शेतकरी चळवळ: पकड मजबूत करण्यासाठी 'सोशल इंजीनियरिंग'’ समर्थन,जाट आणि बहुजन समाज लोकांना एकत्र आणण्याचा प्रयत्न करतो!
केंद्र सरकारच्या तीन कृषी कायद्याविरूद्ध शेतकरी संघटना’ अपने आंदोलन को देशव्यापी बनाने में लगे हैं। कई राज्यों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए किसान नेता अब ‘सोशल इंजीनियरिंग’ का सहारा ले रहे हैं। ‘दो धारी’ तलवार का वह गठजोड़ कितना टिक पाएगा, इसका अंदाजा खुद किसान संगठनों के नेताओं को भी नहीं है। अतीत में राजनीतिक प्लेटफार्म पर ऐसे कई प्रयास हो चुके हैं, मगर किसी को बहुत ज्यादा लक्षित परिणाम नहीं मिल सका।
किसान आंदोलन से जुड़े प्रमुख राज्य उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में किसान संगठनों के नेता, जाट और बहुजन समाज के लोगों को एक साथ लाने का प्रयास कर रहे हैं। भाकियू प्रधान गुरनाम सिंह चढूनी ने तो साफतौर पर कह दिया है कि दलित अपने घर में चौ. छोटूराम की तस्वीर लगाएं और किसान यानी जाट अपने घरों में डॉ. बीआर अंबेडकर का फोटो लगा लें। इससे चारों राज्यों में किसान आंदोलन को मजबूती मिलेगी।

किसान नेता ‘सोशल इंजीनियरिंग’ के जरिए अनुसूचित जातियों की बड़ी आबादी को साधने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन इसमें सफलता की गुंजाइश बेहद कम नजर आती है। आंदोलन के मंच से किसान नेता ने यह कहते रहे कि मजदूरों को यह समझना चाहिए कि तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ लड़ाई सिर्फ किसानों की नहीं है। किसान अपना काम करेंगे, लेकिन मजदूर वर्ग को इसका सबसे ज्यादा नुकसान होगा। इस कारण, मजदूर वर्ग को किसानों के साथ आ जाना चाहिए।
किसान आंदोलन को लेकर इन चारों राज्यों में आम लोगों के बीच यह धारणा बन गई है कि ये आंदोलन तो जाट समुदाय का है। पंजाब में इसे सिख ही आगे बढ़ा रहे हैं। हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी यही सोच देखी जा रही है। इन बात ने किसान संगठनों के नेताओं को खासा परेशान कर दिया है। वजह, भाजपा नेताओं की तरफ से कथित तौर पर ऐसे बयान दिए गए कि इस आंदोलन से आम लोगों का कोई लेना देना नहीं है। खुद राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव, दर्शनपाल और गुरनाम सिंह चढूनी को आगे आकर इस बाबत स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी। इन नेताओं ने कहा था कि किसान आंदोलन में सभी धर्म और जातियां शामिल हैं। किसान, किसी एक जाति या समुदाय का नहीं होता। उसके खेत में पैदा हुआ अनाज सभी धर्मों के लोग खाते हैं।

वही भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता और दिल्ली सीमा पर जारी किसान आंदोलन के संयोजक राकेश टिकैत ने कहा कि केन्द्र की मोदी सरकार देश के किसानों के साथ ज्यादती कर रही है, हठधर्मिता के चलते इससे किसान को काफी नुकसान भुगतना पड़ रहा है।
केन्द्र सरकार किसानों के आंदोलन को समाप्त करना ही नहीं चाहती, इस कारण ही कई दौर की बातचीत के बावजूद कोई हल नहीं निकल पाया है। कृषि कानून किसानों के साथ-साथ उपभोक्ता के लिए भी नुकसानदेह है। टिकैत ने कहा कि वे भी सरकार के अड़ियल रवैये के चलते कानून वापसी तक के लिए आंदोलन को तैयार है।
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