Home Social Health ना सुरक्षा ना इंश्योरेंस फिर भी कोरोना से लड़तीं आशा-आंगनबाड़ी वर्कर्स
Health - Hindi - Human Rights - May 18, 2021

ना सुरक्षा ना इंश्योरेंस फिर भी कोरोना से लड़तीं आशा-आंगनबाड़ी वर्कर्स

कोरोना की दूसरी लहर गांवों तक पहुंच चुकी है। हर घर में बुखार-खांसी के मरीज हैं। इन मरीजों के आंकड़े एकत्र करने और वैक्सीनेशन का रिकॉर्ड रखने में आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं की अहम भूमिका है। देश में अब तक सैकड़ों आंगनबाड़ी-आशा कार्यकर्ताओं की जान जा चुकी है, लेकिन उनकी मौत का व्यवस्थित रिकॉर्ड तक नहीं है।

गांवों में कोरोना के तबाही मचाने के बाद जब सरकार में उथल-पुथल शुरू हुई, 16 अप्रैल को हुई प्रधानमंत्री की हाई लेवल बैठक में आशा-आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को जरूरी उपकरण मुहैया करवाने का आदेश दिया गया। इसके बाद ही अधिकारी हड़बड़ा कर नींद से जागे और उसके बाद से ही आंगनबाड़ी-आशा कार्यकर्ताओं की मौत के आंकड़े इकट्ठा किए जा रहे हैं।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट मे उत्तर प्रदेश के कौशांबी के जिला कार्यक्रम अधिकरी राकेश गुप्ता ने बताया, ‘हमसे आंगनबाड़ियों की मौत के आंकड़े मांगे गए हैं। लखनऊ से आदेश आया है कि अब आशा-आंगनबाड़ियों को सभी सुरक्षा उपकरण मुहैया करवाए जाएं।’ केंद्रीय महिला एवं बाल विकास कार्यक्रम विभाग के एक अधिकारी ने इस बारे में बताया, ‘दो दिन के भीतर सभी आंकड़े जमा किए जाने हैं, लेकिन पूछने पर कि क्या मृत आंगनबाड़ी- आशा कार्यकर्ताओं को बीमा की राशि मिलेगी? जवाब था अभी इसका आदेश ऊपर से नहीं आया है।’ केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण से इस बारे में कई बार फोन करने पर भी जानकारी नहीं मिल पाई।

30 मार्च 2020 में केंद्र सरकार ने मॉडर्न मेडिसिन में काम करने वाले डॉक्टर्स समेत अन्य मेडिकल प्रोफेशनल्स के लिए ड्यूटी के दौरान संक्रमित होने के बाद मौत होने पर 50 लाख बीमा राशि देने की घोषणा की थी। शुरुआत में यह 90 दिनों के लिए थी, लेकिन बाद में तीन बार इस योजना का एक्सटेंशन हुआ और 24, मार्च 2021 तक यह योजना चलाई गई।

यह योजना 1.7 लाख करोड़ कोविड राहत पैकेज का हिस्सा थी। इस योजना में 22 लाख हेल्थकेयर वर्कर्स कवर किए गए थे। इनमें पब्लिक और प्राइवेट सभी हेल्थ सेंटर्स के हेल्थ वर्कर और डॉक्टर शामिल थे। आशा वर्कर, पैरामेडिकल, टेक्नीशियन, डॉक्टर्स, सफाई कर्मचारी, नर्सेज और वार्ड ब्वॉयज भी इसमें शामिल थे।

डॉक्टर्स ने इस मुद्दे को कम से कम खुलकर तो उठाया, लेकिन दूसरे मेडिकल प्रोफेशनल्स को तो इसका पता तक नहीं है। उत्तर प्रदेश राज्य महिला एवं बाल विकास कार्यक्रम विभाग के सूत्रों के मुताबिक, ‘अभी इस बीमा पॉलिसी के रिन्यूअल को लेकर कोई आदेश ऊपर से नहीं आया है।’ गांवों में कोरोना संक्रमण की फर्स्ट वेव से लेकर अब तक संक्रमितों के आंकडे़ इकट्ठे करने के अलावा वैक्सीनेशन के आंकड़े भी इकट्ठे करने का काम आशा-आंगनबाड़ी का ही है। संक्रमितों के घर-घर जाकर राशन बांटना, पोषाहार पहुंचाने का काम भी इन्हीं कर्मचारियों के जिम्मे है।

उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में अब तक तकरीबन 25 आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की मौत संक्रमण से हो चुकी है। वहीं आशा कर्मचारियों की देशभर में 30 से ज्यादा मौत हो चुकी है। बिहार आशा वर्कर एसोसिएसन की अध्यक्ष शशि यादव कहती हैं, ‘केवल बिहार में ही 12 आशाओं की मौत हो चुकी है।’

वही बात डॉक्टर्स की तो हाल ही में भारतीय मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने एक चौंकाने वाला आंकड़ा जारी किया है। आईएमए के मुताबिक, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अबतक 269 डॉकटरों की जान जा चुकी है। आईएमए ने सभी राज्यों का आंकड़ा जारी किया है। हालांकि, पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर में डॉक्टरों की हुई मौत का आंकड़ा कम है।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक आंगनबाड़ी संगठन की महामंत्री नीलम पांडे कहती हैं, ‘गांव में गर्भवती महिलाओं और कुपोषित बच्चों को पोषाहार के वितरण से लेकर गर्भवती महिलाओं को प्राथामिक से लेकर जिला अस्पताल तक ले जाने का काम आशा-आंगनबाड़ी कर्मचारी करती हैं। किसी भी तरह के वैक्सीनेशन के लिए लोगों के आंकड़े इकट्ठा कर उन्हें वैक्सीनेशन करवाने के लिए प्रेरित करने का काम भी आशा आंगनबाड़ी के ही जिम्मे है।’

बिहार की आशा वर्कर एसोसिएशन की अध्यक्ष शशि यादव कहती हैं, बिहार में तो हमने आशाओं की मौत के कुछ आंकड़े इकट्ठे किए लेकिन आशा वर्कर इतनी दूर दराज रहती हैं कि सारे आंकड़े इकट्ठा करना मुश्किल है। दूसरे यह लोग इतनी दक्ष नहीं होतीं जितना डॉक्टर होते हैं। डॉक्टरों ने तो अपनी पूरी लिस्ट जारी कर बताया, कहां कितने डॉक्टरों की संक्रमण से मौत हुई.

हालांकि उनमें भी ज्यादातर को बीमा की राशि नहीं मिली। पर आशा-आंगनबाड़ी के तो देशभर के आंकड़े इकट्ठे करने भी मुश्किल हैं। लेकिन सरकार के लिए यह मुश्किल नहीं। हर आदेश आशा तक पहुंच जाता है पर उनकी गुहार और मौत के आंकड़े सरकार तक नहीं पहुंचते। बीमा की रकम और सुविधा भी नहीं पहुंचती क्यों, क्या इनकी जान इतनी सस्ती है?

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