बंगाल हिंसा: इंडिया टुडे के पत्रकार ने बताई सच्चाई,BJP की साजिश शर्मनाक
पश्चिम बंगाल में चुनावी नतीजों के बाद राज्य के विभिन्न हिस्सों में फैली हिंसा में दर्जनभर लोगों की मौत हो चुकी है। इस हिंसा को लेकर सोशल मीडिया पर किए जाने वाले दावों ने भी आग में घी डालने का काम किया है। सोशल मीडिया पर ऐसी सैकड़ों तस्वीरें और वीडियो वायरल किए जा रहे हैं जिसमें दावा किया जा रहा है कि, टीएमसी के कार्यकर्ताओं का हिंसा में हाथ है।
इसी बीच बंगाल बीजेपी ने एक वीडियो जारी किया है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि, इस कार्यकर्ता का नाम मानिक मोइत्रा है, जो सीतलकुची का रहने वाला है, इसकी हिंसा में मौत हो हई है. अब इस वीडियो की सच्चाई सामने आई है, जिसमें पता चला है कि, वीडियो में दिख रहा शख्स इंडिया टुडे के जर्नलिस्ट अभरो बनर्जी हैं, जोकि जिंदा हैं.
बंगाल में बीजेपी जनमत को पटरी से उतारने के लिए हिंसा को धर्म से जोड़ रही है. हिंदू समुदाय को असुरक्षित बताया जा रहा, ताकि धारणा बने कि बंगाल राष्ट्रपति शासन के लिए उपयुक्त है. अब तक इस राजनीतिक संघर्ष में 17 मौत की सूचना है. बीजेपी ने 9 समर्थक मारे जाने का दावा किया है.रिपोर्ट के मुताबिक, टीएमसी के 6 और संजुक्ता मोर्चा के 2 कार्यकर्ता के मारे जाने की खबर है, इनमें एक सीपीएम और एक आईएसएफ के हैं.लेकिन राजनीतिक हिंसा के सांप्रदायिकरण पर तुली बीजेपी ने इसके लिए फर्जी खबरें फैलाई जिनमें से कई का भंडाफोड़ भी हुआ. राइट विंग की ऐसी कोशिश बंगाल और भारत के लिए बुरे स्वप्न की तरह है.इस पर देश भर में भगवा चैंबर द्वारा हाई स्केल सोशल मीडिया कैंपेन के बाद जे पी नड्डा कोलकाता में जम गए हैं. नड्डा की यात्रा अच्छी तरह से तैयार की गई उस 360-डिग्री प्लान का हिस्सा है जिसमें मसालेदार तरीके से धार्मिक संदर्भों और फेक वीडियो-तस्वीर के साथ राजनीतिक संघर्ष और धार्मिक असुरक्षा के बीच समानताएं स्थापित की जा रही है.इसका मकसद फेक और मैन्युपूलेटेड विजुअल के अथाह सागर के साथ ममता बनर्जी को डिस्टेबलाइज करना है. केंद्रीय बलों की तैनाती और हमले के आरोपों पर CBI जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दो अलग-अलग PIL दायर भी कर दी गई हैं.बंगाल में चुनावी हिंसा का इतिहास रहा है, लेकिन इससे पहले कभी भी इन झड़पों को इस तरह नहीं मोड़ा गया था.यह एक शैतानी दुस्साहस है, जिसमें रातों-रात राजनीतिक संघर्ष का रंग बदल कर सांप्रदायिक कर दिया गया.मुसलमानों को आक्रामक और हिंदुओं को पीड़ित के रूप में चित्रित किया गया. फेक न्यूज और प्रोपागंडा के जरिए बताया जा रहा कि मुसलमान बीजेपी समर्थकों और उनकी संपत्तियों पर हमला कर रहे हैं.इस पर बीजेपी के कई नेता अपने फेवरेट पत्रकारों को बाइट दे रहे हैं. सोशल मीडिया पोस्ट, मुसलमानों पर आरोपों से भर दी गई हैं. हर जगह धार्मिक पहचान उद्धृत है. बीते कल बीजेपी नेता, जैसे सांसद सौमित्र खान और अग्निमित्र पॉल ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर पोस्ट किया कि बीरभूम के नानूर में एक महिला पार्टी कार्यकर्ता का तृणमूल के गुंडों ने सामूहिक बलात्कार किया है.इस पोस्ट को बंगाल बीजेपी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर भी साझा किया गया. इसके पीछे का कैंपेन था कि एक हिंदू महिला का मुसलमानों ने सामूहिक बलात्कार किया.लेकिन जब पुलिस ने इसकी पड़ताल की तो बीजेपी का दावा गलत निकला. एक समुदाय को इस तरह फोकस किए जाने के परिणाम विनाशकारी होंगे. और बीजेपी यही करना चाहती भी है.चुनाव के दिनों में राइट विंग के लोग अल्पसंख्यक समुदाय को नारों के साथ ताना मारने और उकसाने में लगे थे ताकि माहौल खराब हो और मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो, जो नहीं हो पाया. बीजेपी इस कोशिश में विफल रही, तो अब चुनाव परिणाम के बाद दूसरे रास्ते अपनाए जा रहे.
