भाजपचे प्रसारित केले जात जनगणना आहे
अगर आप सरकार से पूछेंगे कि देश में कितनी गाय या भैंस या घोड़े, गधे या ऊंट हैं, तो सरकार आपको इनकी संख्या बता सकती है. त्यांचे वय, नस्ल और लिंग की भी जानकारी सरकार के पास है. लेकिन बात जब आदमियों की गिनती की आती है. तो सरकार आंकड़ों के महत्व को भूल जाती है. भारत में अगली जनगणना 2021 में होनी है. लेकिन अभी तक तय नहीं है कि सरकार इस जनगणना में भारतीय समाज के बारे में तमाम जानकारियां इकट्ठा करेगी या नहीं और जातियों की गणना होगी या नहीं.ऐसा भी नहीं है कि भारत में जाति जनगणना नहीं हुई है. भारत में जनगणना का इतिहास पुराना है. लेकिन आजादी के बाद जातियों की गिनती बंद कर दी गई .
ऊंट और बैल की संख्या बता पाने में सक्षम सरकार आज ये नहीं बता सकती कि देश में कितने ओबीसी हैं या देश में कितने ब्राह्मण या ठाकुर या यादव या कुम्हार आदि जाति के लोग हैं. न ही इन सामाजिक समूहों की आर्थिक स्थिति, शिक्षण, नौकरी, व्यवसाय, उनके जमीन के मालिकाने, उनके परिवारों के आकार आदि के बारे में ही कोई जानकारी सरकार के पास है.
वहीं भारत में अगली जनगणना की तैयारियां चल रही हैं. इस बार की जनगणना में डिजिटल तरीकों का भी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होना है. साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके देश को बताया था कि 2021 की जनगणना में ओबीसी की गिनती की जाएगी. हालांकि उन्होंने सिर्फ ओबीसी की कैटेगरी को जनगणना में जोड़े जाने की बात की थी और ये स्पष्ट नहीं किया था कि तमाम जातियों की गणना होगी या नहीं.वहीं एनडीए के सहयोगी दल जेडीयू के सांसद कौशलेंद्र कुमार ने जब लोकसभा में एक सवाल पूछकर ये जानना चाहा कि सरकार अगली जनगणना में विधिवत तरीके से जाति जनगणना कराएगी या नहीं, तो सरकार ने इसका कोई सीधा जवाब नहीं दिया और कह दिया कि जनगणना में एससी और एसटी की गिनती की जाती है. जाहिर है कि सरकार इस बारे में स्पष्ट तौर पर कुछ भी बताना नहीं चाहती.
हालांकि जनगणना का उद्देश्य किसी देश के लोगों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारियां इकट्ठा करना होता है. भारत में जातियों पर आधारित सैकड़ों सरकारी कार्यक्रम और नीतियां हैं. मिसाल के तौर पर केंद्र और राज्य सरकार ओबीसी और सवर्णों को आरक्षण देती है, अलग जातियों और उनसे जुड़े पेशों के लिए कार्यक्रम चलाती है. ओबीसी का तो डेवलपमेंट फंड भी बनाया गया है. लेकिन ये सब कुछ बगैर किसी आंकड़ों के हो रहा है. इसलिए आरक्षण का सवाल भारत में हमेशा विवादों को जन्म देता है क्योंकि ये नीति तथ्यों और आंकड़ों पर आधारित नहीं है. घटनेचा लेख 16-4 कहता है कि जिन पिछड़े वर्गों का सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है. सरकार उन्हें आरक्षण देगी. लेकिन सवाल उठता है कि उन जातियों के आंकड़े जाने बिना कैसे तय होगा कि उनका प्रतिनिधित्व पर्याप्त है या नहीं.
इसके अलावा गौर करने की बात ये है कि भारत में जातियों की गिनती कभी पूरी तरह बंद नहीं हुई हैं. आजादी के बाद, जब ओबीसी और सवर्णों की गिनती बंद हो गई. तब भी अनुसूचित जातियों और जनजातियों की गिनती जारी रही. अब सवाल सिर्फ इतना है कि बाकी जातियों की गिनती कब होगी. 2021 इसके लिए बेहतरीन मौका है क्योंकि 2010 में ही लोकसभा में सभी दलों के बीच इस बात पर सहमति बन चुकी है कि जाति जनगणना कराई जाए.
~दिलीप मंडळ~
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