घरी परतणारे कामगार पुन्हा मेले आहेत, कोण जबाबदार आहे ?
जरी देशात कामगार देण्याचे दावे केले जात असले तरी, परंतु ज्या कामगारांचा मृत्यू ट्रकमधून कधी झाला नव्हता अशा कामगारांची अवस्था पाहिल्यानंतर याचा सत्यता अंदाज केला जाऊ शकतो, कधी बस व कधी फ्रेट ट्रेनने चिरडले गेले. एकीकडे कोरोना येथील कामगारांवर दुहेरी मारहाण होत आहे, तर दुसरीकडे काही मजूर पायीच घरी परतल्यानंतरच मरण पावले..
खरंच, मध्य प्रदेशात बुधवारी रात्री एक अतिशय वेदनादायक अपघात झाला. गुना जिले के कैंट पीएस क्षेत्र में एक ट्रक और बस की जोरदार भिडंत हो गई जिसके चलते आठ मजदूरों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि लगभग 50 घायल हैं. इसके अलावा यूपी के मुजफ्फरनगर के जनपद में बस ने पैदल जा रहे मजदूरों को कुचल दिया. जिसके बाद सड़क हादसे में छह मजदूरों की मौत जबकि चार गंभीर रूप से घायल हैं. बिहार के समस्तीपुर में बस और ट्रक में टक्कर हुई जिससे दो मजदूरों की मौत हो गई और 12 घायल हो गए हैं. तरी, इन सभी राज्यों के प्रशासन का कहना है कि घायलों का अस्पताल में इलाज चल रहा है. वहीं इस बीच सवाल ये उठता है कि मामले की जांच कर कोई कार्रवाई क्यों नही की जा रही है ?
देश के अलग-अलग राज्यों में लगातार मजदूरों के साथ एक के बाद एक हादसे हो रहे है, जिससे मजदूरों की मौते हो रही है. लेकिन सरकार और प्रशासन के ढीले रवैये ने सभी को हैरान-परेशान कर दिया है. हादसे रुकने की बजाय प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे है. एक तरफ केंद्र और राज्य सरकारें मजदूरों की घर वापसी के तमाम दावें कर रहे है, तो वहीं दूसरी ओर मजदूरों के पैदल घर लौट रही तस्वीरें सभी दावे खारिज करते दिख रहे है.
बता दें कि बुधवार को मध्यप्रदेश, यूपी और बिहार से काफी मजदूरों के मौतों की खबर आई, तो वहीं करीब 6 दिन पहले महाराष्ट्र के औरंगाबाद से 16 मजदूरों के मालगाड़ी की चपेट में आने से मौत हो गई. मजदूर देश के रीढ़ की हड्डी है, अगर वह ही नही रहेंगे तो देश का भविष्य कैसा होगा ? क्या केंद्र सरकार को मजदूरों की सुरक्षा के लिए कोई कानून व्यवस्था नही बनानी चाहिए ? क्या मजदूरों पर प्रतिदिन हो रहे निंदनीय अपराध की जांच नही करानी चाहिए ? ऐसे सैंकड़ों सवाल केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे है.
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