है. सभी नागरिकों को बराबरी का हक़ मिलेगा तो तब ही देश बनेगा.”

( बीबीसी से मिली जानकारी के अनुसार )

 

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