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Uncategorized - May 22, 2017

भारत का स्पेस में कमाल

25 साल पहले वर्ष 1992 में स्पेस में भारत की रफ्तार पर लगाम लगाने के लिए अमेरिका ने जबरदस्त चाल चली। क्रायोजेनिक तकनीक के हस्तांतरण पर अमेरिकी प्रशासन ने रूस को स्पष्ट कर दिया कि किसी भी हालात में वो भारत को तकनीकी मुहैया न कराए। लेकिन भारत ने अमेरिका की चुनौती को स्वीकार किया और क्रायोजेनिक तकनीक का इजाद किया। लेकिन आज तस्वीर बदल चुकी है। अमेरिका जो पहले भारत के खिलाफ आंखें तरेरता था वो नजर अब झुक चुकी है। अमेरिका ने करीब 1.5 बिलियन डॉलर के निसार प्रोजेक्ट पर इसरो के साथ मिलकर आगे बढ़ने का फैसला किया है।
1992 में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने ISRO पर प्रतिबंध लगा दिया था। इतना ही नहीं, उस समय अमेरिका ने रूस पर दबाव बनाकर उसे ISRO के साथ क्रायोजेनिक इंजन तकनीक साझा करने से भी रोक दिया था। अमेरिका की इन सभी कोशिशों का मकसद भारत को मिसाइल विकसित करने की तकनीक हासिल करने से रोकना था। तमाम प्रतिबंधों और मुश्किलों के बाद भी इसरो GSLV को बनाने में कामयाब रहा। इसमें लगने वाले क्रायोजेनिक इंजन को भारत में ही विकसित किया गया। इसे बनाने की मुश्किलों की वजह से ही शायद इसरो की टीम GSLV को नटखट बच्चा के नाम से पुकारा करती थी। इसमें दो फ्रीक्वेंसी की रडार प्रणाली, 13 सेन्टीमीटर का एस बैंड एसएआर और 24 सेमी को एल बैंड एसएआर होगी। एस बैंड एसएआर को इसरो और एल बैंड एसएआर को नासा बना रहा है।
डाटा के लिए उच्च गुणवत्ता के संचार का उपतंत्र, जीपीएस रिसीवरस सॉलिड स्टेट रिकॉर्डर, पेलोड डाटा उपतंत्र नासा उपलब्ध कराएगा। इसरो निसार का मॉडल तय करेगा, जियोसिनक्रोनस सेटेलाइट लॉंच व्हीकल और प्रक्षेपण से जुड़ी अन्य सेवाएं उपलब्ध कराएगा।1988 से 2017 तक भारत 22 रिमोट सेंसिंग उपग्रह लॉन्च कर चुका है।जिसमें एक हादसे का शिकार हो गया था। इस समय 13 रिमोट सेंसिंग उपग्रह भारत की सेवा में है। निसार की उन्नत रडार प्रणाली एसएआर के जरिए पृथ्वी की विस्तृत और साफ रडार तस्वीरें उपलब्ध हो पाएंगी। पृथ्वी पर होने वाली प्राकृतिक घटनाओं जैसे पारिस्थितिकी तंत्र में फेरबदल, बर्फ क्षेत्र का घटना, भूकंप, सुनामी, चक्रवात, ज्वालामुखी और भूस्खलन के संबंध में बेहतर जानकारी जुचाई जा सकेगी। इससे पृथ्वी की उपरी परत क्रस्ट की उत्पत्ति, मौसम और पर्यावरण पर विस्तृत शोध हो सकेगा और भविष्य की संसाधनों और खतरों के बारे में पता लगा पाना संभव हो सकेगा। इसके जरिए जलस्रोतों की भी पुख्ता जानकारी मिल सकेगी। इसके जरिए उपग्रह से पृथ्वी पर रेडियो तरंगे भेजी जाती हैं। फिर उनकी प्रतिध्वनि यानी इको को दोबारा उपग्रह में पकड़ा जाता है। इससे पृथ्वी के भू-दृश्य की दो और त्रि आयामी तस्वीरें प्राप्त होती हैं। इनसे पृथ्वी की संरचना, पर्यावरण और मौसम के बारे में पता चलता है। नासा 2007 से पृथ्वी के पारिस्थितकी तंत्र संरचना और बर्फीले स्थानों में होने वाले बदलावों को सिंथेटिक अपर्चर रडार के जरिए मापने की संभावना पर काम कर रहा है। इसी क्रम में नासा ने इसरो से एल बैंड और एस बैंड से लैस एसएआर उपग्रह बनाने के लिए हाथ मिलाया। नासा के मुताबिक इसरो से बेहतरीन इस परियोजना में और कोई बेहतर साझीदार नहीं हो सकता है। इसरो ने PSLV के जरिए एक साथ 104 सैटेलाइट का सफल लॉन्च किया गया है. वैसे अभी तक यह रिकार्ड रूस के नाम है, जो 2014 में 37 सैटेलाइट एक साथ भेजने में कामयाब रहा है. इस लॉन्च में जो 101 छोटे सैटेलाइट्स हैं उनका वजन 664 किलो ग्राम था। इन्हें कुछ वैसे ही अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया जैसे स्कूल बस बच्चों को क्रम से अलग-अलग ठिकानों पर छोड़ती जाती हैं। इसरो ने 1990 में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) को विकसित किया था। 1993 में इस यान से पहला उपग्रह ऑर्बिट में भेजा गया, जो भारत के लिए गर्व की बात थी। इससे पहले यह सुविधा केवल रूस के पास थी. 2008 में इसरो ने चंद्रयान बनाकर इतिहास रचा था. 22 अक्टूबर 2008 को स्वदेश निर्मित इस मानव रहित अंतरिक्ष यान को चांद पर भेजा गया था. इससे पहले ऐसा सिर्फ छह देश ही कर पाए थे।
