भारत मे गरीबों के हित में सामाजिक और राजनीतिक बदलाव क्यों नहीं होते??
– संजय श्रमण ~
क्या ये सवाल आपको पीड़ित करता है? अगर करता है तो आपको समाज और राजनीति में इसके कारण नहीं खोजने चाहिए। जिस मुद्दे को आप समझना चाहते हैं उसे उसी के विश्लेषण से नहीं समझा जा सकता बल्कि उस मुद्दे को जन्म देने वाली परिस्थितियों और कारकों के विश्लेषण से समझा जा सकता है। अगर आप गरीबी को समझना चाहते हैं तो आपकी उन कारकों को समझना होगा जो गरीबी को पैदा करके बनाये रखते हैं।
इसी तरह अगर आप भारत मे असमानता, जातीय हिंसा, शोषण और जहालत को समझना चाहते हैं तो इसे इस देश की संस्कृति और धर्म के विश्लेषण से समझिए। इस संस्कृति और धर्म को भी आपको उन कल्ट गुरुओं के माध्यम से समझना होगा जो कि इस धर्म को सर्वाधिक आकर्षक परिभाषाओं से विभूषित करते आये हैं। ये घाघ और घिनौने गुरु घण्टाल हैं जो परलोकवादी पलायनवादी अध्यात्म की भांग पिलाकर गरीबों को सुलाते रहते हैं ताकि अमीर और शोषक वर्ग इन गरीबों का खून चूस सके।
इनमें भारत मे सबसे बड़ा नाम ओशो रजनीश का है। आइए इस महाधूर्त स्वघोषित भगवान के बारे में कुछ नई बातें जानते हैं। आजकल इनके शिष्य और परिवारजन एक नई धारा के माध्यम से बुद्धत्व और समाधि के सर्टीफिकेट बांट रहे हैं। तरह तरह के हथकंडे अपनाकर पैसा कमा रहे हैं। दुर्भाग्य ये कि जिस बहुजन और गरीब तबके को इस सारी सड़ांध को लात मारकर दूर कर देना था, वही गरीब जन इन धूर्तों के आश्रम में कीर्तन कर रहे हैं।
ओशो रजनीश पर पिछले साल जो नयी डॉक्युमेंट्री वाइल्ड वाइल्ड कंट्री के नाम से आई है उसे गौर से देखिये. शीला एक नादान किशोरी की तरह रजनीश से मिलती है. शीला के पिता रजनीश से प्रभावित हैं. शीला को उनके पिता कहते हैं कि ये व्यक्ति अगर लंबा जी सका तो ये दुसरा बुद्ध साबित होगा.
हर किशोरी लड़की की तरह शीला भी अपने पिता के इन बाबाजी के प्रति समर्पण से स्वयं भी प्रभावित होती हैं. कुछ मुलाकातों के बाद वो स्वयं भी रजनीश को अपना सर्वस्व समर्पित करके उनके लिए काम करने लगती हैं.
बाद में शीला एक नए एम्पायर को खड़ा करने के लिए एक शातिर संगठन की रचना और संचालन करती हैं. ये संगठन अमेरिका में स्थानीय नागरिकों और कानून व्यवस्था के लिए भारी चुनौतियाँ खड़ी करता है.
अंत में रजनीश को भी कहना पड़ता है कि शीला एक अपराधी हैं और ईर्ष्यालु महिला है, शीला ने जो कुछ किया वह शीला की जिम्मेदारी है मेरी इसमें कोई जिम्मेदारी नहीं है. फिर ओशो रजनीश शीला पर लाखों डालर्स के गबन का और हत्याओं के षड्यंत्र का आरोप लगाते हैं और फिर शीला कानूनी पचड़ों से बचने के लिए जर्मनी के जंगलों में शरण लेती हैं.
आज भी वे स्विट्जरलैंड में ज्यूरिख के पास किसी गाँव में गुमनाम और अपमानित सा जीवन जी रही हैं और ओशो रजनीश के कारनामों का खुलासा करती रहती हैं. अगर ये बाबाजी इनके जीवन में न आये होते तो इनका जीवन अधिक शांतिपूर्ण और सम्मानित हो सकता था.
यहाँ इस प्रसंग में दो बातों पर गौर कीजियेगा.