आरएसएस का मुखपत्र ऑर्गनाइजर लिखता है, सीपीएम ने माना है कि बंगाल में जनसंहार चल रहा. ऑर्गनाइजर ने इस लेख में सीपीएम की महिला विंग AIDWA की कार्यकर्ता काकोली खेत्रपाल की हत्या को प्रमुखता से जगह दी है. उनकी हत्या पर सीपीएम की पूर्व सांसद सुहासिनी अली ने ट्वीट किया था कि वर्धमान में उनकी कॉमरेड काकोली खेत्रपाल की हत्या टीएमसी के गुंडों ने कर दी. बहरहाल काकोली की हत्या हुई है जो निंदनीय है.लेकिन दिलचस्प यह है कि बंगाल में चल रही राजनैतिक हिंसा पर बीजेपी-आरएसएस और सीपीएम एक ही राग में है. दोनों धडें ने प्रमुखता से टीएमसी की आलोचना की है. यही नहीं सीपीएम ने टीएमसी को फासिस्ट फोर्स भी करार दिया है. अब मैं इसमें नहीं जाउंगा कि ऐसा सीपीएम ने क्यों बोला है, टीएमसी फासिस्ट फोर्स है या नहीं, और वर्तमान संदर्भ में ऐसा बोलना चाहिए या नहीं. बंगाल का राजनीतिक इतिहास खून से रंगा है. पिछले पृष्ठ को पलटेंगे तो साफ अंकित है कि किसने, कब, किसके साथ क्या किया है. किसी के भी दामन सफेद नहीं हैं.लेकिन मैं इस पर जरूर आना चाहुंगा कि आज सीपीएम सिर्फ राजनीतिक हिंसा पर ही क्यों बात कर रही है. क्यों सिर्फ अपने कार्यकर्ता को हुए नुकसान को ही बार बार फोकस में ला रही है. क्या बंगाल की इतनी बड़ी पार्टी से इस सीमित दायरे की राजनीति की उम्मीद की जा सकती है? ऐसे वक़्त में भी जब वहां बीजेपी द्वारा सांप्रदायिक उन्माद खड़ा किया जा रहा और जनमत को येन-केन-प्रकरेण पलटने की साजिश चल रही है.
गवर्नर जगदीप धनखड़ ने ट्वीट करके बताया कि प्रधानमंaत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें कानून-व्यवस्था की स्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए बुलाया था. उनके इस ट्वीट के बाद मोदी की चिंता को काफी फैला कर लोगों का ध्यान भी आकर्षित किया गया, लेकिन उनमें बहुतों ने यह नहीं पूछा कि क्या मोदी ने राज्य में कोविड की स्थिति के बारे में पूछताछ करने के लिए गवर्नर को फोन किया था.यह भी साफ जाहिर है कि राष्ट्रपति शासन के पक्ष में माहौल बनाने के लिए नड्डा की यात्रा को रणनीति के रूप में योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया है.सोशल मीडिया पर राइट विंग फोर्स इसे भी उछाल रहे हैं. प्रेसिडेंट रूल को लेकर नैरेटिव बनाया जा रहा है. व्यापक जनादेश के साथ चुनाव जीतने वाली टीएमसी, ममता की अपील के बावजूद हिंसा को नियंत्रित नहीं कर पा रही है.जबकि मौजूदा राजनीतिक संघर्ष में सभी का नुकसान हुआ है. लड़ाई सिर्फ बीजेपी से शब्दबाण की नहीं है. असली चुनौती उस बम को डिफ्यूज करना है, जो बीजेपी के साथ टकराव से शुरू कर चुका है. ममता को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह बीजेपी को एक और बढ़त देने का जोखिम नहीं उठा सकती हैं.केंद्रीय एजेंसियों के साथ मिलीभगत, मेनस्ट्रीम मीडिया प्रोपागंडा और गवर्नर के बल पर बीजेपी लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार पर कभी भी गाज गिरा सकती है. केवल शांति के लिए की गई अपील पर्याप्त नहीं होगी. ममता को हिंसा के अपराधियों के साथ-साथ उन लोगों पर भी कड़ी कार्रवाई करनी होगी जो इसे ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं.बंगाल में 30 प्रतिशत से अधिक मुसलमान हैं जिनमें से अधिकांश आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से आते हैं. देश में हिंदू राष्ट्रवाद के उदय के बाद से उनकी रातों की नींद हराम है. ऐसे में बंगाल सांप्रदायिक हिंसा नहीं झेल सकता है. ममता पर जिम्मेदारी है कि वो वह राज्य को हिंसा और राइट विंग के कम्यूनल कैंपेन से बचाए और शांति बहाल करे.
(इसमें कुछ लेख पत्रकार रिजवी रहमान के फेसबुक वॉल से भी लिया गया है)
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