भारतीय मंगलयान ने इसरो को दुनिया के नक्शे पर चमका दिया. मंगल तक पहुंचने में पहले प्रयास में सफल रहने वाला भारत दुनिया का पहला देश बना। अमेरिका, रूस और यूरोपीय स्पेस एजेंसियों को कई प्रयासों के बाद मंगल ग्रह पहुंचने में सफलता मिली। चंद्रयान की सफलता के बाद ये वह कामयाबी थी जिसके बाद भारत की चर्चा अंतराष्ट्रीय स्तर पर होने लगी।जीएसएलवी मार्क 2 का सफल प्रक्षेपण भी भारत के लिए बड़ी कामयाबी थी, क्योंकि इसमें भारत ने अपने ही देश में बनाया हुआ क्रायोजेनिक इंजन लगाया था। इसके बाद भारत को सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ा।भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने 28 अप्रैल 2016 भारत का सातवां नेविगेशन उपग्रह (इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) लॉन्च किया। इसके साथ ही भारत को अमेरिका के जीपीएस सिस्टम के समान अपना खुद का नेविगेशन सिस्टम मिल गया। इससे पहले अमेरिका और रूस ने ही ये उपलब्धी हासिल की थी।
इसरो के लिए 2016 रहा अहम -तकनीकी मोर्चे पर इस एक साथ 20 उपग्रह लॉन्च करने के अलावा इसरो ने अपना नाविक सैटेलाइट नेविगेशन प्रणाली स्थापित किया और दोबारा प्रयोग में आने वाले प्रक्षेपण यान (आरएलवी) और स्क्रैमजेट इंजन का सफल प्रयोग किया। इस साल इसरो ने कुल 34 उपग्रहों को अंतरिक्ष में उनकी कक्षा में स्थापित किया, जिनमें से 33 उपग्रहों को स्वदेश निर्मित रॉकेट से और एक उपग्रह (जीएसएटी-18) को फ्रांसीसी कंपनी एरियानेस्पेस द्वारा निर्मित रॉकेट से प्रक्षेपित किया. भारतीय रॉकेट से प्रक्षेपित किए गए 33 उपग्रहों में से 22 उपग्रह दूसरे देशों के थे, जबकि शेष 11 उपग्रह इसरो और भारतीय शिक्षण संस्थानों द्वारा निर्मित थे। 1962 में स्थापना के बाद शुरूआती दौर में जीएसएलवी व पीएसएलवी सीरीज के कुछ उपग्रहों की असफलताओं के बाद से इसरो लगातार सफलताएं हासिल कर रहा है। इसरो ने अपने कारनामों से चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। आज अमेरिकी स्पेस संगठन नासा के बाद इसरो दुनिया का सबसे भरोसेमंद स्पेस शोध संस्थान बन गया है। ।
नासा विश्व की सबसे उन्नत अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है। नासा की इसरो में दिलचस्पी उस समय शुरू हुई जब अप्रैल 2012 में इसने भारत का पहला स्वदेशी रेडार इमेजिंग सैटलाइट (Risat-1) लॉन्च किया। इस सेटेलाइट की मदद से रात-दिन और किसी भी तरह के मौसम में धरती की सतह की तस्वीरें ली जा सकती हैं। इसके बाद नासा ने इसरो के साथ हाथ मिलाकर यह प्रॉजेक्ट शुरू करने की इच्छा जताई। दोनों एजेंसियों के बीच इस मसले पर करीब 2 साल तक बातचीत हुई और फिर आखिरकार NISAR सैटलाइट को लेकर दोनों के बीच सहमति कायम हो गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 2014 में अमेरिका पहुंचे, तो उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ इस करार से जुड़े समझौते पर निर्णायक हस्ताक्षर किए। दोनों एजेंसियों का कहना है कि NISAR सैटलाइट का मकसद पूरी दुनिया के इंसानों को फायदा पहुंचाना है और इसके द्वारा लिए गए मैपिंग डेटा को भी सभी के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। दुनिया में जब स्पेस साइंस की शुरूआत हुई थी, तब रूस का दबादबा था। सोवियत रूस ने विश्व के पहले उपग्रह स्पूतनिक का सफल प्रक्षेपण कर दुनिया में अपनी धाक जमाई थी, लेकिन दो ध्रुवीय दुनिया में अपनी बादशाहत कायम रखने के लिए अमेरिका ने चांद पर सबसे पहले मानव को उतार कर यूएसएसआर को जवाब दिया था। तब से सोवियत संघ और अमेरिका के बीच स्पेस साइंस में प्रतिस्पर्धा जारी रही। भारत को रूस के साथ अच्छे संबंध का सपेस साइंस में भी लाभ मिला। लेकिन दुनिया में अकेले सुपरपावर बनने की चाहत में अमेरिका ने भारत के स्पेस मिशन में अड़ंगा लगाया। उसने रूस को अपनी क्रायोजेनिक इंजन तकनीक भारत को देने से रोक दिया। भारत ने अमेरिकी अड़ेंगे का डटकर मुकाबला किया और क्रायोजेनिक इंजन खुद बनाया। आज भारत ने अमेरिकी सैटेलाइट को नासा से कम खर्च में स्पेस में लांच कर साबित कर दिया कि प्रतिभा को कोई रोक नहीं सकता है। मंगलयान भी भारतीय विज्ञान की बड़ी उपलब्धि है। अब इसरो व्यवसायिक प्रक्षेपण भी सफलतापूर्वक कर रहा है। वह दिन दूर नहीं जब भारत स्पेस में एक सुपर पावर होगा।

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