सबसे पहली और बड़ी बात ये कि शीला के पिता और शीला स्वयं ओशो रजनीश को “दुसरे बुद्ध” के रूप में देख रहे हैं. वे असल में ओशो रजनीश से नहीं बल्कि बुद्ध की महिमा से प्रभावित हैं और इसीलिये वे बुद्ध की तरह होने का दावा करने वाले ओशो के निकट आ रहे हैं. बाद में शीला जब ओशो रजनीश की हकीकत जानतीे हैं तब वे आश्चर्यचकित रह जाती हैं.
दुसरी बात इस उदाहरण में यह दिखाई देती है कि ओशो रजनीश जैसे वेदांती धूर्त बाबा लोग किस तरह देश और दुनिया के प्रतिभाशाली लोगों को पहले बुद्ध और महावीर के निरीश्वरवादी श्रमण दर्शन की व्याख्या करके प्रभावित करते हैं और किस तरह बाद में उनसे पैसे बटोरने और अपराध करवाने का काम लेते हैं. बाद में इन्ही लोगों को दूध में गिरी मक्खी की तरह उठाकर फेंक देते हैं, ठीक उसी तरह जैसे कुछ संगठन आजकल भारत के युवाओं को दंगों में इस्तेमाल करने के बाद उन्हें अपने हाल पर छोड़ देते हैं.
ये अध्यात्म बेचने वाले गुरु आजकल के जातीय और राजनीतिक दंगा करवाले वाले सांस्कृतिक संगठनों की चालबाजी से बहुत कुछ मिलते जुलते है. दोनों का तरीका बिलकुल एक जैसा है. किशोर और युवा लड़कों को धर्म संस्कृति और राष्ट्रवाद इत्यादि की बहस से प्रभावित करके उनसे दंगे करवाए जाते हैं शहर जलवाए जाते हैं और चुनाव जीते जाते हैं.
इन दो बातों का बहुजन समाज के लिए और भारत की स्त्रीयों के लिए विशेष अर्थ है,
अगर बुद्ध, आंबेडकर और लोहिया की प्रस्तावनाओं को आप अपना भविष्य बनाने के लिए या समाज और देश का भविष्य बनाने के लिए उचित समझते हैं तो आपको ओशो रजनीश जैसे बाबाओं और दंगा करवाने वाले सामाजिक राजनीतिक संगठनों से बहुत सावधान रहना चाहिए, आप यहीं फेसबुक पर देख सकते हैं, ओशो रजनीश के अधिकाँश सन्यासी पक्के हिन्दुत्ववादी और ब्राह्मणवादी हैं.
आजकल के दंगाई जिस तरह मासूम बच्चों को दंगों में झोंकते हैं उसी तरह ये बाबा लोग भी सरल मन के स्त्री पुरुषों को शातिर अपराधियों में बदल डालते हैं. शीला का उदाहरण एकदम आजकल के दंगों में बर्बाद हुए युवकों के उदाहरण से मिलता है.
ये न सिर्फ व्यक्ति के मनोविज्ञान को तहस नहस कर देते हैं बल्कि एक समाज की नैतिकता और नागरिकता बोध को भी बर्बाद कर डालते हैं.
एक अन्य बात आप गौर से देखिये, अभी इस देश में कितना शोषण दमन अपराध और षड्यंत्र चला रहा है. और इन जैसे बाबाओं के करोडो “अध्यात्मिक” और “ध्यानी” शिष्य इस देश में हैं. वे इस समाज में हो रहे इन बलात्कारों अपराधों और दंगों के खिलाफ कभी कोई आवाज नहीं उठाते. वे दंगाइयों और बलात्कारियों के साथ खड़े हैं.
ये “व्यक्तिगत मोक्ष” साधने वाले और ध्यान समाधि और बुद्धत्व का ढोल पीटने वाले लोग भारत के सबसे घिनौने और शातिर लोग हैं. ये अपने गुरुओं और राजनीतिक दलों की ही तरह अवसरवादी धूर्त होते हैं.
भारत के ओबीसी, दलितों, आदिवासियों और स्त्रीयों (सभी बहुजनों) को इनसे दूर ही रहना चाहिए.
– संजय श्रमण
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