संत रैदास मंदिर गिराने और रामंदिर बनाने के राष्ट्रव्यापी आंदोलन का निहितार्थ
By-Siddharth Ramu~
संत रैदास मंदिर गिराने और रामंदिर बनाने के राष्ट्रव्यापी आंदोलन का निहितार्थ
रैदास या राम से तय होगा कि देश की सत्ता किसके हाथ में रहेगी।
पूजहिं विप्र सकल गुणहीना,
सूद्र न पूंजहिं ज्ञान प्रवीना
( तुलसीदास-रामचरित मानस)
रैदास बाभन मत पूजिए जो होवे गुनहीन,
पूजिए चरन चंडाल के जो हो गुन परवीन।
( संद रैदास)
जिस समुदाय की जो हैसियत होती है, उनके नायकों के साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जाता है। इस तथ्य को राम मंदिर बनाने के लिए देश व्यापी आंदोलन के माध्यम से देश की सत्ता पर कब्जा और करीब 500 वर्ष पुराने संत रैदास मंदिर को पलक झपते ही गिराने की घटना से समझ सकते हैं। राम इस देश के मालिक द्विजों के नायक हैं, जिन्होंने ब्राह्मणवाद यानी वर्ण-जाति व्यवस्था की रक्षा के लिए अवतार लिया था। तुलसीदास ने साफ शब्दों में कहा है कि-
विप्र धेनु सुर संत हित लीन मनुज अवतार
राम ने शंबूक का की हत्या कर भी इसको साबित किया था।
इसके विपरीत रविदास दलित-बहुजनों के नायक हैं। जो ब्राह्मणवाद, वर्ण-जाति व्यवस्था और वेदों को खारिज करते हैं। ब्राह्मणों के बारे में वे लिखते हैं कि-
धरम करम जाने नहीं, मन मह जाति अभिमान.
ऐ सोउ ब्राह्मण सो भलो रविदास श्रमिकहु जान
इतना ही नहीं, वे लिखते हैं कि-
दया धर्म जिन्ह में नहीं, हद्य पाप को कीच
रविदास जिन्हहि जानि हो महा पातकी नीच
वे लिखते हैं कि जाति ने भारतीयों को इंसान ही नहीं रहने दिया है-
जात-पात के फेर में उरझि रहे सब लोग,
मानुषता को खात है,रैदास जाति को रोग
रैदास के संपूर्ण साहित्य के अध्ययन से यही निष्कर्ष निकलता है कि रैदास ब्राह्मणवाद, वर्ण-जाति व्यवस्था और वेदों-स्मृतियों को खारिज करने वाले श्रमण परंपरा के संत थे।
जबकि राम भारत की द्विज जातियों के नायक हैं। भले द्विजों के विचारों के मानसिक गुलामी के शिकार दलित-बहुजन भी उन्हें अपना नायक या उससे बढ़कर ईश्वर मानते हों। स्वयं राम ने इसको छिपाया नहीं हैं। तुलसीदास के राम साफ शब्दों में कहते हैं कि मुझे मनुष्य प्रिय है,लेकिन उसमें सबसे अधिक द्विज प्रिय हैं।
सब मम प्रिय सब मम उपजाए।
सब ते अधिक मनुज मोहि भाए॥
तिन्ह महँ द्विज द्विज महँ श्रुतिधारी
तिन्ह महुँ निगम धरम अनुसारी॥
राम के ब्राह्मणवादी द्विज समर्थक चरित्र के चलते ही डॉ. आंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाओं में दूसरी प्रतिज्ञा यह है कि-मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा।
अपनी किताब ‘हिंदू धर्म की पहेलियां’ में डॉ. आंबेडकर ने राम की पहेली पर विस्तार से लिखा है ( पृ.324 से 342 संपूर्ण वाग्यमय खंड-8)। राम की पूरी कथा और चरित्र का विश्लेषण करते हुए उन्होंने टिप्पणी किया है कि “ इस कहानी में कुछ भी ऐसा नहीं है कि राम को पूजनीय बनाया जा सके।”( पृ.325)
एक द्विजों के ब्राह्मणवादी नायक राम को सबका नायक बना संघ-भाजपा पूरे देश पर कब्जा कर चुके हैं और हिंदू राष्ट्र के नाम देश को पूरी तरह द्विज राष्ट्र बना चुकें है, दूसरी तरफ या तो ब्राह्मणवाद विरोधी दलित-बहुजन नायकों का ब्राह्मणीकरण किया जा रहा है या उनके प्रतीकों को नष्ट् किया जा रहा है। इस प्रक्रिया की एक कड़ी है। करीब 500 वर्ष पुराने रविदास मंदिर को पलक झपकते ध्वस्त कर देना है।
भारत का दलित-बहुजन समाज एक साथ श्रमण परंपरा के नायक रैदास और ब्राह्मणवादी द्विज परंपरा के नायक राम को अपना नहीं कह सकता।
रैदास और उनके विचारों को अपनाने के लिए राम और उनके विचारों से मुक्ति पाना अनिवार्य है, क्योंकि राम ब्राह्मणवादी द्विज विचारों के प्रतीक है, जबकि रैदास जाति-पांति के विनाश और समता की श्रमण-बहुजन पंरपरा के आदर्श प्रतीक हैं।
रैदास या राम से यह भी तय होगा कि देश की सत्ता किसके हाथ में रहेगी।
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