आज सावित्री बाई फुले मेमोरियल डे आहे. या महान आकृती चला कर देता.
BY_ संजय श्रमण जोठे
यह दिन भारत की महिलाओं और विशेष रूप से दलितों, ओबीसी, और आदिवासी, मुसलमान महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।भारत के इतिहास में पहली बार किसी स्त्री ने शुद्रातिशूद्र लड़कियों के लिए स्कूल खोले और उन्हें पढ़ाने के लिए संघर्ष किया। सावित्री बाई जब अपने स्कूल में पढ़ाने जातीं थी तब उस दौर के संस्कारी हिन्दू ब्राह्मण उन पर गोबर, चिखल, पत्थर और गन्दगी फेकते थे। सड़कों पर और चौराहों पर रोककर उन्हें धमकाते थे।
वे कई बार रोते हुए घर लौटतीं थीं लेकिन उनके पति और महान क्रांतिकारी ज्योतिबा फुले उन्हें हिम्मत बंधाते थे। ये ज्योतिबा ही थे जिन्होंने ये स्कूल खोले थे और एक शुद्र और अछूत तबके से आते हुए भी संघर्ष करके लड़कियों को पढ़ाने का संकल्प लिया।
इस दौरान फूले दंपत्ति छोटे छोटे काम करके घर खर्च चलाते थे। एक ब्राह्मणवादी हिन्दू समाज में इन्हें कोई अच्छा रोजगार मिल भी नहीं सकता था। ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई ने सब्जियां बेचीं, फूल गुलदस्ते बेचे, कपड़े सिले, रजाइयां सिलकर बेचीं, और ऐसे ही छोटे छोटे अन्य काम किये लेकिन भयानक गरीबी से गुजरते हुए भी उन्होंने भारत का पहला शुद्र बालिका विद्यालय खोला और विधवाओं के निशुल्क प्रसव और बच्चा पालन हेतु आश्रम भी चलाया।
उस दौर के अंध्वविश्वासी बर्बर हिन्दू समाज में विधवाओं और परित्यक्ताओं को पुनर्विवाह की आजादी नहीं थी। ऐसे में विधवाओं को एक गाय बकरी की तरह घर के एक कोने में पटक दिया जाता था और ब्राह्मण परिवारों में तो उन्हें देखना छूना उनके साथ बात करना भी पाप माना जाता था। अक्सर ऐसी युवा विधवाओं का बलात्कार उनके रिश्तेदार या समाज के लोग ही करते थे, या उन्हें किसी तरह फुसला लेते थे। ऐसे में गर्भवती होने वाली विधवाओं को ब्राह्मण परिवारों सहित अन्य धार्मिक सवर्ण द्विज परिवारों द्वारा घर से बाहर निकाल दिया जाता था।
ऐसी कई विधवाएं आत्महत्या कर लेती थीं। असल में ये बंगाल की सती प्रथा का एक लघु संस्करण था जिसमे स्त्री को पति के मर जाने के बाद खुद भी लाश बन जाने की सलाह दी जाती है। ऐसी आत्महत्याओं और शिशुओं की हत्याओं ने ज्योतिबा और सावित्री बाई को परेशान कर डाला था।
आज ये बातें इतिहास से गायब कर दी गईं हैं। तब इन दोनों ने भयानक गरीबी में जीते हुए भी ऐसी विधवाओं के लिए आश्रम खोला और कहा कि अपना बच्चा यहां पैदा करो और न पाल सको तो हमें दे जाओ, हम पालन करेंगे।
फुले दम्पत्ति ने ऐसे ही एक ब्राह्मण विधवा के पुत्र यशवंत को अपने बेटे की तरह पाला था।
इन बातों से अंदाज़ा लगाइये असली राष्ट्रनिर्माता, शिक्षा की देवी और राष्ट्रपिता कौन हैं? उस दौर के धर्म के ठेकेदार और राजे महाराजे, रायबहादुर और धन्नासेठ इस समाज को धर्म, साम्प्रदायिकता और अंधविश्वास में धकेल रहे थे और फुले दम्पत्ति अपनी विपन्नता के बावजूद समाज में आधुनिकता और सभ्यता के बीज बो रहे थे।
सावित्रीबाई को डराने धमकाने और अपमानित करने वाले लोग आज राष्ट्रवाद, देशभक्ति और धर्म सिखा रहे हैं। देश की स्त्रियों के रूप में उपलब्ध 50% मानव संसाधन की, और शूद्रों दलितों के रूप में 80% मानव संसाधन की हजारों साल तक हत्या करने वाले लोग आज वसुधैव कुटुंब और जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी का पाठ पढ़ा रहे हैं।
इन पाखण्डियों का इतिहास उठाकर देखिये आपको भारत के असली नायकों और दुश्मनों का पता चलेगा।
जब जब भी गैर ब्राह्मणवादी नायकों ने ब्राह्मणवाद और हिन्दू ढकोसलों के खिलाफ जाकर कोई नई पहल की है, समाज को नई दिशा देने की किशिश है तब तब इन नायकों को सताया गया है। बुद्ध, कबीर, फुले, पेरियार, अंबेडकर इत्यादि को खूब सताया गया है। खैर इतना तो हर समाज में होता है लेकिन भारतीय सनातनी इस मामले में एक कदम आगे हैं।भारतीय पोंगा पंडित समाज में बदलाव आ चुकने के बाद एक सनातन खेल दोहराते हैं।
वे सामाजिक बदलाव और सुधार के बाद असली नायकों को इतिहास, लोकस्मृति, शास्त्रों पुराणों से गायब कर देते हैं और किसी ब्राह्मण नायक को तरकीब से इन बदलावों का श्रेय दे देते हैं। हजारों पंडितों की फ़ौज हर दौर में नए पुराण और कथा बांचती हुई गांव गांव में घुस जाती है और इतिहास और तथ्यों की हत्या कर डालती है।ये भारत की सबसे जहरीली विशेषता है। इसी ने भारत के असली नायकों और राष्ट्रनिर्माताओं को अदृश्य बना दिया है।
आज सावित्रीबाई फुले के स्मृति दिवस पर उस बात पर विचार कीजिये और देश के असली नायकों और बुद्ध, कबीर, फुले, अंबेडकर जैसे असली क्रांतिकारियों के बारे में खुद पढिये और समाज को मित्रों को रिश्तेदारों को जागरूक करिये।”
ये लेख संजय श्रमण जोठे एक स्वतंत्र लेखक और शोधकर्ता हैं,, त्यांनी इंस्टिट्यूट ऑफ डेव्हलपमेंट स्टडीज, युनिव्हर्सिटी ऑफ ससेक्स, यूके येथून आंतरराष्ट्रीय विकासात एमए केले आहे आणि सध्या ते TISS मुंबई येथून पीएचडी करत आहेत. याव्यतिरिक्त, सामाजिक विकासाच्या मुद्द्यांवर 15 वर्षों से विभिन्न संस्थाओं में कार्यरत रहे हैं ।जोतीराव फुले पर इनकी एक किताब प्रकाशित हो चुकी है और एक अन्य किताब प्रकाशनाधीन है। और ये उनके अपने निजी विचार है इससे नेशनल इंडिया न्य़ूज का कोई संबंध नहीं है ।
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