चीन से व्यापार बंद करने पर भारत को इसलिए ज्यादा नुकसान !
लद्दाख में गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुए संघर्ष में 20 भारतीय सैनिकों के शहीद हो जाने के बाद देश में चीन खिलाफ भारी नफरत है। देश भर में लोग चीन के सामना का बहिष्कार कर रहे हैं।
देश की जनता मोदी सरकार से भी चीन के साथ व्यापार को पूरी तरह से बंद करने की मांग कर रही हैं। आपको बता दे कि खुदरा व्यापरियों के संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स यानी कैट ने चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान किया है। इन सबने करीब 3000 से अधिक उत्पादों की एक सूची तैयार की है, जो चीन में निर्मित होकर भारत में आयात होते हैं। इन उत्पादों का बहिष्कार कर कैट ने चीनी आयात में करीब एक लाख करोड़ रुपये की कमी लाने का लक्ष्य रखा है।
भारत में भले ही लोग चीन को व्यापारिक मोर्चे पर नुकसान पहुंचाने की बात कर रहे हों। लेकिन अगर बात कर जानकारों की तो इस मुद्दे पर उनका कहना है कि भारत सरकार चीन के साथ व्यापार बंद करती है या व्यापारिक मोर्चे पर इस तरह का कोई भी कदम उठाती है तो इसका चीन से ज्यादा बुरा असर भारत पर पड़ेगा और उसे चीन से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ेगा।
विश्व बैंक के संगठन विश्व एकीकृत व्यापार समाधान यानी डब्ल्यूआईटीएस के ताजा आंकड़ों को देखे तो , बीते चार सालों में चीन का भारत में सबसे ज्यादा निर्यात पूंजीगत वस्तुओं यानी कैपिटल गुड्स का है. 2014 से लेकर 2018 तक भारत ने करीब 40 फीसदी तक पूंजीगत वस्तुएं चीन से मंगाई हैं। भारत में पूंजीगत वस्तुओं के निर्यात के मामले में चीन दूसरे नंबर पर आता है। भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2019 से फरवरी 2020 तक भारत ने चीन से 12.78 बिलियन डॉलर का पूंजीगत सामान आयात किया है। इसमें इलेक्ट्रिकल मशीनरी, सेमी कंडक्टर आधारित मशीनरी, थर्मल पॉवर प्लांट्स की मशीनरी और अस्पतालों में इस्तेमाल होने वाली मशीनरी शामिल है।
जानकारों का साफ तौर पर कहना है कि अगर मोदी सरकार चीन से आयात पर प्रतिबंध लगाती है तो भारतीय कंपनियों के लिए यह बड़े झटके जैसे होगा। तब उन्हें मशीनरी और कल-पुर्जों के लिए अन्य देशों की ओर देखना होगा जो चीनी उत्पादों की तुलना में खासे महंगे होंगे। भविष्य में तनाव बढ़ने की स्थिति में भारतीय कंपनियों को चीन से पुर्जे और तकनीकी सहायता प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है, इससे इन भारतीय कंपनियों की उत्पादकता पर असर पड़ सकता है।
भारतीय बाजार को अगर देखें तो ये उपभोक्ता वस्तुओं के मामले में चीन के उत्पादों से भरे पड़े हैं। मोबाइल फोन और लैपटॉप के मामले में अब भारतीय नागरिक चीन के सामान को ही तरजीह देते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण इनकी कम कीमत है। ओप्पो, वीवो और शाओमी जैसे चीनी कंपनियों के स्मार्ट फोन कोरियाई सैमसंग, ताइवानी एचटीसी और जापानी कंपनी सोनी से लगभग आधी कीमत में भारतीय बाजार में उपलब्ध हैं। अगर बड़ी उपभोक्ता वस्तुओं या घरेलू उपकरणों की बात करें तो चीन में बने एसी, टीवी और रेफ्रिजरेटर की भी भारतीय बाजार में भारी मांग है और इसका भी कारण इनकी कम कीमत ही है। वित्त वर्ष 2019-20 में भारत में 45 फीसदी तक घरेलू उपकरण चीन से ही निर्यात हुए हैं।
जानकारों की मानें तो चीनी आयात पर प्रतिबंध लगाने का सीधा असर मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग पर पड़ेगा क्योंकि चीन के मुकाबले अन्य देशों के घरेलू उपकरणों की कीमतों में बहुत बड़ा अंतर है। इंडियन एक्सप्रेस में आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ और डिप्टी एसोसिएट एडिटर उदित मिश्रा अपनी एक टिप्पणी में लिखते हैं कि अगर रातों-रात इस तरह का प्रतिबंध लगाया गया तो इसका असर भारतीय थोक और खुदरा व्यापारियों पर भी दिखेगा जिन्होंने चीन से बने सामानों से अपने गोदाम भर रखे हैं। चीनी समान की बिक्री पर प्रतिबंध लगने से इन्हें भारी नुकसान होगा।
भारत ऐसे समान को लेकर भी चीन पर काफी निर्भर है जिसका उपयोग भारतीय कंपनियां उपभोक्ता उत्पाद बनाने के लिए करती हैं। इनमें दवाएं और उर्वरक बनाने में इस्तेमाल होने वाले रसायन, ऑटो पार्ट्स, इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स, चमड़े के उत्पाद और सौर उपकरण आदि शामिल हैं। भारत सरकार और रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 70 फीसदी तक दवाएं बनाने के लिए जरूरी रसायन चीन से मंगवाए जाते हैं। आर्थिक मामलों के जानकार मोहन गुरुस्वामी इस मामले में चीन का विकल्प न होने की बात भी कहते हैं।
एक समाचार पत्र से बातचीत में वे कहते हैं कि ‘दवाएं और उर्वरक बनाने में इस्तेमाल होने वाले रसायन को लेकर हम चीन पर निर्भर हैं, हर साल लगभग 3-4 अरब डॉलर के ये रसायन भारत में चीन से आते हैं. भारत में ये बनते ही नहीं हैं। इसका कोई विकल्प ही नहीं है ’ वे आगे कहते हैं, ‘इन रसायनों को बनाने वाले कारखानों से बहुत ज्यादा प्रदूषण फैलता है और ये रसायन भारत में घरेलू प्रदूषण मानकों के साथ कम लागत पर नहीं बनाए जा सकते हैं।’
भारत सरकार से जुड़े कुछ बड़े अधिकारी भी रातों-रात आत्मनिर्भर होने की बात को सही नहीं मानते। इन लोगो का साफ तौर पर कहना है कि अचानक किसी भी देश से आयात बंद करना सही नहीं है।
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