बड़े मुश्किल में फंसे लालू यादव
आरजेडी के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सोमवार को शीर्ष अदालत ने यादव के खिलाफ आपराधिक साजिश का मामला चलाने का आदेश दिया है। साथ ही कोर्ट ने कहा है कि 9 महीने के अंदर इस मामले की ट्रायल हो। दरअसल, झारखंड हाईकोर्ट ने नवंबर 2014 में लालू को राहत देते हुए उन पर लगे घोटाले की साजिश रचने और ठगी, क्रिमिनल ब्रीच आफ ट्रस्ट और प्रिवेंशन आफ करप्शन के आरोप हटा दिए थे।
हाईकोर्ट ने कहा था कि एक ही अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दो बार सजा नहीं दी जा सकती है। सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका लगाई थी। कोर्ट ने सीबीआई की दलील मान ली और हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। चारा घोटाले का खुलासा साल 1996 में सामने आया था। मामला बिहार पशुपालन विभाग में से करोड़ों रुपये के घोटाले से जुड़़ा है। उस वक्त लालू यादव राज्य के सीएम थे। मामले में 90 के दशक की शुरूआत में बिहार के चाइबासा सरकारी खजाने से फर्जी बिल लगाकर 37.7 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी से जुड़ा हुआ है। चारा घोटाले में कुल 950 करोड़ रुपये के गबन किए जाने का आरोप है । ‘चारा घोटाला’ मामले में कुल 56 आरोपियों के नाम शामिल हैं, जिनमें राजनेता, अफसर और चारा सप्लायर तक जुड़े हुए हैं। आपको बता दें कि इस घोटाले से जुड़े 7 आरोपियों की मौत हो चुकी है जबकि 2 सरकारी गवाह बन चुके हैं तथा 1 ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और एक आरोपी को कोर्ट से बरी किया जा चुका है ।घोटाले के आरोपियों में बिहार के दो पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र और लालूप्रसाद यादव सहित विद्यासागर निषाद, आर के राना, घ्रुव भगत, आईएए अफसर महेश प्रसाद और बेक जूलियस आदि नाम शामिल हैं। इसके
अलावा कोर्ट ने मामले में लालू यादव को दोषी घोषित किया है। इसके लिए उनकी लोकसभा की सदस्यता छीन ली गयी और उन पर 11 साल तक कोई चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। मामले में सीबीआई जांच में लालू का नाम आने पर उन्होंने राज्य के सीएम पद से त्यागपत्र दे दिया था। बता दें कि घोटाले से जड़े 53 मामलों में से 44 पर स्पेशल कोर्ट फैसला दे चुकी है। इसमें 5 मामलों में लालू यादव आरोपी हैं। सीबीआई ने 5 अप्रैल 2000 को सभी के खिलाफ आरोप तय किए थे। मामले में पशुपालन विभाग के दफ्तरों से चारा आपूर्ति के नाम पर धन की हेराफेरी की गई। घोटाले से जड़े 53 मामलों में से 44 पर स्पेशल कोर्ट अपना फैसला दे चुकी है सीबीआई ने 5 अप्रैल 2000 को सभी आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए। दिसंबर 2000 तक 47 गवाहों के बयान दर्ज हुए।11 मार्च, 1996 को पटना उच्च न्यायालय ने सीबीआई को इस घोटाले की जांच का आदेश दिया। 23 जून, 1997 को सीबीआई ने आरोप पत्र दायर किया और लालू प्रसाद को आरोपी बनाया। मामले में 30 जुलाई, 1997 को लालू प्रसाद ने सीबीआई अदालत में आत्मसमर्पण किया। फरवरी, 2002 को रांची की विशेष सीबीआई अदालत में सुनवाई शुरू हुई। 2 जनवरी 2012 तक प्रॉसीक्यूशन की ओर से 350 गवाह पेश हुए। लालू प्रसाद इस मामले से जुड़े जज को बदलने की मांग को लेकर हाई कोर्ट भी जा चुके हैं। कोर्ट जज को बदलने की लालू यादव की अर्जी ठुकरा भी चुका है। मामले में 30 सितंबर 2013 को लालू प्रसाद को 5 मामलों का दोषी पाया गया, जिसके लिए उन पर 11 साल तक कोई चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध और साथ ही 25 लाख का जुर्माना लगाया।
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