महाड़ सत्याग्रह : जब पूरे भारत ने देखा बहुजनों का दम
कैसे देखें आधुनिक के इतिहास के आईने में आज के भारत को? यह सवाल महत्वपूर्ण है क्योंकि हम वह सोच भी नहीं पाते जो अतीत में द्विज इतिहासकारों ने षडयंत्र किया है। बाबा साहब के आह्वान पर जब बड़ी संख्या में बहुजन जुटे तब पूरे हिन्दुस्तान ने बदलाव के आगाज को महसूस किया। लेकिन षडयंत्रकारी द्विज इतिहासकारों ने गांधी के नमक सत्याग्रह को महान की उपमा दी जबकि उस सत्याग्रह का मकसद केवल वर्चस्ववादी हिन्दू सामाजिक व्यवस्था को बचाए रखना था।
सम्मानपूर्वक जीवन के अधिकार के लिए था महाड़ सत्याग्रह।
महाड़ सत्याग्रह डॉ. आंबेडकर की अगुवाई में 20 मार्च 1927 को महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले के महाड स्थान पर हुआ था। हजारों की संख्या में अछूत कहे जाने वाले लोगों ने डॉ. आंबेडकर के नेतृत्व में सार्वजनिक चावदार तालाब में पानी पीया। सबसे पहले डॉ. आंबेडकर ने अंजुली से पानी पीया, उनका अनुकरण करते हुए अनुसूचित जाति के हजारों लोगों ने पानी पीया। अगस्त 1923 को बॉम्बे लेजिस्लेटिव कौंसिल ( अंग्रेजों के नेतृत्व वाली ) के द्वारा एक प्रस्ताव लाया गया कि ऐसे सभी जगह, जिनका निर्माण और देखरेख सरकार करती है, ऐसी जगहों का इस्तेमाल हर कोई कर सकता है। चावदार तालाब में पानी पीने के जुर्म का बदला सवर्ण हिन्दुओं ने अनुसूचित जाति के लोगों से लिया। उनकी बस्ती में आकर दंगा किया और लोगों को लाठियों से पीटा। इस क्रम में उनलोगों ने बच्चे-बुड्ढे-औरतों को भी नहीं बख्शा। घरों में तोड़फोड़ की गई। हिन्दुओं ने इल्ज़ाम लगाया कि अछूतों ने तालाब से पानी पीकर तालाब को भी अछूत कर दिया। ब्राह्मणों के अनुसार पूजा-पाठ से तालाब को फिर से शुद्ध किया गया।
महाड़ सत्याग्रह पानी के पीने के अधिकार के साथ इंसान होने का अधिकार जताने के लिए भी था।
डॉ. आंबेडकर ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘‘क्या यहां हम इसलिये आये हैं कि हमें पीने के लिए पानी मयस्सर नहीं होता है ? क्या यहां हम इसलिये आये हैं कि यहां के जायकेदार कहलानेवाले पानी के हम प्यासे हैं ? नहीं, दरअसल इन्सान होने का हमारा हक जताने हम यहां आये हैं ।गांधी ने महाड़ सत्याग्रह को दुराग्रह कहा था।
सत्ता के लिए गांधी ने किया था नमक सत्याग्रह!
महाड सत्याग्रह के 3 वर्ष बाद गांधी ने नमक सत्याग्रह किया। मार्च 1930 को गाँधी जी ने साबरमती में अपने आश्रम से समुद्र की ओर चलना शुरू किया। तीन हफ्तों बाद वे अपने गंतव्य स्थान दांडी पहुँचे। वहाँ उन्होंने मुट्ठी भर नमक बनाकर ब्रिटिश कानून तोड़ा। हम सभी जानते हैं कि ब्रिटिश सत्ता ने नमक के उत्पादन और बिक्री पर राज्य का एकाधिकार घोषित कर दिया था यानी तब नमक का उत्पादन और बिक्री केवल सरकार ही कर सकती है। गांधी ने कानून तोड़ा और ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी।
महाड़ सत्याग्रह एक प्रतीकात्मक सत्याग्रह था। पहले में हजारों वर्षों की सवर्ण सत्ता (सामंती सत्ता) को चुनौती दी गई थी, जो अछूतों को वह भी हक देने को तैयार नहीं थी, जो जानवरों तक को प्राप्त था। हम सभी जानते हैं कि किसी भी तालाब में कोई भी जानवर पानी पी सकता था,लेकिन अछूतों को यह हक प्राप्त नहीं था। दूसरी तरफ नमक सत्याग्रह के माध्यम से ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी गई थी।
ब्राह्मणवाद का खात्मा है महाड़ सत्याग्रह का अंतिम लक्ष्य
आधुनिक भारत के राष्ट्रवादी और वामपंथी इतिहासकारों ने महाड़ सत्याग्रह को हाशिए पर रखा। नमक सत्याग्रह को न केवल भारत बल्कि विश्व इतिहास की महान घटना की तरह प्रस्तुत किया। नमक सत्याग्रह की अंतिम परिणति के तौर भारत की सत्ता ब्रिटिश लोगों के हाथ से निकल उच्च वर्गीय सर्वणों के साथ मे चली गई। महाड़ सत्याग्रह के विजय की अंतिम परिणति ब्राह्मणवाद (सामंतवाद) का खात्मा होता। नमक सत्याग्रह से जिनको सत्ता मिली उन्होंने गांधी को महात्मा,बापू और राष्ट्रपिता बना दिया। यह वही गांधी थे, जिन्होंने महाड़ सत्याग्रह (ब्राह्मणवाद को चुनौती ) को दुराग्रह कहा था।
बहरहाल, संघर्ष जारी है। महाड़ सत्याग्रह आज भी अपनी अंतिम विजय की प्रतीक्षा कर रहा है। इतिहास की जिस घड़ी में महाड़ सत्याग्रह की अंतिम विजय होगी, गांधी नहीं, डॉ. आंबेडकर आधुनिक इतिहास के महानायक होंगे।
~ सिद्धार्थ रामू का विश्लेषण
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