Home Language Hindi CAA से मचा घमासान, बहुजन कहां से साबित करें अपनी पहचान!
Hindi - Political - Politics - March 5, 2020

CAA से मचा घमासान, बहुजन कहां से साबित करें अपनी पहचान!

“मैं इस क्रूर,रक्तपिपासु,हत्यारी हुकूमत पर लानत भेजता हूँ !” 1 मार्च 2020 को दिल्ली के जंतर मंतर पर लेखकों व कलाकारों के अखिल भारतीय जुटान ‘हम देखेंगे’ में दिया गया वक्तव्य )मैं जिन दलित ,आदिवासी और घुमन्तू समुदायों के मध्य कार्यरत हूँ,उनमें से ज्यादातर लोग पहले से ही अपनी पहचान सम्बन्धी कागज नहीं होने के संकट से गुजर रहे हैं,घुमन्तू समुदाय ने तो अपनी पहचान और नागरिकता संबंधी दस्तावेजों के नहीं होने को लेकर कईं बार आवाज़ उठाई है.

जिन लोगों के पास न रहने को घर है,न खेती को जमीन है,न व्यापार के लिए कोई दुकान है,यहां तक कि मरने के बाद जलाने या दफन करने के लिए श्मशान तक नहीं है,जिनका कोई गांव नही है,कोई ठौर ठिकाना नही है,जिनकी पैदाइश किसी सड़क के किनारे के फुटपाथ पर लगे तंबू में हुई,जिनका जीवन सड़कों पर बीतता है और जो लोग ज़िन्दगी जीने की जद्दोजहद करते हुए किन्हीं गुमनाम गलियों में मर खप जाते हैं,उनसे कागज मांगे जाएं तो वे कहां से लाएंगे कागज,किससे बनवाएंगे कागज ? कौन सी अथॉरिटी उनको पहचान के कागजात देगी और क्यों देगी ?

जब कबीले ही थे और जमीन सबकी साझा थी,नदी,नाले,झरनों,पहाड़ों और पठारों यहां तक कि खेतों तक पर सबका सामूहिक अधिकार था,न राज्य थे,न राष्ट्र,न राजा थे और न ही अब जैसी सरकारें ,तब से इन दलित ,आदिवासी और घुमन्तू लोगों के पुरखे इस देश मे रहते आएं हैं,उनसे अब कागज मांगे जा रहे हैं,यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि जो समुदाय कागज के निर्माण से भी पहले से इसी धरती का वाशिंदा है,उससे कागजों के जरिये खुद को साबित करने के लिए कहा जा रहा है,जबकि कागज उनकी कईं पीढ़ियों बाद इस धरती पर खोजा गया,मगर आज सरकार आम जन को कागजों के लिए कतार में लगाकर उलझा देना चाहती है,यह एक आपराधिक कारनामा है एक चुनी हुई सरकार का,खुद के ही नागरिकों के विरुद्ध,जो कि निंदनीय ही कहा जा सकता है।

-जब जिंदा लोगों को खुद को मुर्दा बेजान कागजों से साबित करना पड़े तो यह सरकार निर्मित आपदा ही कही जाएगी,इसकी कोई जरूरत नहीं है,किसी ने इसकी मांग नहीं की है,देश मे इसके लिए कोई जन आंदोलन नही चला कि लोगों ने सड़कों पर उतर कर एनआरसी या सीएए की मांग की हो,उल्टा इसकी घोषणा के बाद से जरूर पूरा देश सड़कों पर है,देश बर्बाद हो रहा है,दिल्ली सहित कई शहरों की सड़कें रक्तरंजित है,आग लगी हुई है और गोलियां चल रही है।

एनपीआर,एनआरसी और सीएए इंसान विरोधी कृत्य है ,यह मानवता के खिलाफ युद्ध है,जिसकी पुरजोर मुखालफत किये जाने की जरूरत है। जो दलित व आदिवासी भूमिहीन है,मजदूर हैं,प्रवासी हैं,ऐसे लोगों का किसी रेवन्यू रिकॉर्ड में कोई विवरण दर्ज नहीं है ,न ही सरकारों की किन्हीं फाइलों अथवा अन्य दस्तावेजों में कुछ भी दर्ज है,इनको तो पढ़ने लिखने और कागजों क़िताबों को छूने का भी हक़ नहीं था,ये लोग अपने पुरखों की पहचान के पुराने कागजात कहाँ से जुटाएंगे ?क्या वे अपनी रोजी रोटी छोड़कर बाकी की तमाम ज़िन्दगी सिर्फ नागरिकता के सुबूत कबाड़ने में लगा दें ?

कतिपय सिरफिरे सत्ताधीशों की सनक की भेंट चढ़ा दें अपना जीवन ?या संदेहास्पद नागरिक बनकर वोट का अधिकार व अन्य हक हकूक खो दें और अपने ही मुल्क में दोयम दर्जे के नागरिक अथवा सस्ते श्रमिक या दास बन जाएं ? क्या चाहती है सरकार ? एनपीआर, एनआरसी और सीएए भारतीय संविधान की बुनियाद पर हमला है ,यह इंसानियत पर हमला है,यह वसुधैव कटुम्बकम के दावे के मखौल है,यह अच्छे भले नागरिकों को एक दूसरे का दुश्मन बना देने की साज़िश है,यह नागरिक को गुलाम और आज़ाद को कैदी बनाने की शुरुआत है,यह अपने ही नागरिकों का खून पीने की सत्ता की अतृप्त लालसा का प्रकटीकरण है,यह नाकाबिले बर्दाश्त हरकत है,जिसे निरंकुश सत्ता राष्ट्र के नाम पर देशभक्ति की आड़ में कर रही है,जिससे पूरा मुल्क दशहत में है और सड़कें निर्दोषों के खून से लाल है।

मैं इस क्रूर,रक्तपिपासु, हत्यारी ,जालिम हुकूमत पर तमाम वंचित समुदायों की ओर से लानत भेजता हूँ और पूरे जोर से कहता हूँ कि हम किन्हीं शाहों,तानाशाहों से डरने वाले नहीं है,हम इनकी गालियों और गोलियों के आगे घुटने टेकने वाले नहीं है,हम समता,स्वतंत्रता,बंधुता और न्याय का यह संघर्ष जारी रखेंगे और नफरत के सौदागरों को हरा कर मानेंगे ।

-भंवर मेघवंशी
संस्थापक -दलित आदिवासी एवं घुमन्तू अधिकार अभियान,राजस्थान (डगर)

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